बिहार के मढ़ौरा में बने रेल इंजन अफ्रीकी देश गिनी में दौड़ेंगे?, 4 इंजन की पहली खेप रवाना, नाम ‘कोमो’, जानिए खासियत
By एस पी सिन्हा | Updated: August 25, 2025 15:40 IST2025-08-25T15:34:45+5:302025-08-25T15:40:58+5:30
सूत्रों के अनुसार आने वाले समय में 6 हजार हार्स पॉवर तक की क्षमता वाले रेल इंजन का निर्माण करने की योजना है।

file photo
पटनाःबिहार के मढ़ौरा में स्थित रेल इंजन कारखाना में निर्मित रेल इंजन अब अफ्रीकी देश गिनी की पटरियों पर दौडेगी। इसको लेकर चार इंजन की पहली खेप वहां के लिए रवाना हो गई है। मेक इन इंडिया की अवधारणा को सार्थक बनाते हुए निर्यात किए गए इन इंजनों का नाम ‘कोमो’ रखा गया है। दरअसल, गिनी देश का एक प्रतिनिधिमंडल इस वर्ष मई-जून में यहां आया हुआ था। उस दौरान 140 लोकोमोटिव इंजन निर्यात के लिए तीन हजार करोड़ का इकरारनामा इस कंपनी के साथ हुआ था। जिसके तहत दो महीने बाद ही इसकी पहली खेप रवाना हो गई है।
बताया जाता है कि ‘कोमो’ की अन्य खेपें रवाना कर दी गई हैं। गिनी देश के लिए निर्यात किए जाने वाले इन रेल इंजनों की क्षमता 4500 हॉर्स पावर है। सूत्रों के अनुसार आने वाले समय में 6 हजार हार्स पॉवर तक की क्षमता वाले रेल इंजन का निर्माण करने की योजना है। भारत में सप्लाई होने वाले इन रेल इंजनों का रंग लाल और पीला होता है।
जबकि, गिनी निर्यात होने वाले रेल इंजन का रंग नीला रखा गया है। इसके सभी इंजनों का कैब पूरी तरह से एयर कंडीशनर है। विदेश भेजे गए इन इंजनों में इवेंट रिकॉर्डर, लोको कंट्रोल, खास तरह का ब्रेक सिस्टम एएआर समेत अन्य कई खास तरह के उपकरण लगाए गए हैं। इनकी उपयोगिता अलग-अलग तरह से है।
बताया जा रहा है कि मढ़ौरा रेल इंजन कारखाना से साल 2018 से अब तक कुल 700 इंजन का निर्माण किया जा चुका है। प्रतिवर्ष यहां लगभग 100 रेल इंजनों का निर्माण किया जाता है। वहीं, पिछले नौ सालों में यहां 250 से अधिक रेल इंजन का मेंटेनेंस किया जा चुका है।
जो गांधीधाम (गुजरात) स्थित रेल इंजन कारखाना से कहीं ज्यादा है। पिछले 4 वर्षों में यहां 500 रेल इंजनों को मेंटेन किया गया है। उल्लेखनीय है कि इस रेल इंजन कारखाने से प्रति वर्ष बिहार को कुल 900 करोड़ रुपये की जीएसटी मिलती है। इतनी ही जीएसटी केंद्र सरकार के पास भी जाती है।