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आवासीय क्षेत्रों में धरना प्रदर्शन की अनुमति देना गलत परंपरा की शुरुआत होगी: अदालत

By भाषा | Updated: December 17, 2020 20:07 IST

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नयी दिल्ली, 17 दिसंबर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के यहां स्थित घर के बाहर जारी धरना प्रदर्शन पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को चिंता जताई और कहा कि आवासीय क्षेत्र में इस प्रकार के प्रदर्शन की अनुमति देने से गलत परंपरा की शुरुआत हो जाएगी।

न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा ने आज कहा कि भले ही धरना प्रदर्शन शांतिपूर्ण है लेकिन अगर यह एक नजीर बन जाएगी तो कोई भी यहां आकर बैठ जाएगा जिस प्रकार लोग जंतर मंतर या रामलीला मैदान जैसे धरना प्रदर्शन स्थलों पर जाकर बैठ जाते हैं।

अदालत ने कहा, “आप आएं प्रदर्शन करें और चले जाएं तो कोई समस्या नहीं है। लेकिन यह 11 दिन से लगातार चल रहा है। एक बार इस प्रकार का उदाहरण स्थापित हो गया तो कोई भी यहां आकर बैठ जाएगा। अगर हमेशा के लिए इसकी अनुमति दे दी जाती है तो आपको पता है कि रामलीला मैदान और जंतर मंतर जैसे प्रदर्शन स्थलों की क्या हालत है। हम एक आवासीय कॉलोनी में वैसी स्थिति नहीं होने देंगे।”

अदालत, सिविल लाइन्स रेजिडेंट एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

याचिका में कहा गया है कि मुख्यमंत्री आवास के बाहर 11 दिन से चल रहे धरना प्रदर्शन से सड़क पर व्यवधान उत्पन्न हो रहा है और वहां के निवासियों को असुविधा हो रही है।

दिल्ली के तीन नगर निगमों के महापौर बकाया राशि के मुद्दे पर केजरीवाल के घर के बाहर धरने पर बैठे हैं।

सुनवाई के दौरान अदालत में कहा गया कि क्षेत्र में टेंट लग गए हैं और ऐसी खबरें आ रही हैं जिनके अनुसार महापौर धरना प्रदर्शन स्थल से ही कामकाज शुरू करने वाले हैं।

अदालत ने दिल्ली पुलिस से पूछा कि वहां से कार्यालय का कामकाज कैसे किया सकता है और धरने पर बैठे लोग शौच आदि के लिए कहां जा रहे हैं।

उच्च न्यायालय ने कहा कि विरोध प्रदर्शन मौलिक अधिकार है लेकिन लोग किसी आवासीय क्षेत्र में नहीं बैठ सकते।

इस बीच मुख्यमंत्री के आवास के पास रहने वाले एक व्यक्ति ने अदालत में बताया कि प्रदर्शनकारियों की ओर से कोई हस्तक्षेप या परेशानी नहीं खड़ी की जा रही है और केजरीवाल के घर के सामने की सड़क पर कोई व्यवधान नहीं है।

उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारी, पास में स्थित अंबेडकर स्मारक में बने शौचालय का प्रयोग कर रहे हैं।

क्षेत्र के निवासी के कथन पर अदालत ने कहा कि अगर वहां से कार्यालय का कामकाज शुरू हो जाएगा तो कर्मचारी और जनता भी वहीं आ जाएंगे और तब “विरोध के अधिकार का हनन होगा।”

अदालत ने कॉलोनी के निवासी से कहा, “सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों का हर प्रकार के लोगों से पाला पड़ता है। आज कुछ लोग विरोध कर रहे हैं, कर्मचारी विरोध कर रहे हैं। कल कोई और विरोध करने लगेगा। आज प्रदर्शन शांतिपूर्ण है। लेकिन एक बार नजीर बन जाएगी तो कल कोई और लोग प्रदर्शन करेंगे तब आप भागते हुए (अदालत) आएंगे।”

अदालत ने कहा कि पुलिस की ओर से सौंपी गई स्थिति रिपोर्ट पर विचार करना है इसलिए मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी।

स्थिति रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस ने कहा है कि नगर निगमों के पार्षद और महापौरों समेत 20-25 लोगों ने फ्लैग स्टाफ रोड पर मुख्यमंत्री के आवास के बाहर सात दिसंबर से प्रदर्शन शुरू किया।

रिपोर्ट के अनुसार, “वह सड़क किनारे फुटपाथ पर छोटी सी जगह पर बैठे हैं। सड़क और फुटपाथ के बीच जिस जगह पर वे धरना प्रदर्शन कर रहे हैं उसे अवरोधक लगाकर घेर दिया गया है ताकि पैदल चलने वाले लोगों और यातायात के आवागमन में समस्या न आए।”

पुलिस की रिपोर्ट में कहा गया कि एक बार में 25-30 लोगों से अधिक लोग धरने पर नहीं बैठे हैं।

रिपोर्ट के अनुसार आठ दिसंबर से आम आदमी पार्टी के मंत्री, विधायक और समर्थक भी फ्लैग स्टाफ रोड के दोनों किनारों पर बैठे हैं और कोई अप्रिय घटना न हो इसलिए दोनों समूहों की घेराबंदी की गई है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि फ्लैग स्टाफ रोड पर निवासियों का आवागमन नहीं रोका गया है और सड़क भी बंद नहीं है तथा यातायात सुगमता से चल रहा है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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