Triple-mutant in India: भारत में कोरोना वायरस के ट्रिपल-म्यूटेंट का पता चला
By उस्मान | Published: April 20, 2021 12:23 PM2021-04-20T12:23:51+5:302021-04-20T12:23:51+5:30
बताया जा रहा है कि डबल म्यूटेंट की जीनोम सिक्वेंसिंग नहीं होने से तीसरा म्यूटेंट निकला है
भारत में कोरोना वायरस का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। कोरोना की दूसरी लहर के लिए कोरोना स्ट्रेन B.1.167 के डबल म्यूटेंट को जिम्मेदार माना जा रहा है।
अब खबर यह है कि देश में B.1.167 में थर्ड म्यूटेंट की पहचान की गई है। बताया जा रहा है कि डबल म्यूटेंट की जीनोम सिक्वेंसिंग नहीं होने से तीसरे म्यूटेंट ने दस्तक दी है।
डबल म्यूटेंट E484Q और L425R वायरस के स्पाइक प्रोटीन में स्थित थे, जो इसे शरीर में रिसेप्टर कोशिकाओं से बांधता है। कोरोना के इन विनाशकारी रूपों को रोकने के लिए बड़े लेवल पर जीन की निगरानी होनी थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
पहले से ही धीमी गति से चलने वाला जीनोम सिक्वेंसिंग का अभ्यास, धन की कमी, स्पष्ट निर्देशों की अनुपस्थिति के कारण नवंबर और जनवरी के बीच और ज्यादा धीमा हो गया।
इसका परिणाम यह हुआ है कि अब, B.1.167 में एक तीसरे म्यूटेंट की पहचान की गई है और विशेषज्ञ उम्मीद कर रहे हैं कि इसके प्रसार को रोकने के लिए बिना देरी किये ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।
क्या है जीनोम सिक्वेंसिंग
किसी भी वायरस के बारे में जानकारी जुटाने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग होती है। यह एक तरह से वायरस का बायोडाटा पता लगाना है। इसमें पता लगाया जाता है कि वायरस कैसा दिखता है। वायरस के बारे में पता लगाने की विधि को ही जीनोम सिक्वेंसिंग कहते हैं।
इस तरह की जानकारी न केवल नियंत्रण उपायों को डिजाइन करने में, बल्कि दवाओं और टीकों के विकास में भी महत्वपूर्ण है। वास्तव में, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और कुछ अन्य देशों से जीन सीक्वेंस के कारण ही रिकॉर्ड समय में एक टीका विकसित किया जा सका है।
सरकार ने इस साल जनवरी में ही 10 प्रयोगशालाओं के नेटवर्क के माध्यम से जीनोम सिक्वेंसिंग को तेज करने के लिए इंडियन SARS-CoV2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (INSACOG) की स्थापना की थी।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, कई स्रोतों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले हफ्ते ही इस डबल म्यूटेंट से एक अन्य म्यूटेंट 'ट्रिपल-म्यूटेंट' के विकसित होने की संभावना की जानकारी दी थी और तीन अलग-अलग किस्मों का पता चला है।
ट्रिपल-म्यूटेंट किस्मों में से दो में स्पाइक प्रोटीन में नया म्यूटेंशन होता है और यह महाराष्ट्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ से एकत्र नमूनों में पाया गया है। स्ट्रेन के तीसरे संस्करण में स्पाइक प्रोटीन के बाहर म्यूटेंशन होता है। लेकिन अभी भी इसे महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे महाराष्ट्र, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में फिर से 17 नमूनों में देखा गया है।
एक सूत्र के अनुसार, पश्चिम बंगाल ऐसे म्यूटेंशन के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहा है। नए ट्रिपल म्यूटेंट वायरस को मानव प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को विकसित करने में और भी अधिक सक्षम बना सकता है। इसके लिए बहुत सारे नमूनों के बहुत अधिक सिक्वेसिंग करने की आवश्यकता है।
सूत्रों के यह भी कहना है कि हम यह नहीं जानते हैं कि कौन सा संस्करण दूसरी लहर में कितना योगदान दे रहा है। हमारे पास कोई रास्ता नहीं है। यह B.1.617 या B.1.1.7 या फिर दोनों हो सकते हैं। यही कारण है कि जीनोमिक सिक्वेंसिंग बहुत महत्वपूर्ण है।