"वीरशैव-लिंगायत 'शूद्र' हैं, मिलना चाहिए आरक्षण", अखिल भारत वीरशैव लिंगायत महासभा के उपाध्यक्ष प्रभाकर कोरे ने कहा
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: June 26, 2023 08:52 AM2023-06-26T08:52:50+5:302023-06-26T09:00:01+5:30
अखिल भारत वीरशैव लिंगायत महासभा के उपाध्यक्ष प्रभाकर कोरे ने दावा किया कि वीरशैव-लिंगायत शूद्र हैं और इस कारण वीरशैव-लिंगायत समाज को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए, जिससे ये समुदाय लंबे समय से वंचित है।
बेलगावी: कर्नाटक की सियासत में खासा प्रभाव रखने वाले वीरशैव लिंगायत समुदाय को लेकर पूर्व राज्यसभा सांसद और अखिल भारत वीरशैव लिंगायत महासभा के उपाध्यक्ष प्रभाकर कोरे ने बेहद सनसनीखेज दावा किया है। कर्नाटक के बेलगावी में कोरे ने बीते शनिवार को दावा किया कि वीरशैव-लिंगायत शूद्र हैं और इस कारण वीरशैव-लिंगायत समाज को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए, जिससे ये समुदाय लंबे समय से वंचित है।
इसके साथ ही प्रभाकर कोरे ने यह भी कहा कि कर्नाटक में कुछ संपन्न समुदायों को आरक्षण का लाभ मिल रहा है, जबकि वीरशैव-लिंगायत की अनदेखी की जा रही है। उन्होंने कहा, "मैं इस बात को स्पष्ट करना चाहता हूं कि हम न तो ब्राह्मण हैं और न ही क्षत्रिय या वैश्य। हम शूद्र हैं लेकिन बावजूद इसके हमें आरक्षण के लाभ से वंचित कर दिया गया है।"
अखिल भारत वीरशैव लिंगायत महासभा के उपाध्यक्ष प्रभाकर कोरे ने वीरशैव-लिंगायत समुदाय के विधायकों को सम्मानित करने के लिए आयोजित किये गये एक कार्यक्रम में बोलते हुए कहा, "जब हम स्वयं को 'शूद्र' कह रहे हैं तो केंद्र सरकार को हमें वह आरक्षण प्रदान करना चाहिए जो अन्य शूद्रों को दिया जा रहा है। इसके समुदाय के लोगों का विकास होगा और हम भी अन्य वर्गों की तुलना में खुद को समृद्ध बनाने के लिए समाज में संघर्ष कर सकेंगे।"
इसके साथ ही उन्होंने बसवन्ना के अनुयायियों से अपनी उप-जाति का उल्लेख करने से पहले जाति या धर्म कॉलम में 'वीरशैव लिंगायत' के रूप में पंजीकरण कराने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि लिंगायत समुदाय को एक बनाने के लिए इसका पालन करना बेहद आवश्यक है।
मालूम हो कि लिंगायत एक धार्मिक समुदाय है जो 12वीं सदी के समाज सुधारक वासवन्ना के अनुयायी हैं। कर्नाटक में हिंदुओं के मुख्यत: पांच संप्रदाय माने जाते हैं, जिन्हें शैव, वैष्णव, शाक्त, वैदिक और स्मार्त के नाम से जाना जाता है। इन्हीं में एक शैव संप्रदाय के कई उप संप्रदाय है उसमें से एक हैं वीरशैव-लिंगायत संप्रदाय। लिंगायत इसी वीरशैव संप्रदाय का हिस्सा हैं।
वीरशैव पंथ की शुरुआत जगत गुरू रेनुकाचार्य ने की। उन्होंने पांच पीठों की स्थापना की जैसे कि आदि शंकराचार्य ने की थी। इन पांच पीठों में से सबसे महत्वपूर्ण मठ चिकमंगलूर का रंभापूरी मठ है। 12वीं शताब्दी में बस्वाचार्य का उदय हुआ, जो इन्हीं जगतगुरु रेनुकाचार्य के अनुयायी थे।
अपने गुरु की विचारधाराओं से थोड़ा अलग बस्वाचार्य यानी बासवन्ना ने सनातन धर्म के विकल्प में एक अलग पंथ खड़ा किया जिसमें निराकार शिव की कल्पना की गई थी। बासवन्ना ने जाति और लिंग भेद का पुरजोर विरोध किया और अपने उपदेशों में काम को ही पूजा बताया। इन्होंने शिव केंद्रित भक्ति आंदोलन को कर्नाटक में नई दिशा दी और इनके अनुयायियों को वीरशैल-लिंगायत कहा जाता है।