शिक्षकों के लिए 2020 संघर्ष और नवाचार का रहा

By भाषा | Updated: December 26, 2020 17:38 IST2020-12-26T17:38:37+5:302020-12-26T17:38:37+5:30

2020 was a struggle and innovation for teachers | शिक्षकों के लिए 2020 संघर्ष और नवाचार का रहा

शिक्षकों के लिए 2020 संघर्ष और नवाचार का रहा

(गुंजन शर्मा)

नयी दिल्ली, 26 दिसंबर कोरोना वायरस महामारी की मार जहां हर क्षेत्र पर पड़ी है वहीं 2020 शिक्षकों के लिए भी संघर्ष और नवाचार से परिपूर्ण रहा जहां मिट्टी के घरों की दीवारों को ब्लैक बोर्ड में बदलने से लेकर चलती गाड़ियों पर लाउडस्पीकर से चलने वाली कक्षाओं तक, ‘मोहल्ला’ कक्षाओं से पंचायत भवनों की जन उद्घोषणा प्रणाली तक अनेक प्रयोग देखे गए।

कई महीने तक स्कूलों के बंद रहने की वजह से शिक्षकों को गांवों, दूरदराज की बस्तियों और गरीब परिवारों के ऐसे हजारों बच्चों को पढ़ाने के लिए रचनात्मक तरीके खोजने की प्रेरणा मिली जो ऑनलाइन कक्षाएं नहीं कर सकते क्योंकि देश के अनेक गांवों में रहने वाले इन बच्चों की पहुंच में स्मार्टफोन और कम्प्यूटर नहीं हैं।

झारखंड में दुमका के दुमरथार गांव में सरकारी स्कूल के शिक्षकों ने ऐसे बच्चों को शिक्षित करने के लिए नया तरीका ईजाद किया जिनके पास स्मार्टफोन नहीं हैं।

उन्होंने बच्चों के घरों की दीवारों पर ब्लैकबोर्ड बनाकर उन्हें सामाजिक दूरी रखते हुए पढ़ाया।

दुमरथार के शिक्षक तपन कुमार ने कहा, ‘‘जिन बच्चों के पास स्मार्टफोन और इंटरनेट नहीं हैं, उन्हें पढ़ाने के लिए हमने ‘शिक्षा आपके द्वार’ पहल शुरू की। बच्चों के घरों पर छात्रों को पढ़ाने के लिए दीवारों पर ब्लैक बोर्ड बनाए गए। ऐसे 100 से ज्यादा ब्लैक बोर्ड बनाए गये।’’

सिक्किम के रवंगला गांव में विज्ञान और गणित की शिक्षक इंद्रा मुखी छेत्री कई बच्चों के घरों में जाती थीं और एक सप्ताह में पहली से पांचवीं कक्षा के करीब 40 विद्यार्थियों से संपर्क साधती थीं।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं ऑनलाइन कक्षाएं भी ले सकती हूं लेकिन इन बच्चों के पास फोन या इंटरनेट नहीं है। कुछ के पास हो भी सकता है लेकिन ऐसे में हम समानता कैसे रख पाएंगे। कुछ बच्चे वंचित रह जाएंगे। इसलिए मैं हर सप्ताह प्रत्येक बच्चे के साथ करीब 20 मिनट बिताती थी।’’

छेत्री ने कहा, ‘‘मैं उनकी नोटबुक लेकर उन पर पाठ लिखती थी जिन्हें उन्हें सप्ताह भर में पूरा करना होता था।’’

गुजरात के जानन गांव के शिक्षक घनश्याम भाई कहानियां और गीत सुनाने तथा अभिभावकों को लॉकडाउन के दौरान बच्चों के साथ बर्ताव करने के तरीके सिखाने के लिए ग्राम पंचायत की जन उद्घोषणा प्रणाली का उपयोग करते थे।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं यह भी बताता था कि मैं पंचायत भवन में किस समय रहूंगा ताकि छात्र या उनके माता-पिता उस समय सामाजिक दूरी रखते हुए मुझसे मिल सकें।’’

छत्तीसगढ़ के शिक्षकों ने कम संक्रमण दर वाले क्षेत्रों में मोहल्ला क्लास लगाईं।

एक शिक्षक ने बताया, ‘‘हमने सामुदायिक स्थानों पर छोटी-छोटी कक्षाएं बनाईं। शिक्षक सप्ताह में कम से कम दो बार हर कक्षा में कुछ घंटे बच्चों के साथ बिताते थे।’’

छत्तीसगढ़ के एक और शिक्षक रुद्र राणा ने कक्षाओं के लिए मोटरसाइकिल का इस्तेमाल किया।

उन्होंने बताया, ‘‘स्कूल बंद होने की वजह से बच्चे पढ़ने नहीं जा सकते थे। इसलिए मैंने सोचा कि क्यों न स्कूल को ही उनके पास पहुंचा दिया जाए। कई ग्रामीण छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं व्यावहारिक नहीं हैं। मैं एक गांव जाता था और अपने साथ एक छाता और चॉक बोर्ड रखता था ताकि कक्षाएं लगा सकूं।’’

हरियाणा के कंवरसीका गांव में स्कूल की घंटी की तरह एक वैन पर सुबह कक्षा शुरू होने की घोषणा के लिए घंटी बजती थी।

नूह जिले में एक सरकारी स्कूल की शिक्षक नूर बानो के अनुसार, ‘‘बच्चे अपने घरों में और आंगनों में गली की ओर मुंह करके बैठ जाते थे। पहले वे लाउडस्पीकर पर शिक्षक की आवाज आने पर प्रार्थना करते थे और फिर हर दिन एक विषय की पढ़ाई करते थे।

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Web Title: 2020 was a struggle and innovation for teachers

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