निर्भया के दोषी की मुकेश की दया याचिका राष्ट्रपति को भेजी गई, जानें 22 जनवरी को क्यों नहीं होगी दोषियों को फांसी
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 17, 2020 10:37 AM2020-01-17T10:37:25+5:302020-01-17T10:37:25+5:30
साल 2012 के 16 दिसंबर को एक चलती बस में निर्भया (बदला हुआ नाम) के साथ सामूहिक गैंगरेप हुआ था। आरोपियों ने पीड़िता के साथ ना सिर्फ बलात्कार किया बल्कि उसे बेहद चोटें भी पहुंचाई थी। जिसकी वजह से निर्भया की मौत हो गई।
निर्भया गैंगरेप और हत्याकांड मामले में चारों दोषियों में एक दोषी मुकेश सिंह की दया याचिका राष्ट्रपति को भेजी गई है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के सूत्रों ने जानकारी देते हुए बताया गया है कि 16 जनवरी 2020 की रात दोषी मुकेश सिंह की दया याचिका राष्ट्रपति को भेजी गई है। पीटीआई-भाषा के मुताबिक केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दया याचिका राष्ट्रपति के पास भेजकर अस्वीकार करने की सिफारिश की है। निर्भया सामूहिक बलात्कार एवं हत्या मामले में मौत की सजा पाए चार दोषियों में से एक मुकेश सिंह ने दया याचिका कुछ दिन पहले ही दायर की थी। एक अधिकारी ने बताया, ‘‘गृह मंत्रालय ने मुकेश सिंह की दया याचिका राष्ट्रपति के पास भेज दी है। मंत्रालय ने याचिका को अस्वीकार करने की दिल्ली के उप राज्यपाल की सिफारिश दोहराई है।’’ दिल्ली के उप राज्यपाल ने गुरुवार को मुकेश सिंह की दया याचिका गृह मंत्रालय को भेजी थी। इसके एक दिन पहले दिल्ली सरकार ने याचिका अस्वीकार करने की सिफारिश की थी।
Ministry of Home Affairs sources: MHA had sent the mercy petition of 2012 Delhi gang-rape case convict Mukesh to Rashtrapati Bhavan, last night pic.twitter.com/Fevy7tcWY3
— ANI (@ANI) January 17, 2020
गुरुवार को पटियाला हाउस कोर्ट ने चार दोषियों में से एक मुकेश सिंह की याचिका पर सुनवाई के दौरान दोषियों की फांसी पर स्टे लगा दिया। निर्भया के दोषियों की फांसी फिर टल गई है। कोर्ट ने दया याचिका का जिक्र करते हुए कहा कि 22 जनवरी को उन दोषियों को फांसी नहीं दी जाएगी। कोर्ट ने कहा कि जेल अधिकारियों को सिर्फ कोर्ट को यह रिपोर्ट देनी होगी कि हम उन्हें 22 जनवरी को फांसी नहीं देंगे।
दिल्ली पटियाला कोर्ट ने चारों दोषियों.. मुकेश सिंह (32), विनय शर्मा (26), अक्षय कुमार सिंह (31) और पवन गुप्ता (25) को सुनाई गई मौत की सजा पर अमल का आदेश ‘‘डेथ वॉरंट’’ सात जनवरी को जारी किया था। उन्हें 22 जनवरी को सुबह सात बजे तिहाड़ जेल में फांसी होनी है। हालांकि दिल्ली सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया कि दोषियों को 22 जनवरी को फांसी नहीं हो पाएगी क्योंकि मुकेश सिंह ने दया याचिका दायर की है।
जानें क्यों 22 जनवरी को नहीं होगी दोषियों को फांसी
मामले में आरोपी विनय शर्मा, अक्षय कुमार सिंह, मुकेश कुमार सिंह और पवन गुप्ता को 22 जनवरी को फांसी दी जानी है। दिल्ली सरकार ने बुधवार को उच्च न्यायालय को बताया था कि दोषी मुकेश की दया याचिका लंबित होने के मद्देनजर फांसी को स्थगित किया जाना चाहिए। असल, दोषियों के पास अभी भी कानूनी उपचार हैं और इस उपचार का इस्तेमाल वह कितने दिन में और कब करेंगे, इसके लिए कानून में कोई तय सीमा नहीं है। इसी वजह ये पूरा मामला स्थगित हो गया है।
कानूनी जानकार के मुताबिक क्यूरेटिव पिटिशन और दया याचिका दायर करने के लिए कोई समय सीमा नहीं है। यही वजह है कि अभी तक इस मामले में क्यूरेटिव पिटिशन और दया याचिका का विकल्प बचा है।
