जलवायु परिवर्तनः विदर्भ सहित मराठवाड़ा और खानदेश में कपास, सोयाबीन, चना और गेहूं की पैदावार प्रभावित

By सैयद मोबीन | Published: July 7, 2021 09:48 PM2021-07-07T21:48:04+5:302021-07-07T21:49:38+5:30

हर चीज की तरह मिट्टी की भी एक क्षमता होती है. इसी क्षमता के अनुसार उसकी उत्पादकता होती है लेकिन हम क्षमता से अधिक पैदावार हासिल करने का प्रयास करते हैं.

Climate change Production cotton soybean gram and wheat affected Marathwada KhandeshVidarbha | जलवायु परिवर्तनः विदर्भ सहित मराठवाड़ा और खानदेश में कपास, सोयाबीन, चना और गेहूं की पैदावार प्रभावित

नीरी के पूर्व मुख्य वैज्ञानिक डॉ. जय शंकर पाण्डेय ने कहा कि सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए आईसीएफएआर एक्टिविटीज का बैलेंस जरूरी।

Highlightsनतीजे में ज्यादा उत्पाद हासिल होने के बजाय उत्पादकता कम होती जा रही है.अनुपात का सही तरीके से पालन किया गया तो हम सस्टेनेबल डेवलपमेंट कर सकेंगे.मिट्टी पर अपनी क्षमता से अधिक बोझ आता है. नतीजे में उत्पादकता में कमी आती है.

नागपुरः महाराष्ट्र में जलवायु परिवर्तन की वजह से विदर्भ सहित मराठवाड़ा और खानदेश में लगातार फसलों खासकर कपास, सोयाबीन, चना और गेहूं की पैदावार प्रभावित हो रही है.

 

भविष्य में भी इसका प्रभाव दिखाई देने का अनुमान है. इसका खुलासा हाल ही में आई इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल कम्युनिटीज की सर्वे रिपोर्ट में हुआ है. इस संदर्भ में नीरी के पूर्व मुख्य वैज्ञानिक एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रमुख डॉ. जय शंकर पाण्डेय ने लोकमत समाचार को बताया कि जलवायु परिवर्तन के साथ ही ज्यादा उत्पादन हासिल करने के चक्कर में पैदावार घट रही है.

उन्होंने कहा कि हर चीज की तरह मिट्टी की भी एक क्षमता होती है. इसी क्षमता के अनुसार उसकी उत्पादकता होती है लेकिन हम क्षमता से अधिक पैदावार हासिल करने का प्रयास करते हैं. नतीजे में ज्यादा उत्पाद हासिल होने के बजाय उत्पादकता कम होती जा रही है.

उन्होंने कहा कि सतत विकास यानी सस्टेनेबल डेवपलमेंट के लिए इंडस्ट्रियल, कमर्शियल, फॉरेस्ट, एग्रीकल्चर एंड रेसीडेंशियल (आईसीएफएआर) एक्टिविटीज के अनुपात का पालन करना जरूरी है. इस अनुपात का सही तरीके से पालन किया गया तो हम सस्टेनेबल डेवलपमेंट कर सकेंगे.

यदि इसमें किसी एक में भी कमी या ज्यादती हुई तो इसका हाल वैसा ही होगा जैसा खाने में नमक, हल्दी, तेल, मिर्च आदि के कम या ज्यादा होने पर होता है. उन्होंने कहा कि पहले कृषि उत्पादकता लेने के लिए कुछ वर्षों के अंतराल से जमीन को बगैर पैदावार लिए वैसे ही छोड़ा जाता था, जिससे उत्पादकता बढ़ने में मदद मिलती थी लेकिन अब ऐसा होता नहीं दिखता है बल्कि एक के बाद एक ज्यादा उत्पादन हासिल करने पर जोर दिया जाता है. इससे मिट्टी पर अपनी क्षमता से अधिक बोझ आता है. नतीजे में उत्पादकता में कमी आती है.

हर जिले के लिए बनें पर्यावरण स्वास्थय कार्ड

उन्होंने कहा कि आईसीएफएआर का अनुपात हर क्षेत्र के लिए अलग-अलग होगा. इसके लिए जरूरी है कि हर जिले के लिए पर्यावरण स्वास्थय कार्ड बनाया जाए और इसके अनुसार ही संबंधित जिले में सभी एक्टिविटीज को अंजाम दिया जाए. इस पर अमल करने में संबंधित क्षेत्रों से जुड़े हर स्तर के लोगों को भी इसमें शामिल करना जरूरी है ताकि इसके अधिकाधिक सकारात्मक परिणाम दिखाई दे सके.

यह है रिपोर्ट

इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल कम्युनिटीज की महाराष्ट्र में कृषि पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव शीर्षक वाली रिपोर्ट में पिछले तीस साल (1989 से 2018) के सप्ताहवार आंकड़ों का विश्लेषण कर राज्य के विदर्भ, खानदेश, मराठवाड़ा के आठ जिलों में होने वाली (वर्ष 2021 से 2050 तक) बारिश और पड़ने वाली गर्मी के आंकड़ों का पूर्वानुमान लगाया गया है. इसके अनुसार राज्य में उगाई जाने वाली चार प्रमुख फसलें - सोयाबीन, कपास, गेहूं और चना इससे प्रभावित हो सकती हैं.

Web Title: Climate change Production cotton soybean gram and wheat affected Marathwada KhandeshVidarbha

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