कभी तांगा चलाते थे ‘एमडीएच के दादाजी’, मेहनत से बनाया 1,500 करोड़ का कारोबारी साम्राज्य
By भाषा | Published: December 3, 2020 07:08 PM2020-12-03T19:08:24+5:302020-12-03T19:08:24+5:30
नयी दिल्ली, तीन दिसंबर मसाला ब्रांड एमडीएच के टेलीविजन विज्ञापनों के जरिए घर-घर में अपनी पहचान बनाने वाले ‘एमडीएच के दादाजी’ के नाम से मशहूर महाशय धर्मपाल गुलाटी ने तांगा बेचकर दिल्ली के करोल बाग से अपने मसाला कारोबार की शुरुआत की। वह लगातार आगे बढ़ते रहे और 94 वर्ष की उम्र में देश के एफएमसीजी क्षेत्र में सबसे अधिक वेतन पाने वाले सीईओ बने।
सफलता की मिसाल कायम करने वाले मसाला किंग अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका बृहस्पतिवार (3 दिसंबर 2020) को 97 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
मसाला किंग धर्मपाल गुलाटी का जन्म सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में 27 मार्च 1923 को हुआ था और विभाजन के बाद वह भारत आ गए। उनका परिवार विभाजन के दौरान अपना सब कुछ छोड़कर दिल्ली में रहने आ गया।
उनके पिता की सियालकोट में मसालों की दुकान थी, जिसका नाम ‘महाशियां दी हट्टी’ (एमडीएच) था, लेकिन दुकान को ‘देगी मिर्च वाले’ के नाम से जाना जाता था।
गुलाटी को कक्षा पांच के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा। इसके बाद उन्होंने लकड़ी का काम सीखा, साबुन फैक्टरी, कपड़े की फैक्टरी और चावन मिल में काम किया।
एमडीएच की वेबसाइट पर उनकी जीवनी में लिखा है कि विभाजन के बाद वह 1,500 रुपये के साथ सितंबर 1947 में दिल्ली पहुंचे। उन्होंने 650 रुपये में एक तांगा खरीदा और कुछ दिनों के लिए इसे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड तक और करोल बाग से बारा हिंदू राव तक चलाया।
उन्होंने अक्टूबर 1948 में करोल बाग के अजमल खान रोड में एक छोटी सी दुकान खोलकर अपने पुश्तैनी कारोबार को फिर से शुरू करने के लिए अपनी गाड़ी बेच दी और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
व्यवसाय बढ़ने के साथ ही वह खुद देगी मिर्च, चाट मसाला और चना मसाला जैसे एमडीएच के सबसे प्रसिद्ध उत्पादों के टेलीविजन विज्ञापनों में दिखाई देने लगे। इस समय एमडीएच के 50 से अधिक उत्पाद हैं।
इस दौरान वह एमडीएच के दादाजी या महाशय जैसे नामों से घर-घर में जाना-पहचाना चेहरा बन गए।
सफलता की मिसाल कायम करने वाले मसाला किंग अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका तीन दिसंबर को 97 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
उनके पिता महाशय चुन्नी लाल गुलाटी ने 1919 में एमडीएच मसाले की स्थापना की थी, और धर्मपाल ने इसे 1,500 करोड़ रुपये के साम्राज्य में बदल दिया।
कंपनी की आधिकारिक तौर पर स्थापना 1959 में हुई, जब गुलाटी ने कीर्ति नगर में जमीन खरीदी और एक विनिर्माण इकाई स्थापित की।
एमडीएच ने मसाले की तेजी से बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए जल्द ही स्वचालित मशीनों का इस्तेमाल शुरू कर दिया। आज आधुनिक मशीनों द्वारा करोड़ों रुपये के मसालों का निर्माण और पैकिंग की जाती है और कंपनी के 1,000 से अधिक स्टॉकिस्ट और चार लाख से अधिक खुदरा डीलरों के नेटवर्क के माध्यम से पूरे भारत और विदेश में बेचा जाता है।
एमडीएच मसाले दुनिया के विभिन्न हिस्सों में निर्यात किए जाते हैं, जिनमें ब्रिटेन, यूरोप, यूरोपीय संघ और कनाडा शामिल हैं। वर्ष 2017 में 21 करोड़ रुपये वेतन पाने वाले गुलाटी ने कहा कि वह अपने महाशय चुन्नी लाल चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से अपनी लगभग 90 प्रतिशत संपत्ति दान करेंगे।
ट्रस्ट दिल्ली में एक 250 बिस्तर वाले अस्पताल का संचालन करता है, जिसमें झुग्गी-झोपड़ी के लोगों के इलाज की सुविधा के साथ ही चार विद्यालयों के लिए एक मोबाइल अस्पताल भी है। गुलाटी ने 20 से अधिक स्कूलों की स्थापना की।
उन्हें 2019 में देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
गुलाटी के निधन पर सोशल मीडिया में बड़ी संख्या में उनके प्रशंसक श्रद्धांजलि दे रहे हैं। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी।
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