न्यायालय ने रिलायंस इंफ्राटेल की समाधान योजना को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की
By भाषा | Updated: August 10, 2021 22:13 IST2021-08-10T22:13:17+5:302021-08-10T22:13:17+5:30

न्यायालय ने रिलायंस इंफ्राटेल की समाधान योजना को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की
नयी दिल्ली, 10 अगस्त उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को रिलायंस इंफ्राटेल लि. की समाधान योजना को राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) से मिली मंजूरी को चुनौती देने वाले परिचालन से जुडे कर्जदाताओं की याचिका खारिज कर दी। न्यायालय ने कहा कि दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत योजना को कर्जदाताओं की समिति ने आवश्यक बहुमत से मंजूरी दी है।
न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायाधीश एम आर शाह की पीठ ने कहा कि कर्जदाताओं की समति (सीओसी) से कुछ वित्तीय कर्जदाताओं को अलग करने से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि योजना को सीओसी की 100 प्रतिशत मत हिस्सेदारी से अनुमोदित किया गया है।
पीठ ने कहा, ‘‘मौजूदा मामले में समाधान योजना को धारा 30 (4) के अनुरूप सीओसी के जरूरी बहुमत से विधिवत मंजूरी दी गयी। एक बार जब सीओसी के 100 प्रतिशत वोट के जरिये योजना को मंजूरी दे दी जाती है, कुछ वित्तीय कर्जदाताओं को समिति से बाहर करने की आवश्यकता थी या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।’’
पीठ ने कहा कि निर्णय लेने वाला प्राधिकरण (राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण) का अधिकार क्षेत्र धारा 31 (1) के प्रावधान से निर्धारित है। इसके तहत उसे यह निर्धारित करना है कि सीओसी ने जिस योजना को मंजूरी दी है, वह आईबीसी के प्रावधानों के अनुरूप है या नहीं।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘मामले में एक बार कानून की आवश्यकताओं को विधिवत पूरा कर लेने के बाद, निर्णय करने वाला प्राधिकरण और अपीलीय प्राधिकारण के निर्णय विधि के अनुरूप होते हैं। उक्त कारणों से, हमें अपील में कोई दम नहीं लगता। अत: इसे खारिज किया जाता है।’’
रिलायंस इंफ्राटेल को परिचालन संबंधी जरूतों के लिये कर्ज सुविधा देने वाले ऋणदाताओं ने एनसीएलटी के समाधान योजना को मंजूरी दिये जाने और बाद में राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) द्वारा उसे बरकरार रखने के फैसले को न्यायालय में चुनौती दी थी। उनका कहना था कि योजना के तहत उन्हें कम राशि मिली है जबकि वे दूरसंचार टावर और ऑप्टिकल फाइबर तथा अन्य संबद्ध ढांचागत सुविधाओं के परिचालन और रखरखाव को लेकर जरूरी सेवाएं दे रहे थे।
संचालन से जुड़े कर्जदाताओं का दावा था कि कोष के वितरण में उनके साथ भेदभाव हुआ है।
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