NEET आरक्षण मामले पर सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी, कहा- आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं

By रामदीप मिश्रा | Published: June 11, 2020 01:49 PM2020-06-11T13:49:32+5:302020-06-11T13:49:32+5:30

माकपा ने अपनी याचिका में स्वास्थ्य मंत्रालय सहित कई मंत्रालयों के साथ ही भारतीय चिकित्सा परिषद और नेशनल बोर्ड आफ एग्जामिनेशंस को पक्षकार बनाया था। कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया है।

Neet: Reservation Not a Fundamental Right, Says Supreme Court | NEET आरक्षण मामले पर सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी, कहा- आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं

NEET आरक्षण मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह मौलिक अधिकार नहीं है। (फाइल फोटो)

Highlights तमिलनाडु में NEET पोस्ट ग्रेजुएशन रिजर्वेशन मामले को लेकर गुरुवार (11 जून) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है।सुप्रीम अदालत ने एक कहा है कि आरक्षण कोई बुनियादी अधिकार नहीं है।

नई दिल्लीः तमिलनाडु में NEET पोस्ट ग्रेजुएशन रिजर्वेशन मामले को लेकर गुरुवार (11 जून) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है। इस दौरान सुप्रीम अदालत ने एक कहा है कि आरक्षण कोई बुनियादी अधिकार नहीं है। दरअसल,  मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की तमिलनाडु इकाई और द्रमुक ने याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है।  

माकपा ने वर्ष 2020-21 में मेडिकल और डेन्टल पाठ्यक्रमों के लिए अखिल भारतीय कोटे में राज्य द्वारा छोड़ी गई सीटों में ओबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये क्रमश: 50, 18 और एक प्रतिशत आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। 

इससे पहले, द्रमुक ने भी मेडिकल के पाठ्यक्रमों में प्रवेश के मामले में छात्रों को इसी तरह की राहत का अनुरोध करते हुए शीर्ष अदालत में आवेदन दायर किया था। 

मापका ने अपनी याचिका में ये की थी मांग

माकपा ने अपनी याचिका में कहा है कि चूंकि प्रतिवादी केन्द्र, भारतीय चिकित्सा परिषद और अन्य तमिलनाडु में राज्य द्वारा सरकारी और निजी मेडिकल कालेजों में अखिल भारतीय कोटे में छोड़ी गई सीटों की श्रेणी में अन्य पिछड़े वर्गों, अति पिछड़े वर्ग को वैधानिक आरक्षण प्रदान करने में विफल रहा है और मेडिकल के स्नातक और पीजी पाठ्यक्रमों में अनुसूचित जाति-जनजातियों के छात्रों को आरक्षण देने में विसंगतियां रही हैं, इसलिए उसे न्यायालय में आना पड़ा है। 

पार्टी ने अपनी याचिका में स्वास्थ्य मंत्रालय सहित कई मंत्रालयों के साथ ही भारतीय चिकित्सा परिषद और नेशनल बोर्ड आफ एग्जामिनेशंस को पक्षकार बनाया है। याचिका में अनुरोध किया गया है कि प्रतिवादियों को तमिलनाडु पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति और जनजाति (राज्य के अंतर्गत शैक्षणिक संस्थाओं और सेवाओं की नियुक्तियों में आरक्षण) कानून का पालन करने का निर्देश दिया जाये। इसमें अखिल भारतीय कोटे में राज्य द्वारा छोड़ी गयी सीटों में से अन्य पिछड़े वर्गों के लिये 50 प्रतिशत, अनुसूचित जाति के लिये 8 प्रतिशत और जनजाति के लिए एक प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। 

इसी तरह पार्टी ने याचिका में न्यायालय से तमिलनाडु में ओबीसी के लिये 50 प्रतिशत आरक्षण के नियम के पालन के बगैर नीट-यूजी -2020 के आयोजन या किसी तरह की काउन्सलिंग करने पर अंतरिम रोक लगाने का अनुरोध भी किया है।

Web Title: Neet: Reservation Not a Fundamental Right, Says Supreme Court

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