अमरिंदर सिंह ने ऐतिहासिक सारागढ़ी युद्ध के सैनिकों को श्रद्धांजलि दी
By भाषा | Published: September 12, 2021 09:31 PM2021-09-12T21:31:21+5:302021-09-12T21:31:21+5:30
फिरोजपुर, 12 सितंबर पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने ऐतिहासिक सारागढ़ी युद्ध की 124वीं बरसी पर शहीद सैनिकों को रविवार को श्रद्धांजलि दी।
राज्य स्तरीय शहादत दिवस कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री ने गुरुद्वारा सारागढ़ी में डिजिटल माध्यम से मत्था टेका।
उन्होंने अपने संबोधन में समाना रिज (अब पाकिस्तान में) के पास तैनात 36वीं सिख (सैन्य टुकड़ी) के 22 सैनिकों की वीरता को भी याद किया, जिन्होंने 12 सितंबर, 1897 को लगभग 10,000 अफगानों के हमले के बाद एक भीषण लड़ाई के दौरान अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
मुख्यमंत्री ने पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए कहा कि पठान क्षेत्रों में अशांति को शांत करने के लिए तत्कालीन ब्रिटिश भारतीय सेना की चार टुकड़ियां जनरल लॉकहार्ट द्वारा भेजी गई थी। इनमें से 36वें सिख, जिसमें 21 सिख सैनिक और एक रसोइया शामिल था, को सारागढ़ी पर्यवेक्षण चौकी की रक्षा का काम सौंपा गया था, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लॉकहार्ट किला और गुलिस्तान किले के बीच संचार बाधित न हो।
सिंह ने कहा, ‘‘12 सितंबर, 1897 की सुबह अफरीदी और ओरकजई जनजातियों के पठानों ने भारी संख्या में सारागढ़ी चौकी पर हमला किया। पठानों की आत्मसमर्पण की मांग को हवलदार ईशर सिंह ने दृढ़ता से खारिज कर दिया।’’
सिंह ने कहा, ‘‘जल्द ही हमला कर दिया गया जिसके बाद ईशर सिंह ने अपने वरिष्ठ कर्नल ह्यूटन को एक सिग्नल भेजा, जिन्होंने उन्हें उस जगह पर बने रहने के लिए कहा।’’ सिंह ने कहा कि लड़ाई दोपहर के मध्य तक जारी रही और प्रत्येक सिख सैनिक ने 400-500 गोली चलायी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पठानों की अधिक संख्या के कारण घिरे सैनिकों को मदद भेजने के सभी प्रयास असफल रहे। अंत में, सिपाही गुरमुख सिंह ने कर्नल ह्यूटन को आखिरी सिग्नल भेजा और लड़ने के लिए बंदूक उठाई। किसी भी सैनिक ने आत्मसमर्पण नहीं किया और सभी शहीद हो गए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह भी गर्व की बात है कि ब्रिटेन के वॉल्वरहैम्प्टन में आज हवलदार ईशर सिंह की प्रतिमा का अनावरण किया जा रहा है।
इस अवसर पर शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए, खेल और युवा मामलों के मंत्री राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी ने कहा कि इन सिख सैनिकों की शहादत को दुनिया भर में मान्यता दी गई, यहां तक कि महारानी विक्टोरिया ने भी इसे स्वीकार करते हुए प्रत्येक शहीद को उस समय के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट (आईओएम) से सम्मानित किया, जो परमवीर चक्र के बराबर था।
सारागढ़ी पर एक विवरणिका जारी करते हुए मंत्री ने कहा कि इन सैनिकों के बलिदान को सभी हमेशा याद रखेंगे।
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