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Paris Agreement: पेरिस समझौते से भारतीयों को मिलेगा फायदा, हर साल गर्मी वाले 30 दिनों से मिलेगी राहत

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 16, 2025 14:50 IST

Paris Agreement:रिपोर्ट में कहा गया है कि इस वर्ष 10 साल पूरे कर रहा यह वैश्विक समझौता दुनिया को एक सुरक्षित जलवायु की दिशा में ले जा रहा है, लेकिन मौजूदा गति और प्रयास इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

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Paris Agreement: यदि दुनिया के देश 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के तहत अपने उत्सर्जन में कटौती संबंधी वादों को पूरा करते हैं और इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को 2.6 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने में सफल होते हैं, तो भारत में हर साल अत्यधिक गर्मी वाले 30 दिनों से बचा जा सकता है। एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है। बृहस्पतिवार को प्रकाशित इस विश्लेषण में, क्लाइमेट सेंट्रल और वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन ने बताया कि यदि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा किया जाए तो वैश्विक स्तर पर औसतन 57 बेहद गर्म दिनों से बचा जा सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस वर्ष 10 साल पूरे कर रहा यह वैश्विक समझौता दुनिया को एक सुरक्षित जलवायु की दिशा में ले जा रहा है, लेकिन मौजूदा गति और प्रयास इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि 2.6 डिग्री सेल्सियस पर भी अगर देश जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए तेजी से कदम नहीं उठाते हैं तो आने वाली पीढ़ियों को खतरनाक गर्मी, गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों और बढ़ती असमानता का सामना करना पड़ेगा।

अध्ययन में पाया गया कि पेरिस समझौते से पहले वैज्ञानिकों द्वारा अनुमानित स्तर यानी चार डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि पर दुनिया को प्रति वर्ष औसतन 114 गर्म दिनों का सामना करना पड़ेगा। अगर देश अपने वर्तमान वादों को पूरा करते हैं और तापमान वृद्धि को 2.6 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखते हैं तो यह संख्या सालाना 57 दिनों तक कम हो सकती है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि भारत में गर्म दिनों की संख्या में साल में तीस दिन की कमी हो सकती है, जबकि केन्या में कम गर्म दिन की संख्या में 82, मेक्सिको में 77, ब्राजील में 69, मिस्र में 36 और अमेरिका व ब्रिटेन में क्रमशः 30 और 29 दिन की कमी आ सकती है। ‘इंपीरियल कॉलेज लंदन’ में जलवायु विज्ञान की प्रोफेसर फ्रीडेरिक ओटो ने कहा, ‘‘पेरिस समझौता एक शक्तिशाली, कानूनी रूप से बाध्यकारी ढांचा है जो हमें जलवायु परिवर्तन के सबसे गंभीर प्रभावों से बचने में मदद कर सकता है।

हालांकि, देशों को तेल, गैस और कोयले के इस्तेमाल से दूरी बरतने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। हमारे पास जीवाश्म ईंधन से दूर जाने के लिए आवश्यक सभी जानकारी और तकनीक मौजूद हैं लेकिन तेजी से आगे बढ़ने के लिए मजबूत और निष्पक्ष नीतियों की आवश्यकता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘राजनीतिक नेताओं को पेरिस समझौते के कारणों को और अधिक गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। यह हमारे मानवाधिकारों की रक्षा के बारे में है। तापमान में एक डिग्री की भी वृद्धि चाहे वह 1.4, 1.5 या 1.7 डिग्री सेल्सियस हो, लाखों लोगों के लिए सुरक्षा और पीड़ा के बीच का अंतर पैदा करेगा।’’

लगभग 200 देशों ने 2015 में पेरिस समझौते को अपनाया था जिसका उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना और इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के प्रयास जारी रखना है। तापमान वृद्धि पहले ही 1.3 डिग्री सेल्सियस को पार कर चुकी है और वैश्विक उत्सर्जन में वृद्धि जारी है। विश्व मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, कार्बन डाइऑक्साइड की वैश्विक औसत सांद्रता 2023 से 2024 तक 3.5 भाग प्रति मिलियन तक बढ़ जाएगी जो 1957 में आधुनिक मापन शुरू होने के बाद से सबसे बड़ी वृद्धि है।

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