अखिलेश यादव कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करके बसपा के वोटबैंक में लगाएंगे सेंध, सपा जुटी मायावती के दलित आधार पर हमले की तैयारी में
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: April 2, 2023 02:58 PM2023-04-02T14:58:08+5:302023-04-02T15:02:22+5:30
अखिलेश यादव की पार्टी सपा 2024 के लोकसभा चुनाव में यादव वोटबैंक के अलावा बसपा के दलित जनाधार में सेंधमारी का प्रयास कर रही है और इसकी शुरूआत खुद अखिलेश यादव रायबरेली में 3 अप्रैल को कांशीराम के प्रतिमा का अनावरण करके करेंगे।
लखनऊ: समाजवादी पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए अभी से सियासी समीकरण को बैठाने की जुगत में लग गई है। विधानसभा चुनाव 2022 में सत्ताधारी दल भाजपा को कड़ी टक्कर देने वाली सपा अब यादव वोटबैंक के अलावा बसपा के दलित जनाधार में सेंधमारी का प्रयास कर रही है। जानकारी के अनुसार 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के जनाधार को अपनी ओर लाने के लिए सपा अब खुलकर सियासी मैदान में उतर चुकी है।
बसपा के साथ किसी भी तरह से गठबंधन की सारी उम्मीदें छोड़ चुकी सपा अब दलितों को लुभाने के लिए नये पैंतरे का इस्तेमाल करने जा रही है। समाचार वेबसाइट आईएएनएस के अनुसार समाजवादी पार्टी आगामी अंबेडकर जयंती को बसपा के खिलाफ सेंधमारी के लिए प्रयोग कर सकती है और उस दिन दलितों को अपने करीब लाने का अभियान शुरु कर सकती है।
सूचना के अनुसार सपा प्रमुख अखिलेश यादव आगामी 3 अप्रैल को रायबरेली के एक समारोह में बसपा के संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करेंगे। इस संबंध में सपा सूत्रों ने बताया कि अखिलेश यादव 3 अप्रैल को बसपा संस्थापक कांशीराम की मूर्ति का अनावरण करते हुए 1993 में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के साथ उनके गठबंधन को याद करेंगे और मौजूदा सियासत में भाजपा के खिलाफ 'एक साथ आने' की बात करेंगे।
इस संबंध में सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा, "बसपा आज अपने संस्थापक कांशीराम और बाबासाहेब अम्बेडकर के दिखाए रास्ते से भटक गई है। राष्ट्र निर्माण के लिए कांशीराम और मुलायम सिंह यादव के अनुयायियों को एक बार फिर हाथ मिलाने की जरूरत है। दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के लिए यही सही समय है कि वो सामाजिक न्याय के अपने विचार को आगे बढ़ाने के लिए एक साथ आएं, जैसा की बसपा और सपा के तत्कालीन प्रमुखों ने पहली बार 1993 में साथ आये थे।"
खबरों के मुताबिक सपा नेतृत्व को लगता है कि कम से कम एक दर्जन लोकसभा क्षेत्रों में ओबीसी-दलित गठजोड़ संख्या बल के आधार पर निर्णायक भूमिका में आ सकते हैं। माना जा रहा है कि इस कदम को 2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के साथ खड़े गैर-जाटव दलितों को अपने पक्ष में करने और बसपा के जाटव वोट आधार में सेंध लगाने की सपा की नई रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
पार्टी की इस रणनीति का असर हाल ही में गठित राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति में भी देखने को मिला। जहां समिति में 62 सदस्य यानी लगभग 35 फीसदी गैर यादव ओबीसी समुदायों से विशेष रूप से पासी, कुर्मी, राजभर और निषाद जैसे चुनावी प्रभावशाली समुदायों को जगह दी गई है। इसके साथ ही सपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति की सूची में कुल छह दलित सदस्य भी हैं।
इसके अलावा सपा चीफ अखिलेश यादव द्वारा अयोध्या के मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र से सपा विधायक अवधेश प्रसाद को पार्टी के दलित चेहरे के रूप में प्रचारित करने को इसी प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है।
ऐसा इसलिए कि हाल ही में कोलकाता में संपन्न हुए पार्टी के दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में विदायक अवधेश प्रसाद को अखिलेश यादव के साथ मंच साझा करते हुए देखा गया है। सपा में अवधेश प्रसाद के बढ़ते कद को लेकर अखिलेश यह संदेश देना चाहते हैं कि सपा दलितों को विशेष दर्जा देने को तैयार है।