डब्ल्यूटीओ समिति में कोविड के टीकों पर पेटेंट में ढील के भारत, द.अफ्रीका के प्रस्ताव पर विचार शुरू
By भाषा | Published: June 8, 2021 10:29 PM2021-06-08T22:29:53+5:302021-06-08T22:29:53+5:30
जिनेवा, आठ जून (एपी) विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य देशों ने कोविड-19 टीकों के लिये पेटेंट नियमों और अन्य बौद्धिक संपदा संरक्षण से जुड़े प्रावधानों में ढील दिये जाने के प्रस्तावों पर विचार शुरू कर दिया है। मूल रूप से भारत और दक्षिण अफ्रीका के इस प्रस्ताव का मकसद महामारी के खिलाफ अभियान में टीकों के मामले में विकासशील देशों की मदद करना है।
अमेरिकी सरकार इस प्रस्ताव का समर्थन कर रही है लेकिन मजबूत दवा उद्योग वाले अन्य विकसित देश इसका विरोध कर रहे है।
डब्ल्यूटीओ की एक समिति की दो दिवसीय बैठक मंगलवर को शुरू हुई। इसके एजेंडे में भारत और दक्षिण अफ्रीका के कोरोना वायरस टीकों को लेकर बौद्धिक संपदा (आईपी) नियमों में ढील देने का संशोधित प्रस्ताव है। इस प्रस्ताव का अमेरिका और चीन समेत 60 से अधिक देश समर्थन कर रहे हैं।
यूरोपीय संघ (ईयू) के कुछ सदस्य देश इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं।
यूरोपीय संघ ने शुक्रवार को एक वैकल्पिक प्रस्ताव पेश किया जो मौजूदा विश्व व्यापार संगठन के नियमों पर निर्भर करता है। 27 सदस्यीय ईयू ने कहा कि संबंधित नियम वर्तमान में सरकारों को कोविड-19 टीकों और अन्य उपकरणों जैसे उत्पादों के मामले में अपने देशों में निर्माताओं को आपातकाल के समय में पेटेंट धारकों की सहमति के बिना उत्पादन लाइसेंस देने की अनुमति देते हैं।
अब यह देखना है कि क्या बैठक में विभिन्न पक्ष इस मामले में एक विधि सम्मत किसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। अगर ऐसा होता है कि इससे बातचीत में तेजी आएगी और चीजें त्वरित गति से आगे बढ़ेगी।
हालांकि, आंतरिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बैठक से कोई बड़ी सफलता की उम्मीद करना मुश्किल है।
प्रस्ताव के समर्थकों का भी मानना है कि आईपी में छूट पर अगर सहमति बनती भी है तो इसे अंतिम रूप देने में समय लग सकता है। इसका कारण कुछ देशों का विरोध और डब्ल्यूटीओ के नियम हैं। यानी 164 सदस्यों में से एक भी देश किसी भी प्रस्ताव को खारिज कर सकता है। अगर अपनाया भी जाता है, तो समर्थन में भी समय लगेगा।
नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित डॉक्टर्स विदाउट बॉडर्स ने सोमवार को प्रस्ताव के पारित होने में देरी के लिये यूरोपीय संघ, स्विट्जरलैंड, नार्वे जैसे देशों को दोषी ठहराया। संगठन का कहना है कि ये देश जानबूझकर ‘हीला-हवाली’ की रणनीति अपना रहे हैं, ताकि इसमें विलम्ब हो।
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