दिल्ली सरकार और तिहाड़ जेल के आधिकारियों ने न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति संगीता ढिंगरा सहगल की पीठ को बताया कि जेल नियमों के अनुसार, यदि किसी मुकदमे में एक से ज्यादा दोषियों को मौत की सजा दी गई है और उनमें से एक ने दया याचिका दायर की है तो उसपर फैसला होने तक अन्य की मौत की सजा भी टालनी होगी। दलीलें सुनने के बाद पीठ ने दिल्ली सरकार के स्थाई अधिवक्ता (अपराध मामलों के) राहुल मेहरा से कहा, ‘‘अगर आप सभी दोषियों द्वारा दया याचिका का विकल्प इस्तेमाल किए जाने तक कार्रवाई नहीं कर सकते, तो फिर आपके नियम खराब हैं। ऐसा लगता है कि किसी ने भी (नियम बनाते वक्त) दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया। व्यवस्था कैंसर से ग्रस्त है।’’
निचली अदालत ने सात जनवरी को चार दोषियों मुकेश, विनय शर्मा, अक्षय कुमार सिंह और पवन गुप्ता को फांसी देने के वास्ते मृत्यु वारंट जारी करते हुए कहा कि उन्हें 22 जनवरी को सुबह सात बजे तिहाड़ जेल में फांसी दी जाएगी। पीठ ने मौत के वारंट को निचली अदालत में चुनौती देने की अनुमति देने के मुकेश के आवेदन को भी खारिज कर दिया। बाद में मुकेश ने अदालत से अनुरोध किया कि उसकी फांसी की तारीख आगे बढ़ा दी जाए क्योंकि उसकी दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित है। याचिका अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सतीश कुमार अरोड़ा के समक्ष सुनवाई के लिए आयी। अदालत ने इसपर राज्य और पीड़िता के माता-पिता को नोटिस भेजा है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि उसका मानना है कि एक बार उच्चतम न्यायालय ने अगर मुकेश की आपराधिक मामलों की अपील, समीक्षा याचिका और सुधारात्मक याचिका रद्द कर दी है और मौत की सजा की पुष्टि कर दी है, ऐसे में वह सात जनवरी को जारी मौत के वारंट को अदालत के समक्ष चुनौती नहीं दे सकता है, क्योंकि आदेश में सिर्फ शीर्ष अदालत के फैसले का पालन किया गया है।
कोर्ट ने कहा था-हमारा मानना है कि यह सिर्फ मामले को आगे खींचते रहने का तिकड़म है
पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि यह सिर्फ मामले को आगे खींचते रहने का तिकड़म है, क्योंकि पांच मई, 2017 को शीर्ष अदालत ने उनकी याचिकाएं खारिज दी थीं और उनके पास तभी से दया याचिका, समीक्षा याचिका या सुधारात्मक याचिका दायर करने का पर्याप्त समय था। आपने अभी तक इंतजार क्यों किया? किसने आपको ऐसा करने से रोका था? किसने आप पर रोक लगाई?’’
उन्होंने कहा, ‘‘कानून की मंशा आपको अदालत जाने के लिए तर्कपूर्ण समय देने की है। आपका समय पांच मई, 2017 से ही शुरू हो गया था। यहां तक कि 29 अक्टूबर, 2019 (जब दोषियों को दया याचिका दायर करने के विकल्प का पहला नोटिस भेजा गया) के बाद भी आपने कुछ नहीं किया। आप अन्य दोषियों की दया याचिकाओं पर फैसले का इंतजार नहीं कर सकते हैं।’’
मेहरा ने अदालत को बताया कि अगर 21 जनवरी तक दया याचिका पर फैसला नहीं हुआ तो उन्हें 22 जनवरी से इतर दूसरी तारीख पर मौत के वारंट के लिए उन्हें सत्र अदालत जाना होगा। उन्होंने कहा, अगर दया याचिका 22 जनवरी के बाद भी खारिज होती है, उस स्थिति में भी सभी दोषियों के लिए नए सिरे से मौत का वारंट जारी करने के लिए निचली अदालत जाना होगा।
जेल अधिकारियों की खिंचाई करने के अलावा अदालत ने मुकेश द्वारा देर से सुधारात्मक और दया याचिका दायर किए जाने पर अप्रसन्नता जताई। उसने कहा कि मई 2017 में ही सभी याचिकाएं खारिज हो चुकी हैं, ऐसे में देरी क्यों। पीठ ने दोषियों को दया याचिका के विकल्प के संबंध में देर से सूचित करने को लेकर जेल अधिकारियों की खिंचाई की। जेल अधिकारियों ने दोषियों को 29 अक्टूबर और 18 दिसंबर को नोटिस जारी कर सूचित किया था कि अब वे दया याचिका दायर कर सकते हैं। मेहरा ने पीठ को बताया कि चूंकि दोषियों में से एक अक्षय ने 2019 तक अपनी समीक्षा याचिका दायर नहीं की थी और उसपर 18 दिसंबर को फैसला हुआ, इसलिए देरी हुई। अन्य तीन दोषियों की समीक्षा याचिकाएं जुलाई 2018 में ही खारिज हो चुकी थीं। (पीटीआई इनपुट के साथ)