उत्तर प्रदेश में पांच साल में मारे गए 12 पत्रकार, हमले के 138 मामले: CAAJ की रिपोर्ट में दावा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 10, 2022 05:28 PM2022-02-10T17:28:46+5:302022-02-11T12:11:44+5:30

उत्तर प्रदेश में पिछले पांच सालों में पत्रकारों पर हमले के 138 मामले सामने आए हैं। 12 पत्रकारों की हत्या भी हो गई।

12 journalists killed in five years in UP, 138 cases of attack, says CAAJ report | उत्तर प्रदेश में पांच साल में मारे गए 12 पत्रकार, हमले के 138 मामले: CAAJ की रिपोर्ट में दावा

उत्तर प्रदेश में पांच साल में पत्रकारों पर हमले के 100 से ज्यादा मामले (फाइल फोटो)

लखनऊ: पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति (CAAJ) की रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में पिछले पांच साल में पत्रकारों पर हमले के कुल 138 मामले दर्ज किए गए हैं। इसमें 75 प्रतिशत मामले 2021 और 2021 के दौरान कोरोनाकाल में हुए। यही नहीं, रिपोर्ट के मुताबिक 2017 से लेकर जनवरी 2022 के बीच प्रदेश में कुल 12 पत्रकारों की हत्‍या हुई। रिपोर्ट के अनुसार ये रिपोर्ट हुए मामले वास्‍तविक संख्‍या से काफी कम हो सकते हैं। 

यूपी: किस साल में पत्रकारों पर कितने हमले और हत्या

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पत्रकारों को सबसे ज्यादा हमले राज्य और प्रशासन की ओर झेलने पड़े हैं। ये हमले कानूनी नोटिस, एफआइआर, गिरफ्तारी, हिरासत, जासूसी, धमकी और हिंसा के रूप में सामने आए हैं। 

हमले की प्रकृतिहत्या शारीरिक हमलामुकदमा/गिरफ्तारीधमकी/हिरासत/जासूसीकुल
साल     
201720002
201801102
2019039719
202071132252
202122923357
202214106
कुल12486612138


 रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 में कुल सात पत्रकार- राकेश सिंह, सूरज पांडे, उदय पासवान, रतन सिंह, विक्रम जोशी, फराज असलम और शुभम मणि त्रिपाठी प्रदेश में मारे गए। राकेश सिंह का केस कई जगह राकेश सिंह 'निर्भीक' के नाम से भी रिपोर्ट हुआ है। बलरामपुर में उन्‍हें घर में आग लगाकर दबंगों ने मार डाला। 

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की पड़ताल बताती है कि भ्रष्‍टाचार को उजागर करने के चलते उनकी जान ली गई। राकेश सिंह राष्‍ट्रीय स्‍वरूप अखबार से जुड़े थे। उन्‍नाव के शुभम मणि त्रिपाठी भी रेत माफिया के खिलाफ लिख रहे थे और उन्‍हें धमकियां मिली थीं। 

उन्‍होंने पुलिस में सुरक्षा की गुहार भी लगायी थी लेकिन उन्‍हें गोली मार दी गयी। गाजियाबाद में पत्रकार विक्रम जोशी को भी दिनदहाड़े गोली मारी गयी। इसी साल बलिया के फेफना में टीवी पत्रकार रतन सिंह को भी गोली मारी गयी। सोनभद्र के बरवाडीह गांव में पत्रकार उदय पासवान और उनकी पत्‍नी की हत्‍या पीट-पीट के दबंगों ने कर दी। उन्‍नाव में अंग्रेजी के पत्रकार सूरज पांडे की लाश रेल की पटरी पर संदिग्‍ध परिस्थितियों में बरामद हुई थी। 

पुलिस ने इसे खुदकुशी बताया लेकिन परिवार ने हत्‍या बताते हुए एक महिला सब-इंस्‍पेक्‍टर और एक पुरुष कांस्‍टेबल पर आरोप लगाया, जिसके बाद उनकी गिरफ्तारी हुई। वहीं, कौशांबी में फराज असलम की हत्या 7 अक्टूबर 2020 को हुई। फरा पैगाम-ए-दिल में संवाददाता थे। 

कानूनी मुकदमों और नोटिस के बीच घिरे पत्रकार

पत्रकारों को चोट पहुंचाने और परेशान करने के इरादे से शरीरिक हमले करने जैसी घटनाओं की सूची भी बहुत लंबी है। कम से कम 50 पत्रकारों पर पांच साल के दौरान शारीरिक हमला किया गया। हत्‍या के बाद यदि संख्‍या और गंभीरता के मामले में देखें तो कानूनी मुकदमों और नोटिस के मामले 2020 और 2021 में खासकर सबसे संगीन रहे हैं। थाने में बुलाकर पूछताछ, हिरासत, आदि भी पत्रकारों को झेलना पड़ा है। 

 

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