जम्मू-कश्मीर में पंचायत चुनावः आतंकी डर से प्रत्याशी नाम ले रहे वापस, 12168 पंचों और 1089 सरपंच पदों पर इलेक्शन
By सुरेश एस डुग्गर | Published: November 17, 2020 05:23 PM2020-11-17T17:23:40+5:302020-11-17T17:44:57+5:30
4290 सरपंच व 33592 पंच हैं। दिसम्बर 2018 में आखिरी बार चुनाव हुए तो 12209 पदों पर आतंकी खतरे के कारण मतदान ही नहीं हो पाया। अब चुनाव आयोग ने 12168 पंचों व 1089 सरंपचों को चुनने के लिए चुनावों की घोषणा की है।
जम्मूः जैसा डर था वैसा ही परिणाम सामने आने लगा है। आतंकी ‘धमकी’ और ‘खतरे’ के चलते पंचायत उप-चुनावों के लिए मैदान में उतरने वाले उम्मीदवार नामांकन भी वापस लेने लगे हैं।
हालांकि आधिकारिक तौर पर इस वापसी को आतंकी खतरे से जोड़ कर नहीं देखा जा रहा है। पर पुलिस कहती है कि पंचायत उप चुनावों के साथ-साथ जिला परिषद के चुनावों पर भी जबरदस्त आतंकी खतरा मंडरा रहा है। जानकारी के लिए प्रदेश में पंचों व सरपंचों के कुल 37882 पद हैं।
इनमें 4290 सरपंच व 33592 पंच हैं। दिसम्बर 2018 में आखिरी बार चुनाव हुए तो 12209 पदों पर आतंकी खतरे के कारण मतदान ही नहीं हो पाया। अब चुनाव आयोग ने 12168 पंचों व 1089 सरंपचों को चुनने के लिए चुनावों की घोषणा की है। खबरों के मुताबिक, शोपियां में 10 उम्मीदवारों ने पंचायत उप चुनावों के लिए नाम वापसी की भी घोषणा की है। ऐसी खबरें अन्य इलाकों से भी आ रही हैं। प्रशासन कहता है कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है। पर खबरें कहती हैं की ऐसे इलाकों में आतंकी धमकी के चलते ऐसा देखने को मिल रहा है।
पंचायत चुनावों की घोषणा के बाद पंचायत हल्कों में गम और खुशी का माहौल जरूर है। कारण स्पष्ट है। आतंकी खतरा अभी तक टला नहीं है। प्रदेश में एक बार 25 सालों तक पंचायत चुनाव जरूर टाले गए थे। दिसम्बर 2018 में अंतिम बार चुनाव हुए थे। पर पंचायत प्रतिनिधियों की राह आसान नहीं रही। उन्हें हमेशा खतरा महसूस होता रहा।
खतरा कितना था इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वर्ष 2018 के बाद 22 पंचों-सरंपचों को मौत के घाट उतारा जा चुका है, उनके द्वारा की जाने वाली सुरक्षा मुहैया करवाने की मांग पर पुलिस का कहना था कि इतने लोगों को सुरक्षा मुहैया नहीं करवाई जा सकती। हालांकि मात्र 60 को मुहैया करवाई गई सुरक्षा किसी को भी संतुष्ट नहीं कर पाई।
इतना जरूर था कि इस अरसे में अभी तक करीब 2000 पंच-सरपंच आतंकी धमकियों के कारण त्यागपत्र भी दे चुके हैं। उन्होंने अपने त्यागपत्रों की घोषणा अखबारों में इश्तहार के माध्यम से की थी। दरअसल दूर-दराज के आतंकवादग्रस्त इलाकों में रहने वाले राजनीतिज्ञों को अक्सर कश्मीर में पिछले 30 सालों में झुकना ही पड़ा है और अब एक बार फिर पचों और सरपंचों को लोकतंत्र का स्तंभ बना खतरे में झोंक दिया गया है। वैसे पुलिस महानिदेशक भी मानते हैं कि पंचायत के साथ साथ जिला परिषद के चुनावों में आतंकी खतरा बहुत बड़ा है। दरअसल जिला परिषद के चुनावों में कई पूर्व मंत्री और विधायक भी किस्मत आजमा रहे हैं और ऐसे में पुलिस के मुताबिक, ये उम्मीदवार आतंकियों के लिए साफ्ट टारगेट हो सकते हैं।
इतना जरूर था कि आतंकियों ने फिलहाल जिला परिषद के चुनावों को लेकर कोई धमकी या चेतावनी जारी नहीं की है। पर पुलिस को डर है कि आतंकी कुछ बड़ा कर सकते हैं, जिससे मृतप्रायः आतंकवाद में नई जान फूंकी जा सके। पुलिस महानिदेशक ने कहा कि इसके लिए जिला परिषद चुनावों में किस्मत आजमा रहे नेता उनके लिए सबसे अधिक साफ्ट टारगेट साबित हो सकते हैं।