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भारत में क्रिप्टो नियमन की कमी: कानून प्रवर्तन के सामने बढ़ती चुनौतियां

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: March 24, 2025 13:33 IST

अवैध गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है, बल्कि वैध निवेशक भी कानूनी अनिश्चितता के कारण असमंजस में रहते हैं।

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ठळक मुद्देग्लोबल स्तर पर क्रिप्टो से जुड़े अपराधों में लगातार वृद्धि हो रही है। क्रिप्टो उपयोगकर्ताओं की संख्या अधिक है, लेकिन नियामक निगरानी बेहद सीमित है।

नई दिल्लीः भारत में क्रिप्टो संपत्तियों का बाजार तेजी से विकसित हो रहा है, जिसमें तकनीकी नवाचार और आम जनता की बढ़ती रुचि महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। चेनालिसिस की 2024 जियोग्राफी ऑफ क्रिप्टो रिपोर्ट के अनुसार, भारत क्रिप्टो अपनाने में दुनिया में सबसे आगे है और ब्लॉकचेन स्टार्टअप्स तथा डिजिटल एसेट ट्रेडिंग का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है। हालांकि, इस तेज़ी से बढ़ते क्षेत्र के साथ एक बड़ी समस्या भी खड़ी हो रही है—स्पष्ट और समग्र नियामक ढांचे का अभाव। इस कमी के कारण कानून प्रवर्तन एजेंसियों (LEAs) को क्रिप्टो से जुड़े अपराधों की निगरानी और कार्रवाई में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इससे न केवल अवैध गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है, बल्कि वैध निवेशक भी कानूनी अनिश्चितता के कारण असमंजस में रहते हैं।

 

ग्लोबल स्तर पर क्रिप्टो से जुड़े अपराधों में लगातार वृद्धि हो रही है। चेनालिसिस के अनुसार, 2023 में अवैध क्रिप्टो लेन-देन का कुल मूल्य लगभग 46.1 अरब अमेरिकी डॉलर था, जो 2024 में बढ़कर 51 अरब डॉलर से अधिक हो गया। भारत में यह खतरा और गंभीर है, क्योंकि यहां क्रिप्टो उपयोगकर्ताओं की संख्या अधिक है, लेकिन नियामक निगरानी बेहद सीमित है।

मार्च 2023 में धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के दायरे को क्रिप्टो व्यवसायों तक विस्तारित करना एक सकारात्मक कदम था, लेकिन इससे जुड़ी कई महत्वपूर्ण चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं। संदिग्ध लेन-देन को ट्रैक करना और अपराधियों तक पहुंचना कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए अभी भी मुश्किल बना हुआ है, खासकर जब ये अपराधी अलग-अलग देशों या राज्यों में सक्रिय होते हैं।

भारत की संघीय शासन प्रणाली इस चुनौती को और अधिक जटिल बना देती है। देश में कानून-व्यवस्था और पुलिसिंग मुख्य रूप से राज्य सरकारों के अधीन हैं, जिसके कारण साइबर अपराधों की जांच और प्रवर्तन की क्षमता राज्यों के बीच भिन्न होती है। कुछ तकनीकी रूप से उन्नत राज्य पुलिस बलों के पास आधुनिक साइबर अपराध जांच उपकरण उपलब्ध हैं।

जबकि कई राज्यों में ऐसे अपराधों से निपटने के लिए आवश्यक संसाधन और विशेषज्ञता का अभाव है। इस असमानता का लाभ उठाकर अपराधी एक राज्य में अपराध करने के बाद उन राज्यों में चले जाते हैं, जहां कानून प्रवर्तन अपेक्षाकृत कमजोर है, जिससे कार्रवाई करना और अधिक कठिन हो जाता है।

यह असंगठित नियामक ढांचा न केवल अपराधियों के लिए सहायक बन रहा है, बल्कि वैध क्रिप्टो व्यवसायों के लिए भी समस्याएं खड़ी कर रहा है। अक्सर स्टार्टअप्स और एक्सचेंजों के बैंक खाते जब्त कर लिए जाते हैं या उन्हें लंबी कानूनी जांच से गुजरना पड़ता है, क्योंकि स्थानीय अधिकारियों के पास स्पष्ट दिशा-निर्देशों का अभाव है।

