Aditya L1 Launch: पीएसएलवी रॉकेट से सफलतापूर्वक अलग हुआ आदित्य-एल1, इसरो का ट्वीट, देखें वीडियो

By सतीश कुमार सिंह | Updated: September 2, 2023 13:27 IST2023-09-02T13:10:36+5:302023-09-02T13:27:52+5:30

Aditya L1 Launch: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कुछ दिन पहले चंद्रमा पर सफल ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने के बाद एक बार फिर इतिहास रचने के उद्देश्य से शनिवार को देश के पहले सूर्य मिशन ‘आदित्य एल1’ का यहां स्थित अंतरिक्ष केंद्र से सफल प्रक्षेपण किया।

Aditya L1 Launch PSLV-C57 is accomplished successfully vehicle placed satellite precisely into its intended orbit Sun-Earth L1 point see video | Aditya L1 Launch: पीएसएलवी रॉकेट से सफलतापूर्वक अलग हुआ आदित्य-एल1, इसरो का ट्वीट, देखें वीडियो

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Highlightsआदित्य-एल1 यान पीएसएलवी रॉकेट से सफलतापूर्वक अलग हो गया है।‘आदित्य-एल1’ सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला है।लैग्रेंजियन बिंदु ‘एल1’ के आसपास एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित होगा, जिसे सूर्य के सबसे करीब माना जाता है।

Aditya L1 Launch: इसरो ने कहा कि आदित्य-एल1 यान पीएसएलवी रॉकेट से सफलतापूर्वक अलग हो गया है। चांद पर विजय के बाद सूर्य की ओर कूच कर गए। भारत का पहला सूर्य मिशन, ‘आदित्य एल1’ आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च हुआ।

आदित्य एल-1 सैटेलाइट को अलग कर दिया गया है। PSLV C-57 मिशन आदित्य एल-1 पूरा हुआ। PSLV C-57 ने आदित्य एल-1 उपग्रह को वांछित मध्यवर्ती कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया है।इसरो ने बताया कि आदित्य-एल1 यान पीएसएलवी रॉकेट से सफलतापूर्वक अलग हो गया है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कुछ दिन पहले चंद्रमा पर सफल ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने के बाद एक बार फिर इतिहास रचने के उद्देश्य से शनिवार को देश के पहले सूर्य मिशन ‘आदित्य एल1’ का यहां स्थित अंतरिक्ष केंद्र से सफल प्रक्षेपण किया।

भारत का यह मिशन सूर्य से संबंधित रहस्यों से पर्दा हटाने में मदद करेगा। इसरो के अधिकारियों ने बताया कि जैसे ही 23.40 घंटे की उलटी गिनती समाप्त हुई, 44.4 मीटर लंबा ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) चेन्नई से लगभग 135 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केंद्र से सुबह 11.50 बजे निर्धारित समय पर शानदार ढंग से आसमान की तरफ रवाना हुआ।

इसरो के अनुसार, ‘आदित्य-एल1’ सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला है। यह अंतरिक्ष यान 125 दिन में पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर लंबी यात्रा करने के बाद लैग्रेंजियन बिंदु ‘एल1’ के आसपास एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित होगा, जिसे सूर्य के सबसे करीब माना जाता है।

यह वहीं से सूर्य पर होने वाली विभिन्न घटनाओं का अध्ययन करेगा। पिछले महीने 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में सफलता प्राप्त कर भारत ऐसा कीर्तिमान रचने वाला दुनिया का पहला और अब तक का एकमात्र देश बन गया है। ‘आदित्य एल1’ सूर्य के रहस्य जानने के लिए विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक अध्ययन करने के साथ ही विश्लेषण के वास्ते इसकी तस्वीरें भी धरती पर भेजेगा।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, पृथ्वी और सूर्य के बीच पांच ‘लैग्रेंजियन’ बिंदु (या पार्किंग क्षेत्र) हैं, जहां पहुंचने पर कोई वस्तु वहीं रुक जाती है। लैग्रेंज बिंदुओं का नाम इतालवी-फ्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफ-लुई लैग्रेंज के नाम पर पुरस्कार प्राप्त करने वाले उनके अनुसंधान पत्र-‘एस्से सुर ले प्रोब्लेम डेस ट्रोइस कॉर्प्स, 1772’ के लिए रखा गया है।

