पेट्रोल-डीजल पर फिर बढ़ा सकती है मोदी सरकार एक्साइज ड्यूटी, आरबीआई ने दी ये जानकारी
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 20, 2020 10:10 AM2020-03-20T10:10:35+5:302020-03-20T10:10:35+5:30
उत्पाद शुल्क बढ़ोतरी से कोरोना वायरस के कारण अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान और सरकार पर आए आर्थिक बोझ को पूरा करने के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाए जा सकता है।
नई दिल्ली:अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में और गिरावट आई है लेकिन इसका लाभ देश में पेट्रोल -डीजल की कीमतों में अप्रत्याशित कमी के रूप में नजर आने की ज्यादा संभावना नहीं है. सरकार पेट्रोल और डीजल पर एक बार फिर उत्पाद शुल्क बढ़ाने पर विचार कर रही है ताकि और अधिक अतिरिक्त राजस्व अर्जित कर बढ़ते घाटे को नियंत्रित कर सके और कोरोना वायरस के कारण अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान और सरकार पर आए आर्थिक बोझ को पूरा करने के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाए जा सकें. गुरुवार को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 30 डॉलर प्रति बैरल कच्चा तेल (क्रूड)का दाम पेट्रोल और डीजल की वर्तमान कीमतों में 10-12 रु पये प्रति लीटर की कमी का आधार बन सकता है लेकिन सरकार दोनों पेट्रोलियम उत्पादों के खुदरा मूल्य में कमी करने की बजाय इस पर उत्पाद शुल्क बढ़ा कर इसकी कीमतें ज्यादा नीचे आने से सीमित कर सकती है.
गत शनिवार को ही सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर 3 रु पये प्रति लीटर के हिसाब से उत्पाद शुल्क बढ़ाया था. इससे उसे एक पूरे वर्ष में 45,000 करोड़ रु पये का अतिरिक्त राजस्व हासिल हो रहा है. एसबीआई की इको रैप रिपोर्ट में कहा गया है ...' केंद्र द्वारा पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर 3 रु पये की उत्पाद शुल्क में वृद्धि से मौजूदा स्तर के दाम से पेट्रोल पर अधिकतम 4.25 रु पये और डीजल पर 3.75 रु पये की अधिकतम कटौती हो सकती है. हम इस प्रकार उम्मीद करते हैं कि सरकार इस तरह की गिरावट को और सीमित कर सकती है.'
कमाई में पेट्रो उत्पादों का योगदान 85-90 प्रतिशत ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतों और सरकार की उत्पाद शुल्क से कमाई के साथ पेट्रो उत्पादों के खुदरा दाम में अंतर संबंधों के ऐतिहासिक रु झान को देखते हुए पता चलता है कि सरकार के उत्पाद शुल्क की कमाई में पेट्रो उत्पादों पर कर का योगदान 85-90 प्रतिशत हो गया है. 2019-20 (अप्रैल-दिसंबर) में नौ महीनों के लिए पेट्रो उत्पादों पर कुल उत्पाद शुल्क 1.5 लाख करोड़ रु पये के करीब है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर वित्त वर्ष 20 के लिए समान दर (उत्पाद शुल्क संग्रह पर) जारी रहती है, त् सरकारी खजाने को कम से कम 14,000 करोड़ रु पये का नुकसान हो सकता है. इस रिपोर्ट में नोवल कोरोनोवायरस के प्रसार से निपटने के लिए नए खर्च की बढ़ती मांग के बीच राजकोषीय घाटे के प्रबंधन के मामले में सरकार की कठिन परिस्थितियों को भी उजागर किया गया है.