खाद्य तेल उत्पादन बढ़ाने के लिये 11,040 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय खाद्य तेल- पॉम तेल मिशन को मंजूरी

By भाषा | Published: August 18, 2021 08:31 PM2021-08-18T20:31:10+5:302021-08-18T20:31:10+5:30

National Edible Oil – Palm Oil Mission approved for Rs 11,040 crore to increase edible oil production | खाद्य तेल उत्पादन बढ़ाने के लिये 11,040 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय खाद्य तेल- पॉम तेल मिशन को मंजूरी

खाद्य तेल उत्पादन बढ़ाने के लिये 11,040 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय खाद्य तेल- पॉम तेल मिशन को मंजूरी

सरकार ने खाद्य तेलों के आयात पर देश की निर्भरता को कम करने और अगले पांच वर्षो में पामतेल की घरेलू पैदावार को प्रोत्साहित करने के लिये बुधवार को 11,040 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन- आयल पॉम को मंजूरी दे दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर 15 अगस्त को लाल किले से देश को संबोधित करते हुये इस नई केन्द्रीय योजना की घोषणा की थी जिसे आज केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने अपनी मंजूरी दे दी। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने यहां संवाददाताओं को जानकारी देते हुए कहा कि मंत्रिमंडल ने पूर्वोत्तर क्षेत्र और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन- आयल पॉम (एनएमईओ-ओपी) को मंजूरी दी है जिसपर वित्तीय परिव्यय 11,040 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया है। कुल परिव्यय में से 8,844 करोड़ रुपये केंद्र सरकार का हिस्सा होगा जबकि 2,196 करोड़ रुपये, राज्यों का हिस्सा होगा। एक सरकारी बयान में कहा गया है कि इसमें ‘लाभप्रदता अंतर का वित्तपोषण’ भी शामिल है। नई योजना वर्तमान राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन- तेल पाम कार्यक्रम को खुद में समाहित कर लेगी। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि नई योजना का लक्ष्य वर्ष 2025-26 तक 6.5 लाख हेक्टेयर के अतिरिक्त क्षेत्र को पाम तेल खेती के दायरे में लाना है और इस तरह 10 लाख हेक्टेयर के लक्ष्य तक पहुंचना है। इसके साथ, कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का घरेलू उत्पादन वर्ष 2025-26 तक 11.20 लाख टन और वर्ष 2029-30 तक 28 लाख टन तक जाने की उम्मीद है। यह कहते हुए कि नई योजना किसानों के सामने आने वाली कई चुनौतियों का समाधान करती है, मंत्री ने कहा कि तेल पाम की खेती पिछले कुछ वर्षों से हो रही है और वर्तमान में 12 राज्यों में की जा रही है। मंत्री ने कहा, ‘‘चूंकि पामतेल की खेती में उपज और मुनाफा देने में कम से कम 5-7 साल लगते हैं इसलिए छोटे किसानों के लिए इतना लंबा इंतजार करना संभव नहीं था। किसान भले ही खेती में सफल रहे, लेकिन कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण वे वापस लाभ पाने के बारे में अनिश्चित थे।’’ उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में, केवल 3.70 लाख हेक्टेयर तेल पाम खेती के तहत आता है। उन्होंने कहा कि हालांकि पूर्वोत्तर क्षेत्र में पाम तेल की खेती की गुंजाइश है, लेकिन प्रसंस्करण उद्योग और निवेश के अभाव में ऐसा नहीं हो रहा था। तोमर ने कहा कि इसे ध्यान में रखते हुए, सरकार ने पाम तेल की खेती को और बढ़ावा देने के लिए एनएमईओ-ओपी के तहत सहायता देने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि सरकार पहली बार ताजा फल के गुच्छों का उत्पादन करने वाले पाम ऑयल उत्पादकों को मूल्य आश्वासन देगी। उन्होंने कहा कि इसे पॉम खेती को वहनीय और 'लाभप्रद मूल्य' के रूप में जाना जाएगा। उन्होंने कहा, 'लाभप्रद मूल्य', सीपीओ के पिछले पांच वर्षों का वार्षिक औसत मूल्य होगा, जिसे थोक मूल्य सूचकांक के साथ समायोजित करके 14.3 प्रतिशत से गुणा किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह तेल पाम वर्ष (नवंबर से अक्टूबर) के लिए वार्षिक रूप से तय किया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘यह आश्वासन भारतीय पाम तेल किसानों को खेती का रकबा बढ़ाने और इस तरह पाम तेल का अधिक उत्पादन करने के लिए विश्वास पैदा करेगा।’’ एक सरकारी बयान में यह भी कहा गया है कि एक कीमत फॉर्मूला भी तय किया जायेगा जो कच्चा पॉम तेल (सीपीओ) का 14.3 प्रतिशत होगा और मासिक आधार पर तय किया जायेगा। लाभप्रदता अंतर वित्तपोषण, लाभप्रदता मूल्य फार्मूला कीमत होगी और अगर जरूरत पड़ी तो इसका भुगतान सीधे किसानों के खातों में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के रूप में किया जाएगा। पूर्वोत्तर और अंडमान को प्रोत्साहन देने के लिए, सरकार ने कहा कि वह सीपीओ मूल्य का दो प्रतिशत अतिरिक्त रूप से वहन करेगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसानों को शेष भारत के बराबर भुगतान किया जाए। तोमर ने कहा कि योजना का दूसरा प्रमुख ध्यान केन्द्र लागत सहायता में पर्याप्त वृद्धि करना है। पामतेल उत्पादकों को रोपण सामग्री के लिए दी जाने वाली सहायता को 12,000 रुपये प्रति हेक्टेयर से बढ़ाकर 29,000 रुपये प्रति हेक्टेयर कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, रखरखाव और अंतर-फसलीय हस्तक्षेप के लिए पर्याप्त वृद्धि की गई है। तोमर ने कहा, 'पुराने बागों के जीर्णोद्धार के लिए पुराने बागों को फिर से लगाने के लिए 250 रुपये प्रति पौधा की दर से विशेष सहायता दी जा रही है। देश में रोपण सामग्री की कमी की समस्या को दूर करने के लिए शेष भारत में 15 हेक्टेयर के लिए 80 लाख रुपये तथा पूर्वोत्तर एवं अंडमान के क्षेत्रों में 15 हेक्टेयर के लिए 100 लाख रुपये की सहायता प्रदान की जाएगी। यह पूछे जाने पर कि सरकार तिलहन के बजाय पाम ऑयल को क्यों बढ़ावा दे रही है, मंत्री ने कहा कि सूरजमुखी जैसे तिलहन के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अन्य तिलहन फसलों की तुलना में पामतेल प्रति हेक्टेयर 10 से 46 गुना अधिक तेल का उत्पादन करता है और प्रति हेक्टेयर लगभग चार टन तेल की उपज होती है। इस प्रकार, इसमें खेती की अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि आईसीएआर के अध्ययन में कहा गया है कि देश में 28 लाख हेक्टेयर में पामतेल की खेती की जा सकती है, जिसमें से नौ लाख हेक्टेयर से अधिक का क्षेत्र, पूर्वोत्तर क्षेत्र में है। तोमर ने कहा, ‘‘हम घरेलू मांग को पूरा करने के लिए खाद्य तेलों का आयात कर रहे हैं। अधिकतम कच्चा पॉम तेल आयात किया जाता है। फिलहाल, कुल खाद्य तेल आयात में इसकी हिस्सेदारी 56 प्रतिशत है।’’ नई योजना का उद्देश्य आयात पर निर्भरता को कम करना है।

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Web Title: National Edible Oil – Palm Oil Mission approved for Rs 11,040 crore to increase edible oil production

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