“शारीरिक संबंध” शब्द का इस्तेमाल दुष्कर्म या शील भंग साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा-रिकॉर्ड में कोई फॉरेंसिक साक्ष्य नहीं

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 21, 2025 18:23 IST2025-10-21T18:22:39+5:302025-10-21T18:23:18+5:30

बलात्कार के मामले में अपनी दोषसिद्धि और 10 वर्ष के कारावास को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने उसे आरोपों से बरी कर दिया था।

Delhi High Court said Use word physical intercourse not sufficient prove rape or outraging modesty no forensic evidence on record | “शारीरिक संबंध” शब्द का इस्तेमाल दुष्कर्म या शील भंग साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा-रिकॉर्ड में कोई फॉरेंसिक साक्ष्य नहीं

सांकेतिक फोटो

Highlightsअभियोजन पक्ष अपराध को उचित संदेह से परे साबित करने में सक्षम रहा है।पीड़ित बच्ची और उसके माता-पिता ने बार-बार कहा कि “शारीरिक संबंध” स्थापित किए गए थे।हालांकि इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं थी कि इस अभिव्यक्ति का क्या मतलब था।

नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि साक्ष्यों के बिना महज “शारीरिक संबंध” शब्द का इस्तेमाल दुष्कर्म या शील भंग के मामलों को स्थापित करने के लिये पर्याप्त नहीं है। अदालत ने यह टिप्पणी एक व्यक्ति की अपील को स्वीकार करते हुए की, जिसमें उसने बलात्कार के मामले में अपनी दोषसिद्धि और 10 वर्ष के कारावास को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने उसे आरोपों से बरी कर दिया था।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने 17 अक्टूबर को पारित आदेश में कहा, “इस मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में, ‘शारीरिक संबंध’ शब्द का प्रयोग, बिना किसी सहायक साक्ष्य के, यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगा कि अभियोजन पक्ष अपराध को उचित संदेह से परे साबित करने में सक्षम रहा है।”

अदालत ने कहा, “आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि कायम रखने योग्य नहीं है।” अदालत ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण मामला बताते हुए कहा कि वह मामले का निर्णय उसके गुण-दोष के आधार पर करने के लिए बाध्य है। फैसले में कहा गया है कि पीड़ित बच्ची और उसके माता-पिता ने बार-बार कहा कि “शारीरिक संबंध” स्थापित किए गए थे।

हालांकि इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं थी कि इस अभिव्यक्ति का क्या मतलब था। अदालत ने कहा, “कथित कृत्य का कोई और विवरण नहीं दिया गया है। दुर्भाग्य से, अभियोजन पक्ष या अधीनस्थ अदालत ने पीड़ित से कोई प्रश्न नहीं पूछा, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि याचिकाकर्ता पर लगाए गए अपराध के आवश्यक तत्व सिद्ध हुए हैं या नहीं।”

अदालत 2023 में दर्ज एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें 16 वर्षीय पीड़िता ने आरोप लगाया था कि उसके रिश्ते के भाई ने 2014 में शादी का झूठा झांसा देकर एक साल से अधिक समय तक उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। व्यक्ति ने अपनी दोषसिद्धि को चुनौती दी और उच्च न्यायालय ने उसकी अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष का मामला केवल मौखिक साक्ष्य पर आधारित है।

जो कि पीड़ित बच्ची और उसके माता-पिता की गवाही है तथा रिकॉर्ड में कोई फॉरेंसिक साक्ष्य नहीं है। अदालत ने कहा कि “शारीरिक संबंध” शब्द का प्रयोग या परिभाषा न तो आईपीसी के तहत दी गई है और न ही पॉक्सो अधिनियम के तहत। न्यायाधीश ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि नाबालिग पीड़िता का “शारीरिक संबंध” शब्द से क्या तात्पर्य है और क्या इसमें शील भंग का प्रयास शामिल था।

Web Title: Delhi High Court said Use word physical intercourse not sufficient prove rape or outraging modesty no forensic evidence on record

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