किसान आंदोलन के 100 दिन पूरे, हरियाणा में किसानों ने एक्सप्रेसवे अवरुद्ध किया; तोमर ने कहा, सरकार कानूनों में संशोधन के लिए तैयार
By भाषा | Updated: March 6, 2021 23:05 IST2021-03-06T23:05:37+5:302021-03-06T23:05:37+5:30

किसान आंदोलन के 100 दिन पूरे, हरियाणा में किसानों ने एक्सप्रेसवे अवरुद्ध किया; तोमर ने कहा, सरकार कानूनों में संशोधन के लिए तैयार
चंडीगढ़/नयी दिल्ली, छह मार्च केन्द्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के 100 दिन पूरे होने पर किसान नेताओं ने शनिवार को कहा कि प्रदर्शनकार कर रहे संगठन कानूनों को वापस लिये जाने की अपनी मांग पर अडिग हैं। साथ ही किसान नेताओं ने कहा कि वे सरकार के साथ वार्ता को तैयार हैं, लेकिन बातचीत बिना शर्त होनी चाहिए। वहीं सरकार का कहना है कि वह आंदोलनकारी किसानों की भावनाओं का सम्मान करते हुए कानूनों में संशोधन के लिए तैयार है।
इससे पहले दिन में हजारों किसानों ने हरियाणा के कुछ स्थानों पर कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेस-वे को अवरुद्ध किया। दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन के 100 दिन पूरे होने पर किसानों ने रास्ता जाम करके अपना विरोध दर्ज कराया।
कांग्रेस ने किसान आंदोलन के 100 दिन पूरे होने की पृष्ठभूमि में सरकार पर अन्नदाताओं के साथ ‘अत्याचार करने’ का आरोप लगाया और कहा कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार सुनिश्चित होने पर ही आंदोलन कर रहे किसानों की जीत का रास्ता खुलेगा।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘‘देश की सीमा पर जान बिछाते हैं जिनके बेटे, उनके लिए कीलें बिछाई हैं दिल्ली की सीमा पर। अन्नदाता मांगे अधिकार, सरकार करे अत्याचार!’’
केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार आंदोलनकारी किसानों की भावनाओं का सम्मान करते हुए केन्द्र के नए कृषि कानूनों में संशोधन के लिए तैयार है। साथ ही उन्होंने कृषि-अर्थव्यवस्था की कीमत पर इस मुद्दे को लेकर राजनीति करने और किसानों के हितों को नुकसान पहुंचाने के लिए विपक्षी दलों पर निशाना साधा।
उन्होंने कहा कि सरकार ने कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने और किसानों को अपनी उपज कहीं भी बेचने की आजादी देने के लिए तीनों कानून बनाए। साथ ही किसानों को इससे उनके द्वारा फसलों का निर्धारित मूल्य मिल सकेगा।
तोमर ने कहा, ‘‘मैं यह मानता हूं कि लोकतंत्र में असहमति का अपना स्थान है, विरोध का भी स्थान है, मतभेद का भी अपना स्थान है। लेकिन क्या विरोध इस कीमत पर किया जाना चाहिए कि देश का नुकसान हो।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लोकतंत्र है तो राजनीति करने की स्वतंत्रता सबको है। लेकिन क्या किसान को मारकर राजनीति की जाएगी, किसान का अहित करके राजनीति की जाएगी, देश की कृषि अर्थव्यवस्था को तिलांजलि देकर अपने मंसूबों को पूरा किया जाएगा, इस पर निश्चित रूप से नई पीढ़ी को विचार करने की जरुरत है।’’
इस बीच, संयुक्त किसान मोर्चा के वरिष्ठ सदस्य दर्शन पाल ने कहा कि किसान संगठन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की अपनी मांग पर अडिग हैं।
पाल ने पीटीआई-भाषा से कहा, ''आंदोलन की शुरुआत से हमारी मां कानूनों को वापस लेने की रही है। हम सरकार से वार्ता बहाली के लिए तैयार हैं। लेकिन, ऐसा बिना किसी पूर्व शर्त के होना चाहिए।''
सरकार ने जनवरी में विवादास्पद कृषि कानूनों को एक से डेढ़ साल के लिए स्थगित करने के साथ ही किसानों की समस्याओं का उचित समाधान करने के लिए संयुक्त समिति बनाने का प्रस्ताव दिया था, जिसे किसान संगठनों ने नकार दिया था।
वरिष्ठ किसान नेता कुलवंत सिंह संधू ने कहा कि किसान संगठनों ने कभी भी केंद्र सरकार के साथ बातचीत से इंकार नहीं किया। उन्होंने कहा, ‘‘मांगों और वार्ता को लेकर हमारा रुख शुरू से ही स्पष्ट है।’’
संधू ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन तेज करने के संबंध में निर्णय लेने के लिए नौ मार्च को बैठक बुलाई है। उन्होंने दावा किया, ''हर दिन और अधिक लोग किसान आंदोलन में शामिल हो रहे हैं। राजधानी की चार सीमाओं पर ही 1.25 लाख से अधिक लोग मौजूद हैं।''
