बुराड़ी कांड: 'साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी' का सहारा ले सकती है पुलिस, ऐसे खुलेगा 11 मौतों के रहस्य
By उस्मान | Published: July 4, 2018 06:19 PM2018-07-04T18:19:46+5:302018-07-04T18:19:46+5:30
बुराड़ी का सामूहिक आत्महत्या कांड भारत ही नहीं, दुनिया का सबसे अजीब मामला है। इस घटना को अगर मेडिकल साइंस समेत अन्य नजरियों से देखा जाए तो सिर्फ अंधविश्वास के कारण सामूहिक आत्महत्या की बात गले नहीं उतरती।
बुराड़ी मामले की जांच कर रही क्राइम ब्रांच ने मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स से इस बात को लेकर अनौपचारिक राय मांगी है कि क्या भाटिया परिवार साझा मनोवैज्ञानिक विकार (psychotic disorder) से पीड़ित तो नहीं था। पुलिस इस मामले की जांच करने के लिए जांच की नई टेक्निक 'साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी' (psychological autopsy) का सहारा लेने की योजना बना रही है। बता दें कि इस टेक्निक का आरुषि तलवार और सुनंदा पुष्कर हत्या मामले में भी इस्तेमाल हो चुका है। पुलिस इस मामले को लेकर विद्या सागर इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस के डॉक्टरों के संपर्क में है।
इस मामले की जांच के लिए साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी क्यों?
घर में मिली डायरी में नोटिस के अनुसार, पुलिस को घटनास्थल से जो रजिस्टर और हाथ से लिखे नोट मिले हैं, उनसे ये बात निकल कर आई है कि भाटिया परिवार के बेटे ललित को मृत्यु के बाद भी अपने पिता को देखने और उनसे बात करने का भ्रम था। वह अक्सर घर वालों से पिता की आवाज में बातें किया करता था और उन्हें निर्देश दिया करता था। उसी ने रजिस्टर में आत्महत्या करने का पूरा तरीका भी लिखा था। अब तक की जांच में ये आशंका जताई जा रही है कि ललित का पूरे परिवार पर इतना प्रभाव था कि उसने सभी को भगवान से मिलने के नाम पर आत्महत्या के लिए तैयार कर लिया था। चूंकि पूरा परिवार उसके भ्रम को मान्यता देने लगा था, तो इसलिए सभी आसानी से इसके लिए तैयार हो गए।
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साइकोटिक डिसऑर्डर क्या होता है?
दिल्ली के मशहूर साइकेट्रिस्ट अभिनव मोंगा के अनुसार, साइकोटिक डिसऑर्डर यानी साझा मनोविकृति ऐसी मानसिक अवस्था है जिसमें कोई एक व्यक्ति भ्रमपूर्ण मान्यताओं का शिकार होता है, लेकिन उससे जुड़े दूसरे लोग इस बीमारी से ग्रस्त नहीं होते, लेकिन उसके भ्रम और विश्वास को मान्यता देने लगते हैं। यह मनोविकृति धीरे-धीरे एक से दूसरे व्यक्ति में प्रेषित होती है। इस मनोवकृति के लोग अन्य मनोविकृतियों से ग्रसित लोगों की तरह समाज से अलग-थलग नहीं होते और आस-पड़ोस से दोस्ताना संबंध बनाकर रखते हैं।
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साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी क्या है?
साइकोलॉजिकल ऑटोपसी आत्महत्याओं की जांच करने का तरीका है। इसमें मृतक के परिजनों, दोस्तों, जानने वालों, उसका इलाज करने वाले डॉक्टरों से उसके बारे में बात कर मृतक की मानसिकता का विश्लेषण किया जाता है। इसके अलावा इस विश्लेषण में मृतक के इंटरनेट और सोशल मीडिया प्रोफाइल, उनपर कमेंट्स, फोन कॉल्स और मैसेजेज, पसंद-नापसंद और आमजीवन में व्यवहार संबंधी जानकारी के अलावा फॉरेंसिक जांच की मदद से मृतक की मानसिकता की अवस्था का विश्लेषण किया जाता है। इससे पहले आरुषी हत्याकांड और सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में साइकोलॉजिकल ऑटोपसी का सहारा लिया जा चुका है।
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दूसरे देशों में भी हुआ है साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी का इस्तेमाल
द ब्रिटिश जनरल ऑफ साइकिएट्री के मुताबिक, बीते दो दशकों में ब्रिटेन समेत दुनिया के अन्य देशों में भी आत्महत्या के मामले बढ़े हैं। इन मामलों में आत्महत्या के कारणों को जानने के लिए साइकोलॉजिकल अटॉप्सी की मदद ली गई, जिसमें पता चला कि ज़्यादातर मौतों की वजह बेरोज़गारी, अकेलापन, मानसिक विकार और नशे की लत थी।
क्या पुलिस को साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी से मदद मिलेगी?
एक्सपर्ट के अनुसार, अगर मामला आत्महत्या का है तो निश्चित तौर पर इससे मदद मिलेगी। इस मामले में सामने आया है कि प्रियंका की अपने मंगेतर से घटना से एक दिन पूर्व मोबाइल फोन पर काफी देर तक बातचीत हुई थी। इसमें प्रियंका बहुत खुश थी और बातचीत से कहीं ऐसा नहीं लग रहा था कि वह किसी तनाव और मानसिक परेशानी में हो। वो अपने मंगेतर से किस तरह की बातें करती थी और मौत के ठीक पहले अगर उसकी बात हुई तो वो क्या थी, अगर ये पता चल जाए तो स्थिति को समझने में मदद मिल सकती है। हालांकि यह भी बताया जा रहा है कि उन लोगों का व्यवहार बहुत ही सामान्य था, तो ये समझना जरूरी है कि सारे मानसिक विकार प्रकट नहीं होते हैं। हो सकता है कि वे लोग किसी मानसिक परेशानी से गुज़र रहे हों, लेकिन वो सामने प्रकट नहीं कर रहे हों।
(फोटो- सोशल मीडिया)