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आधार मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आंकड़ों के दुरुपयोग होने की आशंका की जाहिर

By स्वाति सिंह | Updated: April 18, 2018 01:27 IST

आधार और 2016 के कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई करने वाली प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कैम्ब्रिज एनालिटका विवाद का उल्लेख करते हुए कहा कि ये 'आशंकाएं काल्पनिक' नहीं हैं।

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नई दिल्ली, 17 अप्रैल: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कैम्ब्रिज एनालिटका डेटा चोरी मामले का उल्लेख करते हुए आधार विवरण के जरिए नागरिकों की जानकारी के दुरुपयोग के खतरे की आशंका जाहिर की है। आधार और 2016 के कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई करने वाली प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कैम्ब्रिज एनालिटका विवाद का उल्लेख करते हुए कहा कि ये 'आशंकाएं काल्पनिक' नहीं हैं। 

उन्होंने कहा कि डेटा सुरक्षा संबंधी मजबूत कानून नहीं होने की स्थिति में जानकारी के दुरुपयोग का मुद्दा प्रासंगिक हो जाता है। पीठ ने कहा , 'वास्तविक आशंका इस बात को लेकर है कि डेटा विश्लेषण के इस्तेमाल के जरिये चुनावों को प्रभावित किया जा रहा है। ये समस्याएं उस दुनिया की झलक हैं , जहां हम रहते हैं।' इस संविधान पीठ में न्यायमूर्ति ए के सीकरी , न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर , न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण भी शामिल हैं। ये भी पढ़ें: PAN कार्ड फॉर्म में होगा बदलाव, महिला-पुरुष के अलावा मिलेगी थर्ड जेंडर को जगह

भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ( यूआईडीएआई ) और गुजरात सरकार के वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा , 'इसकी तुलना कैम्ब्रिज एनालिटिका से मत करिए। यूआईडीएआई के पास फेसबुक , गूगल की तरह उपयोगकर्ताओं के विवरण का विश्लेषण करने वाला एल्गोरीदम नहीं है।' उन्होंने कहा कि इसके अलावा आधार अधिनियम आंकड़ों के किसी तरह के विश्लेषण की अनुमति नहीं देता है। यूआईडीएआई के पास सिर्फ 'मिलान में सक्षम एलगोरीदम है' जो आधार की पुष्टि का आग्रह प्राप्त होने पर केवल 'हां' या 'ना' में जवाब देता है। 

ये भी पढ़ें: हाई कोर्ट ने आयकर विभाग को लगाई लताड़, फिलहाल ITR भरने के लिए जरूरी नहीं PAN से आधार जोड़ना

इसके बाद पीठ ने वकील से पूछा कि अधिकारी निजी संस्थाओं को विभिन्न कार्यों के लिए आधार प्लेटफार्म के इस्तेमाल की इजाजत क्यों दे रहे हैं। न्यायालय ने इससे जुड़े वैधानिक प्रावधान का भी उल्लेख किया। इस पर द्विवेदी ने जवाब दिया कि कानून के तहत किसी 'चायवाला' या 'पानवाला' को डेटा के मिलान के आग्रह की अनुमति नहीं दी गयी है। यह सीमित प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि यूआईडीएआई किसी को भी अनुरोध करने वाली संस्था के रूप में तब तक मान्यता नहीं दे सकता है जब तक वह इस बात से संतुष्ट ना हो जाए कि उस संस्था को डेटा की प्रमाणिकता की जांच की आवश्यकता है। 

ये भी पढ़ें: भारत सरकार ने कल्याणकारी योजनाओं से आधार को जोड़ने की समय सीमा बढ़ाकर 30 जून की

द्विवेदी ने रक्षा क्षेत्र में रिलाइंस जैसी निजी कंपनियों के प्रवेश का हवाला देते हुए कहा कि कुछ समय में अदालत को सरकारी क्षेत्र में निजी कंपनियों के काम करने के पहलू पर भी निर्णय करना होगा। द्विवेदी ने उन आरोपों का भी जवाब दिया , जिसमें कहा जा रहा है कि लोगों को जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर की पहल की तर्ज पर कुछ अंकों वाली पहचान दी जा रही है। 

उन्होंने कहा , 'हिटलर ने यहूदियों , ईसाइयों आदि की पहचान के लिए लोगों की गिनती की थी। यहां हम नागरिकों से जाति , पंथ और संप्रदाय की जानकारी नहीं मांगते हैं।' द्विवेदी ने कहा कि संख्या के इतिहास की शुरुआत भारत से होती हैं और 'संख्याएं अच्छी और लुभावनी होती हैं।' उन्होंने पीठ से आधार के खिलाफ याचिकाकर्ताओं द्वारा फैलायी गयी 'हाइपर फोबिया' पर गौर नहीं करने का आग्रह किया। 

(भाषा इनपुट के साथ )

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