पुण्यतिथी विशेष: जब लता मंगेशकर को लेकर एसडी बर्मन ने दिया था ये बयान, खफा हो गई थीं स्वर कोकिला
By मेघना वर्मा | Published: October 1, 2019 06:50 AM2019-10-01T06:50:39+5:302019-10-01T06:50:39+5:30
अपने जीवन के शरूआती दौर में एसडी बर्मन ने रेडियो से प्रसारित पूर्वोतर लोक संगीत के कार्यक्रमों में काम किया। वहीं साल 1930 में स्थापित लोकगायक के रूप में उन्हें अपनी पहचान मिली।
जाने-माने संगीतकार सचिनदेव बर्मन यानी एसडी बर्मन की आज पुण्यतिथी है। एसडी बर्मन अपने खास म्यूजिक कम्पोजिंग की स्टाइल के लिए जाने जाते रहे हैं। आज भले ही वो हमारे बीच नहीं है मगर उनकी यादें उनके खूबसूरत नगमों के साथ हम सभी के बीच हैं। उनके गाये लोकगीत के अंदाज आज भी युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।
फिल्म काबुलीवाला का गंगा आए कहां से हो या गाइड का गाना वहां कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहां जैसे गीत आज भी लोगों की रूह छू जाते हैं। अपने फिल्मी सफर में एसडी बर्मन ने कई बेहतरीन नगमें इंडस्ट्री को दिए हैं। आज उनकी पुण्यतिथी पर उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ रोचक बातें यहां पढ़िए।
31 अक्टूबर 1906 में जन्मे एसडी बर्मन त्रिपुरा के शाही परिवार में पले-बढ़े। गीत-संगीत में रूचि परिवार से ही बढ़ी। एसडी बर्मन के पिता जाने-माने सितारवादक और ध्रुपद गायक थे। बचपन से ही सचिदेव बर्मन का रूझान संगीत में रहा था। पिता से ही उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली थी।
अपने जीवन के शरूआती दौर में एसडी बर्मन ने रेडियो से प्रसारित पूर्वोतर लोक संगीत के कार्यक्रमों में काम किया। वहीं साल 1930 में स्थापित लोकगायक के रूप में उन्हें अपनी पहचान मिली।
एक गायक के तौर पर साल 1933 में आई फिल्म यहूदी की लड़की में गाने का मौका मिला। पहले उस फिल्म का कुछ कमाल नहीं चला मगर फिल्मके गानों ने एसडी बर्मन को हिट करा दिया। फिर साल 1935 में आई फिल्म सांझेर पिदम में भी अपनी आवाज दी। मगर बैकग्राउंड सिंगर के तौर पर उन्हें कुछ खास पहचान नहीं मिली।
बताया जाता है कि एक बार आरडी बर्मन के एक वक्तव्य से नाराज होकर लता जी ने उनसे दूरियां बढ़ा ली थीं। रिपोर्ट्स की मानें तो एक बार एसडी बर्मन ने एक इंटरव्यू में कहा था, 'मुझे हारमोनियम और लता दो मैं संगीत बना दूंगा' इस घटना के बाद छह साल तक लता और एसडी बर्मन ने कभी साथ काम नहीं किया। वहीं छह साल बाद जब फिल्म बंदिनी में दोनों साथ आए तो कमाल मचा दिया। गाने मेरा गोरा अंग लैले और जोगी अब से तू आया मेरे द्वार सभी की जुबान पर छा गया।
एसडी बर्मन को दो बार फिल्म फेयर के सम्मान से नवाजा गया। सबसे पहले साल 1954 में आई फिल्म टैक्सी ड्राइवर के लिए उन्हें अवॉर्ड मिला। बाद में 1973 में आई फिल्म अभिमान के लिए भी उन्हें पुरस्कार दिया गया। हिंदी जगत को अपने बेमिसाल संगीत से सराबोर करने वाले सचिन दा 31 अक्टूबर 1975 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।