International Womens Day: वक्त के साथ हिंदी फिल्मों में बहुत बदला है मां का चेहरा

By असीम चक्रवर्ती | Published: March 8, 2019 02:15 PM2019-03-08T14:15:39+5:302019-03-08T14:15:39+5:30

एक दौर था जब हर दूसरी फिल्म में मां का किरदार बहुत अहम होता था

Time has changed a lot in Hindi films | International Womens Day: वक्त के साथ हिंदी फिल्मों में बहुत बदला है मां का चेहरा

International Womens Day: वक्त के साथ हिंदी फिल्मों में बहुत बदला है मां का चेहरा

एक दौर था जब हर दूसरी फिल्म में मां का किरदार बहुत अहम होता था. इधर एक अरसे बाद फिल्म 'बधाई हो' में मां बनी नीना गुप्ता बहुत शिद्दत के साथ अपने किरदार को अंजाम देती है. देखा जाए तो इस फिल्म में प्रियवंदा कौशिक का किरदार भी बहुत अहम है. इस ताजा उदाहरण से एक बात तो साफ हो जाती है कि इधर हिंदी फिल्मों में मां का चेहरा बहुत बदला है. मां ही संस्कार सिखाती है इस प्रसंग में चर्चा करते हुए अभिनेता शाहरुख खान अपनी फिल्म 'ओम शांति ओम' की मां को भी बहुत तार्किक मानते हैं.

वह कहते हैं, ''मैं मानता हूं कि यह मां बहुत फिल्मी लगती है, पर यह इस किरदार के लिए जरूरी था. क्योंकि उसका बेटा फिल्मों में जूनियर आर्टिस्ट है और मां भी कभी जूनियर डांसर रह चुकी है. इसलिए सिर्फ बेटा ही नहीं मां भी फिल्मी स्टाइल में संवाद बोलती है.'' एक अपराधी की अनपढ़ मां भी अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने की कोशिश करती है. दूसरी ओर 'दीवार', 'त्रिशूल' आदि फिल्मों की मां एक मूल्यबोध के साथ जुड़ी हुई है. ये फिल्में आज भी इसी वजह से पसंद की जाती हैं.

ज्यादा नहीं तो 90 के दशक की हिट फिल्म 'मैंने प्यार किया' की मां को ही ले लीजिए. आज ज्यादातर युवक ऐसे मां की उम्मीद करते हैं. यह मां अपने युवा बेटे सलमान खान के बहुत करीब है. थोड़ा-सा फिल्मी होने के बावजूद वह अपने बेटे को आदर्श मूल्यों की पहचान कराती है. नेगेटिव मां से नफरत हिंदी फिल्मों के लंबे इतिहास में ढेरों फिल्मों मे नजर आनेवाला मां का किरदार सिर्फ गिनती की कुछ फिल्मों में यादगार बन पाया. 'मदर इंडिया', 'मुगल-ए-आजम', 'शहीद', 'ममता', 'दीवार', 'आराधना', 'शक्ति', 'वास्तव' आदि मुश्किल से दो दर्जन फिल्में ही ऐसी हैं जिनमें निभाए गए मां के किरदार दर्शकों के बीच चर्चा का विषय बनें. महेश मांजरेकर की 'वास्तव' में एक माफिया सरगना रघुनाथ नामदेव शिवलकर यानी संजय दत्त की मां का रोल करके नए दौर की अभिनेत्री रीमा लागू ने खूब वाहवाही बटोरी थी. नई और पुरानी मां के बीच का फर्क पुराने दौर की बात करें तो दुर्गा खोटे, लीला चिटणीस, सुलोचना, निरूपा रॉय, ललिता पवार, लीला मिश्रा आदि कई चरित्र अभिनेत्रियों को याद करना लाजिमी है.

