कहानी उस प्रभाकरन की, जो पहनता था गले में साइनाइड की माला

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: June 22, 2023 05:04 PM2023-06-22T17:04:53+5:302023-06-22T17:11:15+5:30

श्रीलंका में खून की नदियां बहाने वाला प्रभाकरन और उसके लिट्टे लड़ाके अपने गले में हर वक्त सायनाइड की माला पहनते थे। प्रभाकरन ने उस राजीव गांधी की हत्या करवा दी, जिन्होंने अपना बुलेटप्रूफ जैकेट उसे दिया था।

story of Prabhakaran, who used to wear a cyanide garland around his neck | कहानी उस प्रभाकरन की, जो पहनता था गले में साइनाइड की माला

कहानी उस प्रभाकरन की, जो पहनता था गले में साइनाइड की माला

Highlightsप्रभाकरन, श्रीलंका का वो कुख्यात अपराधी था, जिससे भारत समेत पूरी दुनिया दहशत में थी प्रभाकरन ने उस राजीव गांधी की हत्या करवा दी, जिन्होंने अपना बुलेटप्रूफ जैकेट उसे दिया था21 मई 2009 को मारा गया प्रभाकरन श्रीलंकाई तमिलों का मसीहा था

कुख्यात वेलुपिल्लई प्रभाकरन, जिसे दुनिया पूरी प्रभाकरन के नाम से जानती थी। इस दुर्दांत अपराधी को मरे 14 साल हो चुके हैं, लेकिन श्रीलंका में अब भी इसका नाम बड़े ही खौफ के साथ लिया जाता है। इस शख्स ने भारत के उस पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या करवा दी थी, जिन्होंने खुद अपने हाथों से इसे बुलेटप्रूफ जैकेट दी थी। जी हां, अपनी मौत से पहले तक यह शख्स और इसका संगठन भारत की सुरक्षा एजेंसियों के निशाने पर थे।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि खून की नदियां बहाने वाला प्रभाकरन और उसके लड़ाके अपने गले में हर वक्त सायनाइड की माला पहनते थे। प्रभाकरन कभी अपनी पिस्तौल खाली नहीं करता था। श्रीलंका को तोड़कर स्वतंत्र तमिल राष्ट्र की मांग करने वाला प्रभाकरन कभी चावल नहीं खाता था।

वो इतना खूंखार था कि उसके संगठन में जिसने भी इश्क किया, वो उसकी जान ले लेता था। उसके संगठन में महिला और पुरुष लड़ाकों को शादी या शारीरिक संबंध बनाने का कोई आधिकार नहीं था लेकिन खुद प्रभाकरन ऐसे बंधनों से आजाद था, उसने शादी भी की थी और बच्चे भी पैदा किया था। तो आज हम बता रहे हैं उसी प्रभाकर की रहस्यमयी सारी परतें।

प्रभाकर ने 'ईलम' की मांग करके श्रीलंका की संप्रभुता को चुनौती दी 

इस शख्स ने श्रीलंका में उस आतंकी संगठन को खड़ा किया था, जिसने श्रीलंका में तमिल संघर्ष के नाम पर इतना खून बहाया कि भारत समेत विश्व के कई देशों ने उसे प्रतिबंधित कर दिया था। एक देश के तौर पर श्रीलंका की संप्रभुता को चुनौती देने वाले खतरनाक आतंकी संगठन लिट्ठे और उसके चीफ प्रभाकरन को श्रीलंकाई सरकार ने 18 मई 2009 को एक मिलिट्री ऑपरेशन में मार गिराया था। कहानी उसी प्रभाकरन की।

कहा जाता है कि प्रभाकर का संगठन लिट्टे आज भी सक्रिय है और इससे हमदर्दी रखने वाले लोग पूरे विश्व में फैले हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि दक्षिण भारत के तमिलनाडु में प्रभाकर का समर्थन न केवल आम लोग बल्कि वहां के कुछ राजनैतिक दल भी करते हैं। यहां हम उसी लिट्टे और प्रभाकरन की सारी गुत्थी खोल रहे हैं आपके लिए।

