लाइव न्यूज़ :

उच्चतम न्यायालय ने आयकर कानून का प्रावधान निरस्त करने के अदालती फैसले को सही ठीक माना

By भाषा | Updated: April 7, 2021 22:19 IST

Open in App

नयी दिल्ली, सात अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने आयकर कानून के एक प्रावधान को आंशिक तौर पर निरस्त करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को सही ठहराया है। यह प्रावधान कर आकलन पर दिये गये स्थगन को 365 दिन से आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं देता है।

न्यायाधिकरण में अपील में सुनवाई में देरी के लिये लिये करदाता किसी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होने के बावजूद इसमें स्थगन को आगे नहीं बढ़ाया जाता है। उच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को ‘‘ मनमाना और पक्षपातपूर्ण’’ बताया।

आयकर कानून 1961 की धारा 254 (2ए) का एक प्रावधान आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (आईटीएटी) द्वारा आयकर विभाग के किसी करदाता के किये गये कर आकलन पर दिये गये स्थगन आदेश को 365 दिन से आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं देता है। इसमें बेशक करदाता की तरफ से अपील अथवा सुनवाई में किसी तरह की देरी की वजह नहीं हो तब भी स्थगन को 365 दिन से आगे नहीं बढ़ाने का प्रावधान है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने धारा 254 (2ए) के तीसरे प्रावधान को निरस्त कर दिया। तीसरे प्रावधान में करदाता की तरफ से देरी के लिये जिम्मेदार नहीं होने के बावजूद स्थगन आदेश को 365 दिन से आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं दी गई है। ताजा आदेश के बाद आईटीएटी का स्थगन आदेश यदि करदाता की तरफ से कोई देरी नहीं होती है तो अब 365 दिन के बाद स्वत: ही समाप्त नहीं होगा।

न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को सही ठहराते हुये कहा, ‘‘इसमें कोई शंका नही है कि वित्त अधिनियम 2008 के जरिये पेश किया गया आयकर कानून की उपरोक्त धारा का तीसरा प्रावधान इकतरफा और भेदभावपूर्ण दोनों है इसलिये यह रिनस्त करने योग्य है क्योंकि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। ’’

पीठ ने कहा कि दिये गये फैसले में यह ठीक ही कहा गया है कि जो असमान है उन्हें समान माना गया है। तीसरे प्रावधान में उन करदाताओं के बीच कोई फर्क नहीं किया गया है जो कि प्रक्रिया में देरी के लिये जिम्मेदार है और जो कि देरी के लिये जिम्मेदार नहीं है।

नयायमूर्ति नरीमन ने फैसले में कहा है कि आयकर कानून की धारा 254 (2ए) के तीसरे प्रावधान का उद्देश्य अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष अपीलों के त्वरित निपटारे पर जोर देता है इसमें कोई शक नहीं हो सकता है। खासतौर से ऐसे मामले जहां करदाताओं के पक्ष में स्थगन दिया गया है। लेकिन इस प्रकार का उद्देश्य अपने आप में इकतरफा और भेदभावपूर्ण नहीं हो सकता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Open in App

संबंधित खबरें

कारोबारझारखंड 2026ः वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने 7,721.25 करोड़ रुपये का अनुपूरक बजट पेश किया

क्राइम अलर्ट51 वर्षीय आदिवासी महिला पदियामी का सिर कटा शव मिला, 2 गांव में सामूहिक झड़प, 4 मकान में लगाई आग, पुलिस बल तैनात

भारतजब वंदे मातरम् के 100 वर्ष हुए, तब देश आपातकाल की जंजीरों में जकड़ा हुआ था?, पीएम मोदी ने कहा-संविधान का गला घोंट दिया गया था, वीडियो

क्राइम अलर्टनाबालिग लड़की और मां को प्रलोभन देकर साहिब से शादी का दबाव, दूल्हा और उसकी मां अरेस्ट

क्राइम अलर्टकटक टी20 मैचः टिकटों की कालाबाजारी, 4 अरेस्ट, 12 टिकट बिदानसी और दरगाह बाजार पुलिस थाना क्षेत्र से 9 टिकट बरामद

कारोबार अधिक खबरें

कारोबारनवंबर 2025 में बैंक आवास ऋण 9 लाख करोड़ रुपये के पार, एसबीआई की उम्मीद-चालू वित्त वर्ष में कुल ऋण वृद्धि 14 प्रतिशत रहेगी

कारोबारगोल्ड में पैसा लगाओ और मालामाल हो जाओ?, सोने की चमक बरकरार, 67 प्रतिशत का रिटर्न, 2026 में सोने की कीमत 5 से 16 प्रतिशत प्रति 10 ग्राम और चढ़ सकती?

कारोबारBank Holidays next week: 8-14 दिसंबर के बीच 4 दिन बंद रहेंगे बैंक, देखें यहां पूरी लिस्ट

कारोबार10 कंपनियों में से 5 का मार्केट कैपिटल 72,285 करोड़ बढ़ा, जानें सबसे ज्यादा किसे हुआ फायदा

कारोबारदिसंबर के पहले हफ्ते में विदेशी निवेशकों ने निकाले 11820 करोड़ रुपये, जानें डिटेल