अन्य किसान नेता अभिमन्यु कोहाड़ ने कहा कि किसान हमेशा सरकार के साथ वार्ता करने को तैयार हैं। उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ''लोकतंत्र में किसी भी समस्या का हल बातचीत से ही निकलेगा। लेकिन, जो लोग सत्ता में हैं, उन्हें हमारे पास औपचारिक निमंत्रण भेजना चाहिए, जिस तरह पूर्व में हुई वार्ता के दौरान किया गया था। सरकार की तरफ से सशर्त बातचीत से समस्या का हल नहीं निकलेगा।''
आज दिन में किसानों ने आंदोलन के 100 दिन पूरे होने पर हरियाणा में छह लेन वाले कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेस-वे पर कुछ स्थानों पर यातायात अवरुद्ध कर दिया। उनका प्रदर्शन सुबह 11 बजे शुरू हुआ और अपराह्न चार बजे तक जारी रहा।
काले झंडे थामे तथा बांह पर काली पट्टी बांधे किसानों और काला दुपट्टा पहने महिला प्रदर्शनकारियों ने अपनी मांगें नहीं माने जाने को लेकर भाजपा नीत सरकार के खिलाफ नारेबाजी की।
सोनीपत तथा झज्जर और कुछ अन्य स्थानों पर प्रदर्शनकारी अपने ट्रैक्टर ट्रॉली तथा अन्य वाहन लेकर आए और उन्हें केएमपी एक्स्प्रेसवे के कुछ हिस्सों में बीच में खड़ा कर दिया।
हरियाणा पुलिस ने यातायात का मार्ग बदलने के लिये प्रबंध कर रखा था। पर्याप्त संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था।
संयुक्त किसान मोर्चा ने एक्सप्रेस-वे पर यातायात अवरूद्ध करने का आह्वान किया था। कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेस-वे 136 किलोमीटर लंबा है।
भारतीय किसान यूनियन (दाकुंडा) के महासचिव जगमोहन सिंह ने कहा, ‘‘हम केएमपी एक्सप्रेस-वे पर यातायात अवरुद्ध करेंगे लेकिन आपात सेवा में लगे वाहनों को जाने दिया जाएगा।’’
सोनीपत में एक प्रदर्शनकारी ने कहा, ‘‘ तीनों कृषि कानूनों को वापस लिये जाने तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा। हम पीछे नहीं हटेंगे।’’
किसानों ने पलवल जिले में भी प्रदर्शन किया।
केन्द्रीय कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि पिछले साल सितंबर में संसद द्वारा पारित किए गए कानूनों से उन फसलों को उगाया जा सकेगा, जिन्हें बाजार में अधिक कीमत मिल सकते हैं।
किसान आंदोलन का जिक्र करते हुए, तोमर ने आश्चर्य जताया कि यह आंदोलन किसानों को कैसे लाभ पहुंचा सकता है। मंत्री ने कहा कि कोई भी इस पर बात करने के लिए तैयार नहीं है कि ये विरोध प्रदर्शन किसानों के हित में कैसे हैं।
तोमर ने खेद व्यक्त किया कि किसान यूनियनों के साथ-साथ विपक्षी दल भी इन कानूनों के प्रावधानों में दोष बताने में विफल रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि कानूनों में संशोधन के सरकार के प्रस्ताव का मतलब यह नहीं है कि इन कानूनों में कोई कमी है।
यह कहते हुए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है, तोमर ने कहा कि सरकार की प्राथमिकता किसानों के सम्मान को बनाए रखना है और इसलिए, वह कानूनों में संशोधन करने के लिए तैयार है।
मंत्री ने कहा कि हमेशा बड़े सुधारों का विरोध होता है, लेकिन इरादे और नीतियां सही होने पर लोग बदलाव स्वीकार करते हैं।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने भी ट्वीट कर आरोप लगाया कि ‘अहंकारी’ सरकार किसानों पर प्रहार और उनका तिरस्कार कर रही है।
कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘किसान आंदोलन के 100 दिन हो गए। इन 100 दिनों में 250 से अधिक लोगों की मौत हुई। इस दौरान किसानों को अपमानित किया गया, लेकिन बड़ी संख्या में किसान अब भी बैठे हुए हैं। वे सरकार के उस फोन कॉल की प्रतीक्षा कर रहे हैं जिसका वादा प्रधानमंत्री ने किया था।’’
गौरतलब है कि मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हजारों किसान, तीन महीने से अधिक समय से दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। वे नए कृषि कानूनों को रद्द करने और फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं।
केंद्र सरकार और 41 प्रदर्शकारी किसान यूनियनों के बीच 11 दौर की वार्ता के बावजूद गतिरोध बरकरार है। सरकार ने 12-18 महीनों के लिए कानूनों के निलंबन और समाधान खोजने के लिए एक संयुक्त पैनल गठित करने सहित कई रियायतों की पेशकश की है, लेकिन यूनियनों ने इसे अस्वीकार कर दिया है।
उच्चतम न्यायालय ने 12 जनवरी को तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर दो महीने के लिए रोक लगा दी थी और समिति से सभी हितधारकों से परामर्श करने के बाद एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था।
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