प्रभाकरन वो नाम है, जिसका इतिहास न केवल श्रीलंका बल्कि भारत के साथ भी बेहद मजबूती से जुड़ता है। वेलुपिल्लई प्रभाकरन तमिल अस्मिता के नाम पर अलग 'ईलम' की मांग करता था। उसके लिए उसने कई ऐसी हत्याएं करवाई, जिससे न केवल श्रीलंका बल्कि भारत समेत पूरा विश्व हिल गया था। उसकी हत्या की फेहरिश्त में केवल वीवीआईपी लोगों के नाम शामिल होते थे। ये वो नाम होते थे, जो उसकी ईलम की मांग का विरोध करते थे।

प्रभाकर ने तमिल बनाम सिंहली संघर्ष में खड़ा कर दिया लिट्टे जैसा आतंकी संगठन

प्रभाकरन को तमिल में थांबी कहा था, जिसका मतलब होता है छोटा भाई। 26 नवंबर 1954 को जाफ़ना में वेलवेथीथुरई शहर में पैदा हुए प्रभाकरन के पिता श्रीलंकाई सरकार में अफ़सर थे। स्कूल के दिनों में प्रभाकरन ने श्रीलंका में तमिलों के खिलाफ हो रहे भेदभाव और सिंहलियों की कथित जातियों से तंग आकर स्कूली पढ़ाई बीच में छोड़ दी और 1972 में तमिल न्यू टाइगर्स नाम का संगठन शुरू किया। प्रभाकर तमिल संघर्ष को हिंसक विद्रोह की ओर ले जाना चाहता था।

प्रभाकरन ने तमिल मुद्दे पर श्रीलंकाई सरकार को झुकाने के लिए बड़े पैमान पर युवा तमिल लड़के-लड़कियों को अपने संगठन में भर्ती किया और साल 1975 में उसने अपने संगठन के नाम में 'ईलम यानी स्वतंत्र राष्ट्र' को जोड़ दिया। उसी साल लिट्टे के गुरिल्ला लड़ाकों ने वेलिकाडे जेल नरसंहार को अंजाम दिया, जिससे श्रीलंका सरकार बुरी तरह से हिल गई। साल 1975 में ही लिट्टे ने पहली राजनीतिक हत्या के तौर पर जाफ़ना के मेयर अल्फ़्रेड दुरियप्पा को निशाना बनाया और आत्मघाती हमले में उन्हें मार गिराया।  

लिट्टे दुनिया का इकलौत आतंकी संगठन था, जिसके पास अपनी थलसेना, नौसेना और वायुसेना का बेड़ा था। लिट्टे के साधारण सैनिकों को टाइगर्स, नौसैनिकों को सी टाइगर्स और वायुसैनिकों को एयर टाइगर्स कहा जाता था। लेकिन लिट्टे की सबसे ख़तरनाक टुकड़ी ब्लैक टाइगर्स के नाम से जानी जाती थी, जो शरीर पर बम बांधकर आत्मघाती हमला करने के लिए कुख्यात थी।

प्रभारकरन किसी की भी हत्या करने में नहीं हिचकता था

70 के दशक के अंत तक प्रभाकरन उत्तरी और पूर्वी श्रीलंका में बहुसंख्यक तमिल आबादी का मसीहा बन बैठा। जाफना और बट्टीकलोवा के जंगलों से प्रभाकरन ने लिट्टे के जरिये श्रीलंका सरकार के खिलाफ खुली जंग शुरू कर दी। इस जंग में न केवल श्रीलंका के सैनिक बल्कि कई राजनेता भी मारे गये। इनमें श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रेमदासा, राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार दामिनी दिसानायके और रंजन विजयरत्ने, तमिल नेता अप्पापिल्लई अमृतालिंगम, उनकी पत्नी योगेसवरम और श्रीलंका के तत्कालीन विदेश मंत्री लक्ष्मण कादिरगमर के नाम शामिल हैं।

यही नहीं प्रभाकरन इतने सनकी किस्म का था कि वो अपने सहयोगियों की भी छोटी से छोटी गलती पर सजा-ए-मौत दे देता था। उसने उमा महेसवरन, सिरी साबरथिनम पद्मनाभा सहित कई ऐसे लोगों को भी मौत के घाट उतारा, जिन्होंने उसका साथ दिया था। अब आते हैं भारत के साथ प्रभाकरन और लिट्टे के कनेक्शन पर तो उसका नाता यूं जुड़ता है। 

