चार साल में सरकारी बैंकों ने बट्टा खाते में डाले 3.16 लाख करोड़ के कर्ज, सातवें हिस्से की भी रिकवरी नहीं!

By आदित्य द्विवेदी | Published: October 1, 2018 09:48 AM2018-10-01T09:48:59+5:302018-10-01T10:16:54+5:30

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने सरकारी बैंकों के पिछले चार साल के बट्टा खाते का लेखा-जोखा दिया है। पढ़िए क्या कहते हैं आंकड़े...

RBI data on PSB says bank's write off over 7 times recovery in 4 years - Bad Loan- NPA | चार साल में सरकारी बैंकों ने बट्टा खाते में डाले 3.16 लाख करोड़ के कर्ज, सातवें हिस्से की भी रिकवरी नहीं!

चार साल में सरकारी बैंकों ने बट्टा खाते में डाले 3.16 लाख करोड़ के कर्ज, सातवें हिस्से की भी रिकवरी नहीं!

नई दिल्ली, 1 अक्टूबरः अप्रैल 2014 से अप्रैल 2018 के बीच देश के 21 सरकारी बैंकों ने 3,16,500 करोड़ रुपये का कर्ज बट्टा खाते में डाल दिया है जबकि इस दौरान महज 44,900 करोड़ रुपये की रिकवरी की जा सकी है। यह पिछले चार साल में बट्टा खाते में डाले गए कर्ज का सातवां हिस्सा है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने यह डेटा जारी किया है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक  यह रिकवरी संचयी बट्टा खाते पर है ना कि किसी समयावधि विशेष पर।

सरकारी बैंकों द्वारा बट्टा खाते में डाले गए बैड लोन के आंकड़ों पर गौर करें तो यह स्वास्थ्य, शिक्षा और समाजिक सुरक्षा पर जारी किए गए 2018-19 के बजट से दोगुना है। पिछले चार सालों में सरकारी बैंकों ने जितना कर्ज राइट ऑफ किया है वो 2014 से पहले 10 सालों से भी 166 प्रतिशत ज्यादा है। 

आरबीआई ने संसद में वित्त मामले की स्टैंडिंग कमेटी के पास जो डेटा पेश किया है उसके मुताबिक बट्टा खाते में डाले गए लोन की रिकवरी दर 14 प्रतिशत है। जबकि प्राइवेट बैंकों की रिकवरी दर 5 प्रतिशत है। जहां 21 सरकारी बैंकों की कुल बैंकिंग पूंजी का भारतीय बैंक बाजार में 70 प्रतिशत हिस्सा है वहीं नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स में हिस्सेदारी 86 प्रतिशत है।

अगर एनपीए की बात करें तो 2014 तक इसमें एक स्थिरता थी। लेकिन उसके बाद नाटकीय तरीके से बढ़ोत्तरी देखी जा रही है। 2014-15 में 4.62 प्रतिशत, 2015-15 में 7.70 प्रतिशत और दिसंबर 2017 में 10.41 प्रतिशत बढ़ गया। आरबीआई की एसेट क्वालिटी रिव्यू (एक्यूआर) के मुताबिक सरकारी बैंकों का कुल एनपीए 7.70 लाख करोड़ पहुंच चुका है। 

आरबीआई द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक दस साल पहले वित्त वर्ष 2007-08 में सरकारी बैंकों ने एनपीए खत्म करने के लिए 8,09 करोड़ रुपये की कर्जमाफी की थी। इसके बाद साल दर साल इससे अधिक रकम की कर्जमाफी की गई है। वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान 11,185 करोड़ रुपये तो वित्त वर्ष 2010-11 में 17,794 करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया गया है। बीजेपी की सरकार आने के बाद पिछले चार सालों में यह 3.16 लाख करोड़ पहुंच गया।

क्या होता है बट्टा खाता?

बैंक से लिए गए कर्ज पर जब कॉरपोरेट कंपनियां ब्याज भी नहीं चुका पाती और मूल धन डूबने लगता है तो बैंक उसे एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) करार दे देता है। बट्टा खाते के जरिए बैंक अपने बहीखाते से उस कर्ज को मिटा देते हैं (माफ कर देते हैं) जिससे नुकसान छिप जाए। लेकिन नीलामी इत्यादि के जरिए रिकवरी की प्रक्रिया जारी रहती है। लोन राइट-ऑफ के बाद हुई रिकवरी को बाद में बैंक की कमाई में जोड़ दिया जाता है। यह एक अपारदर्शी प्रक्रिया है।

माना जाता है कि देश के सरकारी बैंक अपनी बैलेंसशीट को साफ-सुथरा रखने के लिए बट्टा खाते का सहारा लेते हैं। जबकि यह तभी करना चाहिए जब नया कर्ज देने में खराब बैलेंसशीट के कारण दिक्कत होने लगी हो।

English summary :
Between April 2014 and April 2018, 21 government banks in the country have written off a loan of Rs 3,16,500 crore, while recovery of only Rs 44,900 crore could be done. This is the seventh share of the right-ended debt in the last four years. Reserve Bank of India has released this data.


Web Title: RBI data on PSB says bank's write off over 7 times recovery in 4 years - Bad Loan- NPA

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