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स्ट्रोक, हृदय, श्वसन, अल्जाइमर और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में तेजी से वृद्धि?, स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने दी चेतावनी, हर पल इस प्रकोप का असर?

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 19, 2025 12:30 IST

वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) शून्य से 50 के बीच ‘अच्छा’, 51 से 100 के बीच ‘संतोषजनक’, 101 से 200 के बीच ‘मध्यम’, 201 से 300 के बीच ‘खराब’, 301 से 400 के बीच ‘बहुत खराब’ और 401 से 500 के बीच ‘गंभीर’ श्रेणी में माना जाता है।

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ठळक मुद्देगर्मियों के महीनों में वायु गुणवत्ता सूचकांक अक्सर 200-250 के बीच रहता है।वायु प्रदूषण साल भर चलने वाला सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन गया है।अत्यधिक प्रदूषित शहरों में लोग शायद अधिक समय तक जीवित रह सकते हैं।

नई दिल्लीः स्वास्थ्य विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं ने चेतावनी दी कि प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने से स्ट्रोक, हृदय और श्वसन संबंधी बीमारियों, अल्जाइमर जैसे तंत्रिका संबंधी विकारों और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में तेजी से वृद्धि हो रही है, जबकि स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर भी दबाव बढ़ रहा है। यहां आयोजित 'इलनेस टू वेलनेस' (आईटीडब्ल्यू) सम्मेलन में चिकित्सा विशेषज्ञों ने जहरीली हवा से उत्पन्न गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों को सामने लाने वाले आंकड़े प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि गर्मियों के महीनों में वायु गुणवत्ता सूचकांक अक्सर 200-250 के बीच रहता है।

इस बात पर जोर दिया कि वायु प्रदूषण साल भर चलने वाला सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन गया है जो देश के विकास के लिए खतरा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) शून्य से 50 के बीच ‘अच्छा’, 51 से 100 के बीच ‘संतोषजनक’, 101 से 200 के बीच ‘मध्यम’, 201 से 300 के बीच ‘खराब’, 301 से 400 के बीच ‘बहुत खराब’ और 401 से 500 के बीच ‘गंभीर’ श्रेणी में माना जाता है।

पूर्व स्वास्थ्य सचिव और ‘इलनेस टू वेलनेस फाउंडेशन’ (आईटीडब्ल्यूएफ) के अध्यक्ष राजेश भूषण ने कहा कि चुनौती केवल प्रदूषण के स्रोतों को नियंत्रित करने में ही नहीं, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इसके गंभीर प्रभावों से निपटने की भी है। उन्होंने कहा, "अत्यधिक प्रदूषित शहरों में लोग शायद अधिक समय तक जीवित रह सकते हैं,

लेकिन उन्हें ऐसी दीर्घकालिक बीमारियां हो जाती हैं जो उत्पादकता, जीवन की गुणवत्ता और आर्थिक योगदान को कम करती हैं।" उन्होंने मजबूत निवारक स्वास्थ्य देखभाल उपायों की मांग की। मैक्स अस्पताल के दलजीत सिंह ने कहा कि वैश्विक स्तर पर होने वाले लगभग 17 प्रतिशत स्ट्रोक प्रदूषित हवा से जुड़े होते हैं, और अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या में स्पष्ट रूप से मौसम के हिसाब से वृद्धि देखी जाती है। सम्मेलन में 'दिल्ली एनसीआर वायु प्रदूषण का मुकाबला' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गई,

जिसमें लंदन और बीजिंग जैसे शहरों के अनुभवों के आधार पर, आंकड़ों पर आधारित नीतिगत कदम उठाने की वकालत की गई है। सम्मेलन में शिरकत करने वाले विशेषज्ञों ने सहमति जताई कि वायु प्रदूषण बीमारियों को बढ़ाने वाला एक बड़ा कारक है, जो शरीर के विभिन्न अंगों को प्रभावित करता है और इसका सबसे ज्यादा असर गरीबों, बच्चों तथा बाहर काम करने वाले मजदूरों पर पड़ता है। 

टॅग्स :कोहरामौसमभारतीय मौसम विज्ञान विभागमौसम रिपोर्टदिल्लीHealth and Family Welfare Department
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