Coronavirsu Lockdown:घर जाने के प्रदर्शन कर रही महिला बोली, "लॉकडाउन हमें कोरोना वायरस से पहले मार डालेगा"
By अजीत कुमार सिंह | Published: June 3, 2020 05:22 PM2020-06-03T17:22:17+5:302020-06-03T17:22:17+5:30
एक प्रदर्शनकारी महिला कहती हैं "हम सरकार से कहना चाहते हैं कि सब तरफ ट्रेन चल रही हैं, दूसरे देश में हैं तो वहां मोदी फ्लाइट भेजकर लोगों को ला रहे हैं, हमें भी छत्तीसगढ़ भेजो."
अमृतसरः अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर दफ्तर के सामने सैकड़ों महिलाएं बैठी है. पर मास्क है, माथे पर चिंता की लकीरें हैं. अधिकांश महिलाएं अपने गोद में दुधमुहें बच्चे लेकर प्रदर्शन कर रही हैं. इस वक्त इनकी सबसे बड़ी चिंता वापस अपने घर जाने की हैं.
अब आपके लिए इन महिलाओं को पहचानना मुश्किल नहीं होना चाहिए ये महिलाएं प्रवासी कामगार हैं. ये अपने घर छत्तीसगढ़ जाना चाहती हैं. ये मज़दूर कोई रास्ता नहीं निकलते देख डिप्टी कमीश्नर ऑफिस के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं. एक प्रदर्शनकारी महिला कहती हैं "हम सरकार से कहना चाहते हैं कि सब तरफ ट्रेन चल रही हैं, दूसरे देश में हैं तो वहां मोदी फ्लाइट भेजकर लोगों को ला रहे हैं, हमें भी छत्तीसगढ़ भेजो."
इन महिलाओं का कहना है कि ये अमृतसर में पिछले तीन महीने से फंसी हुई हैं. "हमारे पास कोई रोज़गार नहीं हैं, रहने के लिए जगह नहीं हैं और खाने के लिए भी हमारे पास कुछ नहीं है. इन हालात में हम ज्यादा समय तक गुज़ारा नहीं कर पाएंगे खासकर वो लोग जिनके छोटे बच्चे हैं."
प्रदर्शन कर रहे ये प्रवासी मज़दूर पिछले 4-5 दिनों से रेलवे स्टेशन के बाहर अपने घर वापस जाने के लिए इंतज़ार कर रहे हैं. प्रदर्शन कर रहे एक प्रवासी मज़दूर ने कहा "अब हमसे स्टेशन के पास से हट जाने के लिए कहा जा रहा है क्योंकि बाज़ार में अब दुकानें खुलने लगी हैं." प्रवासी मज़दूरों ने आज सुबह 9 बजे मजबूर होकर प्रदर्शन शुरू किया. अब उनका कहना है कि जब तक प्रशासन हमें वापस घर भेजने के बारे में कोई आश्वासन देता, हम यहां से जाने वाले नहीं हैं.
प्रदर्शन कर रहीं महिलाओं में एक विद्या देवी कहती हैं "हम लोगों में से 50 लोग लॉकडाउन से पहले ब्यास शहर में काम करते थे. हमारे मालिकों ने हमें काम से निकाल दिया है. अब हम यहां कैसे रहें, हम अब घर जाना चाहते हैं. "
विद्या देवा अपना दर्द सुनाते हुए कहती हैं, " पिछले 4 दिनों से हम लोग यहीं स्टेशन के बाहर ही रह रहे हैं. हम लोगों में कई लोग भूखे सो रहे हैं. यहां शौचलय का भी इंतज़ाम नहीं है. हमने घर जाने के लिए अर्जी दी है लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला है. कल कुछ पुलिस वालों ने हमारा आधार नंबर लिया था लेकिन पता नहीं कब तक हम घर जा पाएंगे."
बिहार के रहने वाले मिथुन कहते हैं "हम पिछले 3 महीने से बेरोज़गार हैं. यहां हमारे जैसे 1 हज़ार मज़दूर फंसे हैं. बिहार सरकार को हमारे लिए ट्रेन का इंतज़ाम करना चाहिए." छत्तीसगढ़ के राजेश कहते हैं "हम सड़क पर रहने के लिए मजबूर हैं. हमारे लिए खाना का इंतज़ाम करना मुश्किल हो गया है."
अपने बच्चे को संभालते हुए एक महिला कहती हैं "पिछले 4 दिनों से बताया जा रहा है कि कोई भी ट्रेन उपलब्ध नहीं हैं. हमें कोरोना वायरस नहीं, ये लॉकडाउन मार डालेगा."
कमिश्नर दफ्तर पर पुलिस वाले इन्हें समझाने की कोशिश कर रहे हैं. एडिश्नल डिप्टी कमिश्नर हिमांशु अग्रवाल ने कहा "ये प्रवासी मज़दूर मगलवार रात को रेलवे स्टेशन पर आए थे. जो मज़दूर कल से पहले यहां आए थे उन्हें शेल्टर होम भेज दिया गया था." अधिकारी बताते हैं कि यहां जमा अधिकतर मजदूर ईंट के भठ्ठों पर काम करते हैं. इनमें से अधिकांश बिहार छत्तीगढ़ और उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं.
अधिकारी अब ईंट भठ्ठा मालिकों से घर वापस जाने वाले कुल मजदूरों की संख्या पता कर रहे है. इसके पीछे एडिश्नल डिप्टी कमिश्नर हिमांशु अग्रवाल तर्क देते हैं, "इससे पहले अमृतसर से अलग-अलग राज्यों के लिए जो श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई गयी थी वो आधी खाली थीं. अगर हमारे पास इन मजदूरों की जानकारी मिल जाए तो हम इन्हें घर भेज देंगे. अब इन्हें शेल्टर होम्स में भेज दिया जाएगा. जब हमें घर वापस जाने के इच्छुक कुल मजदूरों के आंकड़े मिल जाएंगे तो हम श्रमिक स्पेशल ट्रेन का इंतज़ाम करेंगे."
मज़दूरों के पेट में चाहे कितनी भी आग लगी हो सरकारी मशीनरी आंकड़ों पर चलती है. आप इंसानियत कि दुहाई देते रहे हैं लेकिन घर जाने के लिए मज़दूरों का सिर्फ इंसान होना काफी नहीं हैं. इंसान से पहले मज़दूरों को आंकड़ा बनना होगा.