अजमेर ब्लैकमेलिंग और रेप केस: 250 स्कूली लड़कियों का हुआ था सामूहिक बलात्कार, 32 साल बाद 6 आरोपी दोषी करार दिए गए
By शिवेन्द्र कुमार राय | Updated: August 20, 2024 15:39 IST2024-08-20T15:29:40+5:302024-08-20T15:39:44+5:30
Ajmer blackmailing and rape case- अजमेर के एक मशहूर निजी स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों को फार्महाउस में बुलाया जाता था, जहां उनके साथ बलात्कार किया जाता था। लड़कियों की उम्र 11 से 20 साल के बीच थी। मामले में चार दोषियों की सजा पहले ही पूरी हो चुकी है।

अजमेर ब्लैकमेलिंग और रेप केस: 32 साल बाद 6 आरोपी दोषी करार दिए गए
Ajmer largest blackmail case 1992: विशेष पोक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) अधिनियम अदालत ने अजमेर के बलात्कार और ब्लैकमेल मामले में छह शेष आरोपियों को दोषी ठहराया है। ये मामला 1992 का है जब 250 स्कूली लड़कियों का शोषण किया गया था। नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी और सईद ज़मीर हुसैन वे छह आरोपी हैं जिन्हें अदालत ने मंगलवार (20 अगस्त) को दोषी ठहराया।
Rajasthan: In Ajmer';s largest blackmail case, six accused, including Nafees Chishti and Naseem alias Tarzan, were found guilty by the Special POCSO Act Court. They blackmailed over 100 girls with obscene photos from 1992 pic.twitter.com/pqwkoPo1fk
— IANS (@ians_india) August 20, 2024
क्या है अजमेर ब्लैकमेलिंग और रेप केस
यह मामला 1992 का है जब करीब 250 लड़कियों की अश्लील तस्वीरें हासिल कर उन्हें ब्लैकमेल करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। उन तस्वीरों को लीक करने की धमकी देकर 100 से ज़्यादा लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। अजमेर के एक मशहूर निजी स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों को फार्महाउस में बुलाया जाता था, जहां उनके साथ बलात्कार किया जाता था। लड़कियों की उम्र 11 से 20 साल के बीच थी। मामले में चार दोषियों की सजा पहले ही पूरी हो चुकी है। 30 नवंबर 1992 को दायर पहली चार्जशीट में आठ नाम थे। इसके बाद चार और आरोपपत्र दाखिल किये गये, जिससे कुल आरोपियों की संख्या 12 हो गयी।
इस जघन्य कांड पर 'अजमेर 92' के नाम से फिल्म भी बन चुकी है। उस समय इस मामले को “अजमेर ब्लैकमेल कांड” कहा गया था। आरोपी फारूक और नफीस चिश्ती थे जो प्रसिद्ध अजमेर शरीफ दरगाह से जुड़े एक बड़े परिवार से थे। इसमें दोनों के दोस्त भी शामिल थे। दोनों व्यक्ति युवा कांग्रेस के नेता थे और कहा जाता था कि उन्हें शक्तिशाली लोगों का समर्थन प्राप्त था।
उनका पहला शिकार कक्षा 12 की छात्रा थी, जो कांग्रेस में शामिल होना चाहती थी। इसके बाद, इन लोगों ने पीड़िता को अन्य लड़कियों से मिलवाने के लिए मजबूर किया। सबके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। चुप्पी बनाए रखने के लिए उनकी तस्वीरें खींच लीं गई। इन लोगों ने दर्जनों युवा लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया - जिनकी तस्वीरें एक फोटो कलर लैब द्वारा छापी और प्रसारित की गईं।
पहली बार यह खबर अप्रैल 1992 में स्थानीय पत्रकार संतोष गुप्ता ने नवज्योति समाचार के लिए प्रकाशित की थी। गुप्ता और नवज्योति न्यूज ने जीवित बचे लोगों की धुंधली तस्वीरें प्रकाशित कीं। बाद में सामने आया कि कुल 250 से अधिक लड़कियों के साथ रेप किया गया था। सभी की उम्र 11 से 20 वर्ष के बीच थी। मामले के विवरण सामने आने के बाद अजमेर में हंगामा मच गया - जिसमें अधिकांश आरोपी मुस्लिम थे और कई पीड़ित हिंदू थे।
शहर में दो दिनों तक विरोध प्रदर्शन हुआ और पूरा मामला सांप्रदायिक मुद्दे में तब्दील होने का खतरा पैदा हो गया। अंततः 18 लोगों पर आरोप लगाए गए, जिनमें कुछ ऐसे परिवार भी थे जिनका दरगाह से संबंध था। लेकिन, जैसे-जैसे मुकदमे आगे बढ़े, कई गवाह अपने बयान से पलट गए।
राजस्थान के सेवानिवृत्त डीजीपी ओमेंद्र भारद्वाज ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि आरोपी सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रभावशाली स्थिति में थे, और इससे लड़कियों को आगे आकर गवाही देने के लिए राजी करना और भी मुश्किल हो गया।
फारूक समेत आठ आरोपियों को 1998 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने चार अन्य दोषियों की सजा घटाकर 10 साल कर दी। नफीस 2003 तक फरार रहा। एक आरोपी अलमास महाराज फरार है और माना जा रहा है कि वह अमेरिका में है।
नफीस समेत नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी और सईद ज़मीर हुसैन दोषी ठहराए गए हैं।