इन तारिकाओं ने अपने सशक्त अभिनय से मां के किरदार में एक नया रंग भरा, लेकिन आज ऐसी मां कम ही देखने को मिलती है. संतुष्ट नहीं गुलजार गुलजार इसका सारा दोष स्क्रप्टि को देते हैं. वह बताते हंै, ''इधर हमारी फिल्मों में मां को जिस तरह से पेश किया जा रहा है, उससे मैं जरा भी संतुष्ट नहीं हूं. असल में इनके रोल ही ऐसे लिखे जा रहे हंै कि एक आदर्श मां की छवि सेल्यूलाइड में उभर कर सामने नहीं आ पा रही है. इसके लिए मंै अपनी फिल्म 'मौसम' की बजाय 'मदर इंडिया' की मां की चर्चा बार-बार करना चाहूंगा. मेरा ख्याल है, यही मां का आदर्श चेहरा है जो सिर्फ अपने बच्चों के प्रति ही नहीं बल्कि गैरों के लिए भी भरपूर ममता रखती है. वैसे भी मां तो ममतामयी ही अच्छी लगती है.'' क्या कहती हंै महिला सेलेब्स मैं कोई एक्टिविस्ट नहीं बनना चाहती एक्ट्रेस और डायरेक्टर नंदिता दास ने कहा, ''मैं महिलाओं की किसी भी उपलब्धि को बहुत अच्छी तरह से सेलिब्रेट करती हूं. मगर मेरी यह खुशी तब बहुत छोटी हो जाती है जब मैं यह देखती हूं कि मुझ जैसी सोच वाली महिलाआंे की तादाद बहुत कम है. मंै कोई एक्टिविस्ट नहीं बनना चाहती हूं. अपने ढंग से उनके लिए कुछ न कुछ करने की कोशिश करती हूं.'' महिला के काम को एप्रूवल मिलने में वक्त लगता है डायरेक्टर गौरी शिंदे का कहना है कि किसी महिला के काम को एप्रूवल मिलने में थोड़ा वक्त तो लगता ही है. उन्होंने बताया, ''जैसे कि शुरू-शुरू में मेरी काम करने की शैली के बारे में कई लोगों का कहना था कि यह लड़की क्या कर पाएगी, सिर्फ मुगालते मंें जीती है.

लोग यहां तक पूछते थे कि मैंने इतने बड़े स्टार को कैसे डायरेक्ट किया. कुछ मिलाकर एक महिला की योग्यता को लेकर लोगों के मन में कई प्रश्न होते हैं. सीधी सी बात है. यदि आपको अपना काम पूरी तरह से पता है तो आपको कोई भी रोक नहीं सकता है.'' कहीं मैं पीछे न रह जाऊं अभिनेत्री दीप्ति नवल ने कहा, ''डायरेक्टर प्रकाश झा के साथ मेरे शादी को लेकर ढेरों बातंे लिखी जाती हैं. फिलहाल तो इतना ही कहूंगी कि कुछ डिफरेंसेस तो थे ही जिस वजह से हम अलग हुए. पर हमने कोई तमाशा नहीं बनाया. हम आज भी अच्छे दोस्त हैं. शादी टूटने के बाद मैंने अपने जेहन को और विस्तार देना शुरू कर दिया. आज तो ऐसा लगता है कि मेरे पास करने को बहुत कुछ है.

कहीं मैं पीछे न रह जाऊं.'' महिला विरोधी नहीं मैं टीवी क्वीन एकता कपूर का कहना है कि अच्छा या बुरा, हर महिला के दो चेहरे होते हैं और उसी को वह अपने सीरियलों में दिखाती हैं. वह महिला विरोधी नहीं हैं. उन्होंने कहा, ''मैं इन दो बातों को लेकर ही अपने सीरियल की सारी कहानी बुनती हूं. यदि महिलाएं अपने आस-पास की जिंदगी से जुड़ी कुछ बातों को किसी सीरियल में देखना चाहती हैं तो मैं उसे ही टारगेट करती हूं. किसी सीरियल में महिला को नेगेटिव दिखाने का यह मतलब नहीं है कि मैं महिला विरोधी हूं.''

Web Title: Time has changed a lot in Hindi films

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