कलाकार: कार्तिक आर्यन, अनन्या पांडे, नीना गुप्ता, जैकी श्रॉफ
निर्देशक: समीर विद्वांस
रेटिंग: ⭐️⭐️⭐️⭐
जब सिनेमा मानवीय संवेदनाओं को ईमानदारी से छूता है, तो वह केवल एक फिल्म नहीं बल्कि एक अनुभव बन जाता है। निर्देशक समीर विद्वांस की नवीनतम पेशकश ‘तू मेरी मैं तेरा...’ कुछ ऐसी ही है। धर्मा प्रोडक्शंस के चिर-परिचित भव्य अंदाज और समीर की मर्मस्पर्शी निर्देशन शैली के मेल ने इस फिल्म को इस साल की सबसे खूबसूरत रोमांटिक ड्रामा फिल्मों की कतार में खड़ा कर दिया है।
कहानी: जब 'मैं' और 'तुम' से आगे बढ़कर बात 'हम' पर आई
फिल्म की शुरुआत हमें क्रोएशिया के हसीन नज़ारों के बीच रे (कार्तिक आर्यन) से मिलवाती है। रे एक ऐसा शख्स है जो रिश्तों की पेचीदगियों से दूर भागता है और पल भर में जीने का कायल है। वहीं रूमी (अनन्या पांडे) अपनी सोच में स्पष्ट और इरादों में पक्की है। इन दो अलग मिजाज के किरदारों का मिलन किसी इत्तेफाक से कम नहीं, लेकिन असल कहानी तब शुरू होती है जब सफर खत्म होता है और जिंदगी की हकीकतें सामने आती हैं। फिल्म बड़े ही प्रभावी ढंग से दिखाती है कि प्रेम करना और उस प्रेम को निभाना, दो अलग कलाएं हैं।
अभिनय: कार्तिक का 'इमोशनल ग्राफ' और अनन्या की संजीदगी
यह फिल्म कार्तिक आर्यन के करियर का एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित होगी। उन्होंने दिखा दिया है कि वे अपनी सिग्नेचर मुस्कान के पीछे गहरे दर्द को भी बखूबी छिपा सकते हैं। फिल्म के भावुक दृश्य उनकी अभिनय क्षमता की गवाही देते हैं। वहीं, अनन्या पांडे ने रूमी के रूप में एक ऐसी परिपक्वता दिखाई है जो उनके पिछले किरदारों में नदारद थी। उनकी खामोशियां भी स्क्रीन पर संवाद करती हैं।
सह-कलाकारों में नीना गुप्ता और जैकी श्रॉफ की मौजूदगी फिल्म को एक वज़न देती है। उनके अनुभव ने स्क्रीन पर जो गरिमा बिखेरी है, वह दर्शकों के दिलों को सीधे छूती है।
निर्देशन और तकनीकी पक्ष: स्वाभाविकता ही है खूबसूरती
निर्देशक समीर विद्वांस की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने कहानी को अनावश्यक ड्रामे से बचाकर रखा है। करण शर्मा की लिखावट में एक तरह की 'ऑर्गेनिक' फीलिंग है। अनिल मेहता की जादुई सिनेमेटोग्राफी और विशाल-शेखर का सुरीला संगीत फिल्म को तकनीकी रूप से एक 'विजुअल और ऑडियो ट्रीट' बनाता है। फिल्म का हर फ्रेम एक पेंटिंग की तरह सुंदर और वास्तविक लगता है।
खूबी और खामी वाले पॉइंट
फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष इसका जेंडर-न्यूट्रल दृष्टिकोण है—जहाँ एक पुरुष का अपनी गलतियों को स्वीकार करना और खुद को बेहतर बनाना कमजोरी नहीं बल्कि ताकत दिखाई गई है। हालांकि, स्क्रिप्ट की धीमी रफ़्तार कुछ दर्शकों को खल सकती है, खासकर पहले हाफ में जहाँ कहानी जमने में थोड़ा वक्त लेती है।
वर्डिक्ट
‘तू मेरी मैं तेरा मैं तेरा तू मेरी’ एक ऐसी फिल्म है जो युवाओं को अपनी भाषा में बात करती हुई लगेगी और बुजुर्गों को बीते दौर की सादगी की याद दिलाएगी। यह फिल्म हमें सिखाती है कि प्यार में 'समझौता' करना हार नहीं, बल्कि रिश्ते को जीतने का एक तरीका है। अगर आप बेहतरीन अभिनय और साफ-सुथरी कहानी के शौकीन हैं, तो यह फिल्म आपके लिए 'मस्ट वॉच' है।