जब भारत और श्रीलंका अंग्रेजों के अधीन थे तो उस वक्त की गोरी सरकार भारतीय तमिलों को चाय बागान में काम करने के लिए बतौर मजदूर वहां ले गये थे और फिर भारत से गये तमिल वहीं के होकर रह गये। साल 1949 में श्रीलंका स्वतंत्र राष्ट्र बना तो वहां की सत्ता पर सिंहली हावी हो गये और इस तरह से वो हर क्षेत्र में हावी होते हुए श्रीलंकाई तमिलों के साथ पक्षपात करने लगे और उनका दमन करने लगे।

राजीव गांधी प्रभाकरन को शांति के रास्ते पर लाना चाहते थे

सिंहलियों के इसी दमन और पक्षपात की पैदाईश था प्रभाकरन। इस कारण भारत के तमिल क्षेत्र तमिलनाडु में भी प्रभाकरन को लेकर खासी हमदर्दी थी। भारत सरकार पर भी दबाव था कि वो श्रीलंकाई तमिलों पर हो रहे अत्याचार के मामले में दखल दें और पीड़ित तमिलों के पक्ष में श्रीलंका सरकार पर दबाव बनाएं। भारत सरकार ऐसा करने की मंशा रखती भी थी लेकिन उस मंशा के आड़े आ गई प्रभाकरन का 'ईलम यानी स्वतंत्र राष्ट्र' की मांग।      

साल 1986 के जुलाई महीने में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने प्रभाकरन को 'ईलम' के मुद्दे पर मनाने के लिए भारत आने का न्योता दिया। जिसे प्रभाकरन ने स्वीकार लिया। श्रीलंका सरकार की मंजूरी के बाद भारतीय विदेश सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हरदीप पुरी प्रभाकर को लेने के लिए भारतीय वायुसेना के हेलिकॉप्टर से जाफना गये।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ये वही हरदीप पुरी हैं, जो इस समय नरेंद्र मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं। पुरी साहब प्रभाकरन को लेकर चेन्नई पहुंचे। जहां उन्होंने हवाई अड्डे के वीआईपी लाउंज में प्रभाकरन के खाने में चावल और चिकन करी का ऑर्डर किया। हरदीप सिंह पुरी ने खाने का ऑर्डर प्रङाकर से पूछे बिना यह सोचकर दिया कि दक्षिण भारत और खासकर तमिलनाडु के लोग चावल ज्यादा पसंद करते हैं, इसलिए प्रभाकरन भी खाने में चिकन-चावल पसंद करेगा लेकिन प्रभाकरन ने खाने को देखते ही चावल खाने से इनकार कर दिया।

प्रभाकरन को न तो हिंदी आती थी और न ही अंग्रेजी

उसके बाद प्रभाकरन पास खड़े हरदीप सिंह पुरी की ओर मुड़ा और उन्हें अपनी पिस्तौल दिखाते हुए कहा कि वो चावल की जगह रोटी खाएगा क्योंकि चावल खाने से पिस्तौल के ट्रिगर को दबाने वाली उंगली पर असर पड़ता है। प्रभाकरन अपनी कमर पर कसी बेल्ट में हमेशा लोडेड पिस्तौल रखता था। यही नहीं प्रभाकरन अपनी शर्ट के पॉकेट में चेन से लटकार हमेशा साइनाइट की गोली भी रखता था ताकि मुश्किल समय में वो उसे खाकर अपनी जान दे सके।

खैर, चेन्नई से हरदीप सिंह पुरी एक स्पेशल विमान से वेलुपिल्लई प्रभाकरन को लेकर दिल्ली पहुंचे। दिल्ली के पंचतारा अशोक होटल में उसके ठहरने का इंतजाम किया गया था। जहां हरदीप सिंह पुरी ने 25 जुलाई को शांति समझौते की शर्तें वेलुपिल्लई प्रभाकरन के सामने रखीं लेकिन प्रभाकरन को न तो हिंदी आती थी और न ही अंग्रेजी। तब साथ भारत आये उसके साथी बालासिंघम ने समझौते शर्तों का तमिल में अनुवाद किया।

भारत सरकार की शर्ते सुनने के बाद आग-बूबला हुए प्रभाकरन ने फौरन समझौता प्रस्ताव फौरन खारिज कर दिया। प्रभाकरन ने दो टूक कि उसे श्रीलंका में तमिलों के लिए 'ईलम यानी स्वतंत्र राष्ट्र' से कम कुछ भी मजूर नहीं।