दूसरी ओर, राष्ट्रीय स्तर पर सरकार की नीति अधिकतर *राजस्व वसूली पर केंद्रित नजर आती है, जिसका उदाहरण है क्रिप्टो लाभ पर 30% टैक्स और 1% टीडीएस। इन नीतियों ने कई भारतीय ट्रेडर्स को विदेशी प्लेटफॉर्म की ओर रुख करने के लिए मजबूर कर दिया है, जिससे क्रॉस-बॉर्डर क्रिप्टो अपराधों की निगरानी करना कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए और भी कठिन हो गया है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों ने इस दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। यूरोपीय संघ (EU) ने मार्केट्स इन क्रिप्टो-एसेट्स (MiCA) कानून लागू किया है, जो उपभोक्ता संरक्षण, बाजार की पारदर्शिता और मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश प्रदान करता है। अमेरिका में SEC (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन) और CFTC (कमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग कमीशन) क्रिप्टो बाजार के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित कर रहे हैं, जिससे वहां एक संगठित नियामक ढांचा विकसित हुआ है।

ब्राजील और दुबई जैसे देशों ने भी समर्पित नियामक निकायों के माध्यम से क्रिप्टो बाजार को नियंत्रित करने के लिए स्पष्ट नियम बना लिए हैं। इसके विपरीत, भारत में अब तक किसी विशेष प्राधिकरण को वर्चुअल डिजिटल एसेट्स (VDA) को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी नहीं दी गई है।

क्रिप्टो तकनीक में लगातार बदलाव के कारण कानून प्रवर्तन की चुनौतियां और अधिक जटिल होती जा रही हैं। डिसेंट्रलाइज्ड फाइनेंस (DeFi), स्टेबलकॉइन्स और NFT जैसी नई तकनीकों ने पारंपरिक वित्तीय निगरानी को चुनौती दी है। CipherTrace की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में क्रिप्टो चोरी के 80% से अधिक मामले DeFi हैक से जुड़े थे।

भारत में बंटे हुए कानून प्रवर्तन ढांचे और अपर्याप्त साइबर अपराध जांच क्षमताओं के कारण अपराधी "चेन-हॉपिंग" और अन्य गोपनीयता उपकरणों का उपयोग कर बच निकलते हैं। भारत में कई बड़े क्रिप्टो अपराध भी सामने आ चुके हैं। 2022 में वज़ीरएक्स हैक के दौरान 230 मिलियन डॉलर से अधिक की चोरी हुई थी, जिसमें साइबर अपराधियों ने निजी कुंजियों (Private Keys) से समझौता कर धन चुरा लिया।

इस मामले में भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) को अपराधियों तक पहुंचने में कठिनाई हुई, क्योंकि देशभर में डेटा साझा करने के लिए कोई मानकीकृत प्रणाली मौजूद नहीं थी। इसके अलावा, अवैध लोन ऐप घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 19 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की थी, लेकिन ऐसे मामलों में कार्रवाई अक्सर असंगठित और धीमी रहती है।

इन बढ़ती चुनौतियों से निपटने के लिए भारत को एक मजबूत और स्पष्ट नियामक ढांचे की सख्त जरूरत है। सबसे पहले, केंद्र सरकार को क्रिप्टो से जुड़े मामलों के लिए एक विशेष नोडल एजेंसी स्थापित करनी चाहिए, जो सभी राज्यों के लिए एक समान दिशानिर्देश तैयार करे। राज्यों के बीच सूचना साझा करने की प्रक्रिया को बेहतर बनाया जाना चाहिए, ताकि साइबर अपराधों पर तेज़ और प्रभावी कार्रवाई की जा सके।

इसके अलावा, ब्लॉकचेन फॉरेंसिक टूल्स और साइबर क्राइम ट्रेनिंग में निवेश किया जाना चाहिए, जिससे कानून प्रवर्तन एजेंसियां आधुनिक तकनीकों से लैस हो सकें। पब्लिक-प्राइवेट साझेदारी को बढ़ावा देकर वैध क्रिप्टो व्यवसायों को स्पष्ट नियमों के तहत कार्य करने का अवसर दिया जाना चाहिए, जिससे नवाचार प्रभावित हुए बिना नियमन को सख्त बनाया जा सके।

यदि भारत अपनी तेजी से बढ़ती क्रिप्टो अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखना चाहता है और डिजिटल संपत्तियों में जनता का विश्वास बनाए रखना चाहता है, तो उसे जल्द से जल्द एक प्रभावी नियामक नीति तैयार करनी होगी। इससे न केवल अवैध गतिविधियों पर लगाम लगेगी, बल्कि नवाचार को भी प्रोत्साहन मिलेगा।

जिससे भारत वैश्विक डिजिटल एसेट्स क्षेत्र में अपनी प्रमुख स्थिति बनाए रखते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता को मजबूत कर सकेगा। अब समय आ गया है कि सरकार क्रिप्टो नियमन को प्राथमिकता दे, ताकि यह क्षेत्र सुरक्षित, पारदर्शी और दीर्घकालिक रूप से स्थिर रह सके।

 

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