Jammu Kashmir: यह चिंताजनक बात है कि अमेरिकी टैरिफ ने कश्मीर के पेपर माशी व्यापार की वाट लगा दी है। क्रिसमस फेस्टिवल से पहले, कश्मीर के कारीगर, जो अपनी बारीक पेपर-मेशी कला के लिए जाने जाते हैं, ने इस बात पर चिंता प्रकट की कि अमेरिकी टैरिफ के लंबे समय तक चलने वाले असर से उनकी रोजी-रोटी पर बहुत असर डाला है।
उनका कहना था कि बढ़ी हुई ड्यूटी और सख्त इंपोर्ट नियमों ने उनके हाथ से बने सामान को अमेरिका और यूरोप जैसे खास पश्चिमी बाजारों में काफी महंगा और कम प्रतिस्पर्धी बना दिया है, जिससे सदियों पुरानी सांस्कृतिक इंडस्ट्री पर दबाव पड़ रहा है।
जादिबल के रहने वाले एक पेपर माशी अनुभवी कलाकार, हाजी मोहम्मद अख्तर, जिन्होंने अपने बेटों के साथ चार दशकों से ज्यादा समय तक पेपर-मेशी पर काम किया है, कहते थे कि इस साल फेस्टिव सीजन में आम तौर पर होने वाली बिज़नेस की तेजी नहीं आई है।
अख्तर बताते थे कि काम तो चल रहा है लेकिन बिक्री कम है। पिछली सर्दियों की तुलना में, भारत के बाहर से, खासकर अमेरिका और यूरोप से डिमांड कम हो गई है। फ्रेट और कस्टम का खर्च बहुत बढ़ गया है।
हालांकि एक्सपोर्टर्स कहते थे कि अमेरिकी टैरिफ में बढ़ोतरी और सख्त इंपोर्ट नियमों का छोटे आर्ट बाजारों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है—जिससे हाथ से बनी चीजें विदेशी खरीदारों के लिए महंगी हो गई हैं।
एक और कारीगर बताते थे कि ये क्राफ्ट पहले अमेरिका और यूरोप के स्टोर में रेगुलर सामान होते थे, लेकिन अतिरिक्त ड्यूटी और सख्त इंपोर्ट नियमों ने हमारे हाथ से बने काम को विदेशों में महंगा कर दिया है।
इसी तरह से बोटा कदल के मीर अरशद हुसैन, जिन्होंने ईरान में इंटरनेशनल फजर फेस्टिवल आफ हैंडीक्राफ्ट्स में टाप प्राइज जीता है, ने भी इसी तरह की चिंताएं जताईं।
वे कहते थें कि यह कला कश्मीर को उसकी ग्लोबल पहचान देती है, फिर भी बहुत कम संस्थागत मदद मिलती है। एक्सपोर्ट के रास्ते सिकुड़ रहे हैं और युवा लोगों को इस काम में कोई सुरक्षा नहीं दिखती है।
उनका कहना था कि सभी मुश्किलों के बावजूद, हम कश्मीरी कला की विरासत को बचाने के लिए काम करते रहते हैं। हमें पूरा भरोसा है कि व्यापार फिर से बढ़ेगा।