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दुमकाः कोरोना का असर, ऑनलाइन क्लास को बढ़ावा, अनूठा तरीका, दीवारों पर ब्लैकबोर्ड बनाकर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन

By एस पी सिन्हा | Updated: September 25, 2020 19:19 IST

झारखंड के दुमका जिला मुख्यालय से 40 किलो मीटर दूर जरमुंडी ब्लॉक के दुमर्थर मिडिल स्कूल में 290 बच्चे आज अनूठे तरीके से स्कूली शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. यह पहल की है एक शिक्षक ने. डॉ सपन कुमार पत्रलेख नाम के इस शिक्षक की आज सभी तारीफ कर रहे हैं.

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ठळक मुद्देसरकारी स्कूल के हेडमास्टर डॉ सपन कुमार पत्रलेख ने कुछ अलग करते हुए घर की दीवारों को ब्लैकबोर्ड बना दिया है.स्कूल के हेडमास्टर सपन कुमार पत्रलेख ने गांव के घरों की दीवार को ब्लैकबोर्ड में बदल दिया है. हेडमास्टर के अलावा स्कूल के चार अन्य शिक्षक छात्रों को लाउड स्पीकर के जरिए गांव में घूम-घूम कर पढ़ा रहे हैं.

रांचीः कोरोना संकट के बीच एक तरफ जहां देश भर के स्कूलों में ऑनलाइन क्लास को बढ़ावा दिया जा रहा है, तो वहीं झारखंड के शिक्षक डॉ सपन कुमार ने महसूस किया कि गांवों में ऑनलाइन क्लास चलाना नामुमकिन नहीं, तो मुश्किल जरूर है.

ऐसे में उन्होंने तय किया कि बच्चों को ऑनलाइन क्लास और टेलीकॉम कंपनियों के नेटवर्क के भरोसे छोड़ने की बजाय अभिभावकों की मदद से बच्चों की पढ़ाई का वैकल्पिक रास्ता तलाशेंगे. इसतरह से शिक्षकों और अभिभावकों के संयुक्त पहल से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए बच्चों को उनके घर के पास ही शिक्षा दी जा रही है. 

झारखंड के दुमका जिला मुख्यालय से 40 किलो मीटर दूर जरमुंडी ब्लॉक के दुमर्थर मिडिल स्कूल में 290 बच्चे आज अनूठे तरीके से स्कूली शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. यह पहल की है एक शिक्षक ने. डॉ सपन कुमार पत्रलेख नाम के इस शिक्षक की आज सभी तारीफ कर रहे हैं. सरकारी स्कूल के हेडमास्टर डॉ सपन कुमार पत्रलेख ने कुछ अलग करते हुए घर की दीवारों को ब्लैकबोर्ड बना दिया है.

छात्रों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए पढ़ा रहे हैं

वे इसी के जरिए छात्रों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए पढ़ा रहे हैं. स्कूल के हेडमास्टर सपन कुमार पत्रलेख ने गांव के घरों की दीवार को ब्लैकबोर्ड में बदल दिया है. सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए हर छात्र के लिए एक अलग ब्लैकबोर्ड है. हेडमास्टर के अलावा स्कूल के चार अन्य शिक्षक छात्रों को लाउड स्पीकर के जरिए गांव में घूम-घूम कर पढ़ा रहे हैं.

स्कूल हेडमास्टर सपन पत्रलेख कहते हैं कोरोना के कारण स्कूल काफी समय से बंद पड़ा है. मैंने सोचा कि अगर स्कूल आगे भी बंद रहा तो छात्र जो पढे़ हैं, वह भूल जाएंगे. गांवों में इंटरनेट और मोबाइल सेवा उपलब्ध नहीं है. इसलिए हमने छात्रों को इस तरीके से पढाने के बारे में सोचा.

आदिवासी बच्चे दीवार पेंटिंग को आसानी से सीख लेते हैं

पत्रलेख कहते हैं कि आदिवासी बच्चे दीवार पेंटिंग को आसानी से सीख लेते हैं, इसलिए हमने गांव की दीवारों को ब्लैकबोर्ड के रूप में बदल दिया. यह प्रयोग छात्रों को आकर्षित करने में सफल रहा. दुमका जिला की उपायुक्त राजेश्वरी बी ने जरमुंडी ब्लॉक स्थित डुमरथर गांव में चल रहे इस अभिनव प्रयोग के बारे में ट्वीट करके जानकारी दी.

स्कूल के शिक्षक ग्रामीणों और छात्रों के अभिभावकों की मदद से चार ऐसी जगह बनाए हैं, जहां पर 50 छात्रों को एक साथ सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को मानते हुए पढाया जा सके. प्रत्येक शिक्षक इन चार जगहों में से एक पर बारी-बारी से पढ़ाते हैं. ब्लैक बोर्ड ज्यादातर छात्रों के अपने घर की दीवारों पर बना है. ऐसे में उन्हें भी कोई परेशानी नहीं होती.

संक्रमण से बचाव का भी पूरा ध्यान रखा गया

वे स्कूल टाइमिंग के अनुसार ड्रेस पहनकर रोजाना क्लास लेते हैं. संक्रमण से बचाव का भी पूरा ध्यान रखा गया है. इसी कारण से प्रत्येंक छात्र को चौक और डस्टर दिया गया है. शिक्षक ब्लैक बोर्ड पर छात्रों को पढाते हैं और वहीं पर उनके सवालों का जवाब भी दे देते हैं. स्कूल के हेडमास्टर पत्रलेख कहते हैं कि कोविड-19 महामारी के बीच सफलतापूर्व छात्रों के लिए कक्षाएं आयोजित करने का श्रेय उपायुक्त को जाता है. वे हमें समय-समय पर निर्देश देते रहते हैं.

उपायुक्त राजेश्वरी बी ने बताया कि गांव की दीवारों को ब्लैकबोर्ड में तब्दील कर दिया गया है. जरमुंडी प्रखंड के डुमरथर में एक शिक्षक ने बच्चों की शिक्षा रुक न जाये, इसलिए उनके घर जाकर पढ़ाने का निश्चय किया. अभिभावकों और शिक्षकों ने मिलकर तय किया कि उनके बच्चों की पढ़ाई रुकनी नही चाहिए.

उपायुक्त ने लिखा है कि सोशल मीडिया पर कंटेंट शेयर किया जाता

उपायुक्त ने लिखा है कि शिक्षकों और अभिभावकों की इस समझदारी ने उन्हें काफी प्रेरित किया है. उपायुक्त ने कुछ तस्वीरें भी शेयर की हैं. इसमें दिख रहा है कि डॉ सपन कुमार पत्रलेख माइक से बच्चों को पढ़ा रहे हैं. उपायुक्त ने लिखा है कि सोशल मीडिया पर कंटेंट शेयर किया जाता है. यह कंटेंट हर बच्चे तक नहीं पहुंच सकता, क्योंकि सुदूर गांवों में नेटवर्क की समस्या होती है. ऐसे में डॉ सपन कुमार पत्रलेख ने शिक्षा के प्रति जो समर्पण दिखाया है, वह वाकई काबिल-ए-तारीफ है.

वहीं, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद डॉ सपन कुमार की सराहना की. मुख्यमंत्री ने ट्विटर पर लिखा, ‘डॉ सपन कुमार जैसे शिक्षकों एवं अभिवावकों की लगन और कर्मठता कोरोना के इस विकट संक्रमण काल में भी गरीब बच्चों तक शिक्षा पहुंच रही है. सभी को मेरी तरफ से अनेक-अनेक शुभकामनाएं एवं जोहार.’

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