राजीव, एमजीआर और प्रभाकरन के बीच 10, जनपथ में हुई मीटिंग

प्रभाकरन ने कहा कि वह भारत सरकार से कोई बात तब तक नहीं करेगा, जब तक कि बातचीत में तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) को न शामिल किया जाए। हरदीप सिंह पुरी प्रभाकरन की शर्त सुनकर सीधे 10, जनपथ पहुंचे, जो उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी का आधिकारिक आवास हुआ करता था। राजीव गांधी ने पुरी से प्रभाकरन की शर्तों को जानने के बाद सीधे चेन्नई एमजीआर को फोन किया और उन्हें फौरन दिल्ली आने के लिए कहा।

दरअसल राजीव गांधी चाहते थे कि वो किसी तरह से प्रभाकरन को मना लें और उसे ईलम की मांग छोड़ने के लिए तैयार कर लें। एमजीआर के दिल्ली पहुंचे ही बेहद गुप्त तरीके से प्रभाकरन को होटल अशोक से पीएम आवास यानी 10 जनपथ लाया गया। बैठक में राजीव गांधी, एमजीआर और प्रभाकरन आमने-सामने बैठे। प्रभाकरन ने राजीव गांधी के सामने तमिल में एमजीआर से कहा कि अगर ईलम की बात नहीं मानी जाएगी तो वह कोई समझौता नहीं करेगा।

एमजीआर और राजीव गांधी ने प्रभाकरन को बहुत समझाया, उसे श्रीलंकाई तमिलों के जीवन की रक्षा का वास्ता दिया। अंत में प्रभाकरन भारत-श्रीलंका समझौते को तैयार हो गया। लेकिन कहते हैं कि यह प्रभाकरन की एक सोची-समझी चाल थी। दरअसल बैठक में प्रभाकरन को इस बात का अंदेशा हो रहा था कि अगर वो ईलम की मांग पर अड़ा रहेगा तो हो सकता है कि भारत सरकार उसे गिरफ्तार कर ले और श्रीलंका सरकार को सौंप दे।

राजीव गांधी ने प्रभाकरन को दिया अपना बुलेटप्रूफ जैकेट

प्रभाकरन जीते जी श्रीलंकाई सरकार के हाथ नहीं आना चाहता था। इसलिए उसने उस समय समझौते के लिए हामी भर दी। राजीव गांधी बेहद खुश हुए कि उन्होंने प्रभाकरन को मना लिया। जब 10, जनपथ से प्रभाकरन निकलने लगा तो राजीव गांधी ने उसे रोका और राहुल गांधी को बुलाया। राजीव गांधी ने राहुल से कहा कि वो भीतर से उनका बुलेट प्रूफ जैकेट लेकर आए। थोड़ी देर के बाद राहुल गांधी वो जैकट लेकर आये, जिसे राजीव ने प्रभाकरन को देते हुए कहा कि, "आप अपना ख्याल रखिएगा।"

राजीव गांधी का प्रभाकरन को विदा करवा जीवन की सबसे भारी भूल साबित हुआ। राजीव मंत्रिमंडल के कई मंत्री सदस्य भी चाहते थे जब तक लिट्टे श्रीलंका में हथियार न डाल दे, प्रभाकरन को भारत में ही रखा जाए। लेकिन राजीव गांधी नहीं माने और आगे चलकर उन्हें इस गलती की सजा अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। प्रभाकरन भारत से श्रीलंका पहुंचते ही भारत सरकार के किये गये समझौते से पलट गया। उसने जाफना से भारत में हुए शांति समझौते को खारिज करते हुए अपनी जंग जारी रखने का ऐलान कर दिया।

इस बात से भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी को और श्रीलंका के राष्ट्रपति जे जयवर्धने को काफी धक्का पहुंचा। उसके बाद 29 जुलाई 1987 को राजीव गांधी श्रीलंका की यात्रा पर कोलंबो पहुंचे। उन्हें श्रीलंका के राष्ट्रपति जे जयवर्धने के साथ पीस एकॉर्ड पर दस्तखत करना था। राजीव गांधी को गार्ड ऑफ ऑनर दिया जा रहा था तभी अचानक नौ सैनिक विजिथा रोहन विजेमुनी ने राजीव गांधी पर पर राइफल की बट से जानलेवा हमला किया।

श्रीलंका में शांति सेना भेजना राजीव की हत्या का कारण बना 

वो तो राजीव गांधी के साथ में चल रहे एसपीजी के मुस्तैद जवानों ने तुरंत राजीव को आगाह किया और वो सही समय पर झुक गए नहीं तो उस हमले में ही उनकी जान जा सकती थी। राजीव गांधी पर वो हमला उसी वेलुपिल्लई प्रभाकरन के कहने पर किया गया था, जिसे राजीव गांधी ने अपना बुलटे प्रुफ जैकेट देते हुए कहा था "आप अपना ख्याल रखिएगा"। विदेश की धरती पर भारत के किसी भी प्रधानमंत्री पर अब तक का यह इकलौता हमला है।

खैर, राजीव गांधी ने प्रभाकरन की धोखेबाजी और हमले के बाद भारतीय सेना को लिट्टे के खिलाफ श्रीलंका की जमीन पर उतार दिया और इस फैसले ने राजीव गांधी की हत्या की पटकथा को पूरा कर दिया। लिट्टे का कहना था कि 1987 का भारत-श्रीलंका समझौता श्रीलंकाई तमिलों को दबाने के लिए किया गया और भारत की शांति सेना ने लिट्टे को खत्म करने के लिए श्रीलंका आयी है। इसी बात का बदला लेने के लिए प्रभाकरन ने तय कर लिया कि राजीव गांधी का जिंदा रहना, उसके लिए और लिट्टे के लिए सही नहीं होगा।

करीब चार साल के बाद 21 मई 1991 की रात दस बज कर 21 मिनट पर तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में धनु नाम की लड़की ने चंदन का हार पहनाने के बाद भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का पैर छुए। एक जोरदार धमाका हुआ और चारों तरफ लाशों के चिथड़े नजर आ रहे थे। राजीव गांधी के शव की शिनाख्त उनके जूतों से हुई। उनका सिर बम धमाके में साथ में मारे गये उनके पीएसओ के कदमों में पड़ा था।

महिंद्रा राजपक्षे ने श्रीलंकाई तमिलों के मसीहा प्रभाकरन को खत्म कर दिया

प्रभाकरन अपने मकसद में कामयाब हो गया और देश राजीव गांधी की जिंदगी हार चुका था। लगभग 37 सालों तक प्रभाकरन ने श्रीलंका में जमकर खेली खून की होली, उसके छीटे भारत पर पर भी पड़े और वो भी राजीव की हत्या के शक्ल में। प्रभाकरन के ईलम की जिद ने करीब 70 हज़ार आम लोगों की जान ले ली।

श्रीलंका सरकार ने प्रभाकरन के साथ कई बार समझौता करने की कोशिश की लेकिन उसका ईलम श्रीलंका को मंजूर नहीं था। साल 2006 में श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे ने लिट्टे के साथ वार्ता असफल होने पर सेना को आदेश दिया कि वो तमिल विद्रोह को सख्ती से कुचल दें। उसके बाद श्रीलंकाई सेना ने लिट्टे के ठिकानों पर जबरदल्त हमले करने शुरू कर दिये। करीब तीन साल के संघर्ष के बाद जनवरी 2009 में सेना ने किलिनोच्चि शहर पर कब्जा कर लिया, यह शहर लिट्टे का हेड क्वाटर हुआ करता था।

21 मई 2009 को श्रीलंकाई सेना ने प्रभाकरन को मोलाएतुवू में तीन तरफ से घिर गया, चौथी ओर समुद्र था। भयंकर गोलाबारी में श्रीलंकाई सेना ने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानी लिट्टे के दुर्दांत संस्थापक वेलुपिल्लई प्रभाकरण को मौत के घाट उतार दिया था। इसके साथ श्रीलंका से खत्म हुआ प्रभाकरन का। वो प्रभाकरन जो श्रीलंका, भारत समेत तमाम देशों में कुख्यात था। वो प्रभाकरन, जो श्रीलंकाई तमिलों का मसीहा था। 

Web Title: story of Prabhakaran, who used to wear a cyanide garland around his neck

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