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Ayurveda: जानिए टॉप 5 जड़ी-बूटियों के बारे में, जो आपको बनाती हैं निरोग

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: February 21, 2024 07:55 IST

आयुर्वेद के अनुसार समस्‍त शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं को नियंत्रण त्रिदोष के निवारण से जुड़ा है और इसके लिए आयुर्वेद में कई जड़ी-बूटियों का उल्लेख किया गया है।

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ठळक मुद्देआयुर्वेद के अनुसार समस्‍त शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं को नियंत्रण त्रिदोष के निवारण से जुड़ा हैत्रिदोष यानि वात, पित्त और कफ के निवारण के लिए आयुर्वेद में कई जड़ी बूटियों का जिक्र है ये आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां हमारे शरीर को मजबूत बनाती हैं, जिससे हम बीमारियों से लड़ते हैं

Ayurveda:भारत की आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति हजारों वर्षों से स्वास्थ्य विज्ञान में अपना विशेष योगदान दे रहा है। आयुर्वेद की मान्यता है कि प्रत्‍येक मानवीय शरीर की रचना पंचतत्‍वों यानि आकाश, जल, वायु, अग्नि, पृथ्‍वी) से मिलकर हुई है लेकिन शरीर में पैदा होने वाले त्रिदोष, जिसे वात, पित्‍त और कफ कहा जाता है।

शरीर में त्रिदोष के निर्माण में होने वाली अधिकता से रोग पैदा होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार समस्‍त शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं को नियंत्रण पंचतत्‍वों से जुड़े गुणों के कारण होते हैं। वात का संबंध आकाश से, वायु का संबंध कफ से और पृथ्वि और जल का संबंध पित्त से होता है।

इन्हीं त्रिदोष के निवारण के लिए आयुर्वेद में कई जड़ी-बुटियों का उल्लेख किया गया है, जिनके बारे में हम यहां पर चर्चा कर रहे हैं। इन्हें ध्यान से पढ़ें और उन जड़ी-बुटियों का लाभ जाने, जिनसे हमारे शरीर का इम्यूनिटी मजबूत होता है और उस कारण से शरीर रोगों से लड़ने में मजबूत बनता है।

ब्राह्मी (Brahmi): ब्राह्मी एक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है, जो देखने में बेहद सामान्य सी झाड़ी लगती है लेकिन ये बेहद असरकारी होता है। इसके प्रयोग से मस्तिष्क में सूजन कम होती है। इसके अलावा ब्राह्मी शारीरिक तनाव से निपटने की क्षमता को भी बढ़ाता है।

हालांकि इसका उपयोग ज्वर, त्वचा रोगों, प्लीहा संबंधी विकारों में भी होता है। यह नर्वस सिस्टम के लिए अचूक औषधि है। यह बच्चों के लिए स्मृति और मेधावर्धक है। मिर्गी के रोग में इसका खासतौर से प्रयोग होता है। मानसिक विकारों के इलाज के लिए तो ब्राह्मी को 'रामबाण' की संज्ञा दी गई है।

शतावरी (Asparagus): शतावरी एक जड़ी होती है, जिसमें बेहद कम कैलोरी होती है और इसे आवश्यक विटामिन का उत्कृष्ट स्रोत माना जाता है। इसका कोई पौधा नहीं होता, ये एक बेल होती है। शतावरी की बेल की जड़ को सुखाकर चूर्ण के रूप में उपयोग किया जाता है।

शतावरी एक बेहद महत्वपूर्ण रसायन औषधि है। यह बौद्धिक विकास, पाचन को सुदृढ़ करने वाली, नेत्र ज्योति को बढ़ाने वाली, उदर गत वायु दोष को ठीक करने वाली, शुक्र बढ़ाने वाली, नव प्रसूता माताओं में स्तन" को बढ़ाने वाली औषधि है। शतावरी में विशेष रूप से फोलेट और विटामिन ए, सी और के की मात्रा पायी जाती है।

अश्वगंधा (Ashwagandha): अश्वगंधा आयुर्वेद में अत्यधिक प्रयोग होने वाली ऐसी औषधि है, जो आपके शरीर को तनाव को अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में मदद कर सकता है।  औषधि बनाने के लिए अश्वगंधा की जड़ों को प्रयोग किया जाता है। अश्वगंधा की जड़ को सुखाकर चूर्ण बनाकर उपयोग में लाया जाता है।

अश्वगंधा के चूर्ण के सत्व का सेवन तो और भी ज्यादा लाभदायक है। अश्वगंधा चूर्ण बलकारी, शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाने वाला, शुक्रवर्धक खोई हुई ऊर्जा को दोबारा देकर लंबी उम्र का वरदान देता है। इसके अलावा यह ब्लड शुगर को कम करता है और नींद, याददाश्त और मांसपेशियों की वृद्धि में सुधार कर सकता है।

गिलोय (Giloy): गिलोय को आयुर्वेद में अमृता या गुडूचि के नाम से भी जाना जाता है। गिलोय अथवा अमृता अपने नाम से ही गुणों को प्रदर्शन करती है। यह एक बेल होती है, जिसके तने से रस निकालकर अथवा सत्व बनाकर औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।

गिलोय स्वाद में कड़वी होती है लेकिन त्रिदोषनाशक होती है। इसका प्रयोग रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, आर्थराइटिस, त्वचा रोग, प्रमेह, हृदय रोग आदि रोगों में किया जाता है। गिलोय डेंगू होने पर घटी हुई प्लेटलेट्स की मात्रा को बहुत जल्दी सामान्य बनाती है। गिलोय खून के अत्यधिक बह जाने और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए भी रामबाण है।

आंवला (Gooseberry): आंवले को आयुर्वेद की संहिताओं में रसायन कहा गया है। आंवले को प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए इस्तमाल किया जाता है। इसके अलावा आंवले को त्वचारोगहर, ज्वरनाशक, रक्तपित्त हर, अतिसार, प्रवाहिका, हृदय रोग आदि में बेहद लाभकारी माना गया है। आंवले का नियमित सेवन से लंबी आयु तयशुदा हो जाती है।

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