लैग्रेंज बिंदु पर सूर्य और पृथ्वी के बीच गुरुत्वाकर्षण बल संतुलित होता है, जिससे किसी उपग्रह को इस बिंदु पर रोकने में आसानी होती है। सूर्य मिशन को ‘आदित्य एल-1’ नाम इसलिए दिया गया है, क्योंकि यह पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर लैग्रेंजियन बिंदु1 (एल1) क्षेत्र में रहकर अपने अध्ययन कार्य को अंजाम देगा।

यहां स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से रवाना हुए अंतरिक्ष यान को वैज्ञानिक शुरू में पृथ्वी की निचली कक्षा में रखेंगे, और बाद में इसे अधिक दीर्घवृत्तकार किया जाएगा। अंतरिक्ष यान को फिर इसमें लगी प्रणोदन प्रणाली का इस्तेमाल कर ‘एल1’ बिंदु की ओर भेजा जाएगा, ताकि यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के प्रभाव से बाहर निकल सके और एल1 की ओर बढ़ सके।

बाद में, इसे सूर्य के पास एल1 बिंदु के इर्दगिर्द एक बड़ी प्रभामंडल कक्षा में भेजा जाएगा। इसरो ने कहा कि आदित्य-एल1 को प्रक्षेपण से लेकर एल1 बिंदु तक पहुंचने में लगभग चार महीने लगेंगे। सूर्य का अध्ययन करने का कारण बताते हुए इसरो ने कहा कि यह विभिन्न ऊर्जा कणों और चुंबकीय क्षेत्रों के साथ-साथ लगभग सभी तरंगदैर्ध्य में विकिरण उत्सर्जित करता है।

पृथ्वी का वातावरण और उसका चुंबकीय क्षेत्र एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है और हानिकारक तरंगदैर्ध्य विकिरण को रोकता है। ऐसे विकिरण का पता लगाने के लिए अंतरिक्ष से सौर अध्ययन किया जाता है। मिशन के प्रमुख उद्देश्यों में सूर्य के परिमंडल की गर्मी और सौर हवा, सूर्य पर आने वाले भूकंप या ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ (सीएमई), पृथ्वी के निकट अंतरिक्ष मौसम आदि का अध्ययन करना शामिल है। अध्ययन को अंजाम देने के लिए ‘आदित्य-एल1’ उपग्रह अपने साथ सात वैज्ञानिक उपकरण लेकर गया है।

इनमें से ‘विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ’ (वीईएलसी) सूर्य के परिमंडल और सीएमई की गतिशीलता का अध्ययन करेगा। वीईएलसी यान का प्राथमिक उपकरण है, जो इच्छित कक्षा तक पहुंचने पर विश्लेषण के लिए प्रति दिन 1,440 तस्वीरें धमती पर स्थित केंद्र को भेजेगा। यह आदित्य-एल1 पर मौजूद ‘सबसे बड़ा और तकनीकी रूप से सबसे चुनौतीपूर्ण’ उपकरण है।

‘द सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप’ सूर्य के प्रकाशमंडल और वर्णमंडल की तस्वीरें लेगा तथा सौर विकिरण विविधताओं को मापेगा। ‘आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट’ (एएसपीईएक्स) और ‘प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य’ (पीएपीए) नामक उपकरण सौर पवन और ऊर्जा आयन के साथ-साथ ऊर्जा वितरण का अध्ययन करेंगे।

‘सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर’ और ‘हाई एनर्जी एल1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर’ (एचईएल1ओएस) विस्तृत एक्स-रे ऊर्जा क्षेत्र में सूर्य से आने वाली एक्स-रे फ्लेयर का अध्ययन करेंगे। ‘मैग्नेटोमीटर’ नामक उपकरण ‘एल1’ बिंदु पर अंतरग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र को मापने में सक्षम है। ‘आदित्य-एल1’ के उपकरण इसरो के विभिन्न केंद्रों के सहयोग से स्वदेशी रूप से विकसित किए गए हैं।

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