मुंबई में डॉक्टर ने बचाई नवजात शिशु की जान, अपनी मोटरसाइकिल पर बैठाकर ले गया अस्पताल

By भाषा | Published: April 11, 2020 06:18 PM2020-04-11T18:18:00+5:302020-04-11T18:18:00+5:30

डॉक्टर ने इंसानियत की मिशाल पेश करते हुए एक नवजात शिशु की जान बचाई। डॉक्टर अपनी बाइक पर बैठाकर नवजात शिशुओं के एक अस्पताल में लेकर गया, जन्म के कुछ ही मिनटों बाद उसे श्वसन संबंधी कोई दिक्कत हो गई थी।

in Mumbai doctor save newborn baby life, took him hospital own motorcycle | मुंबई में डॉक्टर ने बचाई नवजात शिशु की जान, अपनी मोटरसाइकिल पर बैठाकर ले गया अस्पताल

इस बार उनके लिए सही समय पर सही देखभाल मिलना बहुत जरूरी था। (Photo-social media)

Highlightsडॉक्टर ने इंसानियत की मिशाल पेश करते हुए एक नवजात शिशु की जान बचाई।डॉक्टर अपनी बाइक पर बैठाकर नवजात शिशुओं के एक अस्पताल में लेकर गया।

मुंबई: डॉक्टरों को भगवान का दर्जा दिया जाता है और मुंबई के पास स्थित अलीबाग शहर में एक नवजात के लिए यह कहावत सच भी साबित हुई जिसे एक डॉक्टर अपने दुपहिया वाहन पर बैठाकर उस समय नवजात शिशुओं के एक अस्पताल में लेकर गया जब जन्म के कुछ ही मिनटों बाद उसे श्वसन संबंधी कोई दिक्कत हो गई थी।

अलीबाग निवासी श्वेता पाटिल को शुक्रवार तड़के प्रसव पीड़ा शुरू हुई और उसका पति केतन कोविड-19 लॉकडाउन के बीच उसे नजदीक के एक नर्सिंग होम लेकर गया। दंपति ने अपने पहले बच्चे को जन्म के कुछ ही घंटों बाद खो दिया था और इस बार उनके लिए सही समय पर सही देखभाल मिलना बहुत जरूरी था।

केतन ने कहा, ‘‘श्वेता को मधुमेह है और उसे अपने शर्करा के स्तर को नियंत्रित रखने के लिए दवाएं लेनी पड़ती हैं।’’ श्वेता की हालत पर विचार करते हुए स्थानीय स्त्री रोग विशेषज्ञ ने नवजात शिशु और बच्चों के चिकित्सक डॉक्टर राजेंद्र चंदोरकर को मदद के लिए बुलाया।

चंदोरकर ने बताया कि सी-सेक्शन किया गया और 3.1 किलोग्राम का लड़का हुआ। लेकिन डॉक्टर के सामने तब समस्या खड़ी हुई जब नवजात को सांस लेने में दिक्कत होने लगी और वह नीला पड़ गया। उन्होंने बताया कि बच्चे को फौरन नवजात संबंधी देखभाल की आवश्यकता थी।

लॉकडाउन के कारण यातायात का कोई साधन न होने के कारण नवजात को डॉक्टर के दुपहिया वाहन पर चंदोरकर के अस्पताल ले जाया गया जो 1.5 किलोमीटर दूर था। उन्होंने बताया, ‘‘मैंने बच्चे को नवजात शिशुओं के आईसीयू में भर्ती कराया और उसे ऑक्सीजन दी तथा 12 घंटे के बाद उसकी हालत स्थिर हुई।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह मेरे लिए अनोखा अनुभव था। बच्चे ने जांच के दौरान मेरी ऊंगली पकड़े रखी तथा मैं उसे बस यह आश्वासन देना चाहता था कि वह सुरक्षित है और जल्द ही ठीक हो जाएगा।’’ 

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