यूं ही नहीं कोई 'शोमैन' बन जाता, पढ़िए राज कपूर की जीवन के अनसुने किस्से
By भारती द्विवेदी | Published: June 2, 2018 05:21 AM2018-06-02T05:21:00+5:302018-06-02T05:21:00+5:30
Raj Kapoor Death Anniversary: आरके बैनर के लोगो में दिखने वाला कपल कोई और नहीं बल्कि राज कपूर और नरगिस की ही जोड़ी हैं। ये फिल्म बरसात का दृश्य है, जिसे राज कपूर ने लोगो के रूप में चुना था।
नई दिल्ली, 2 जून: रणबीर राज कपूर। जिन्हें दुनिया राज कपूर और हिंदुस्तान के सबसे बड़े 'शोमैन' के तौर पर जानती है। फिल्मी दुनिया में जिद, जज्बा और और मेहनत इन तीनों ही शब्दों को अगर एक शक्ल देनी हो तो, बेशक वो चेहरा राज कपूर साहब का होगा। अपनी हर फिल्मों के जरिए दर्शकों को एक अलग दुनिया से रूबरू कराने वाले राज कपूर ने जीवन में सफलता-असफलता दोनों ही देखी। लेकिन ना कभी सफलता को सिर पर हावी होने दिया और ना ही कभी असफलताओं से घबरा कर कुछ नए करने से डरे। 2 जून 1988 को दुनिया को अलविदा कहने वाले राज कपूर साहब के जीवन के कुछ अनसुने किस्सों से आइए आपको रूबरू करवाते हैं।
राज कपूर का बचपन
राज कपूर का जन्म 14 दिसंबर 1924 में को महान अभिनेता पृथ्वीराज कपूर और रामसरनी देवी कपूर के घर पेशावर (तब का भारत, आज का पाकिस्तान) में हुआ था। छह भाई-बहनों में राज कपूर सबसे बड़े संतान थे। लेकिन इनके दो भाई बचपन में ही गुजर गए थे। बहन उर्मिला को छोड़ दें तो तीन भाईयों (राज-शम्मी-शशि कपूर) ने हिंदी सिनेमा में एक्टिंग से खूब नाम कमाया। राज कपूर की पूरी फैमिली बाद में पेशावर से पंजाब आ गई। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई देहरादून के कर्नल ब्राउन कैम्ब्रिज स्कूल से की थी। इसके अलावा उन्होंने सेंट जेवियर स्कूल कलकत्ता और मुंबई से भी पढ़ाई की थी।
जब ठीक से काम ना करने के लिए सेट पर पड़ा था थप्पड़
राजकपूर मात्र दस साल की उम्र में ही फिल्म करने लगे थे। फिल्म '1935 इंकलाब' उनकी पहली फिल्म थी। कई छोटी-बड़ी फिल्मों में काम करने के दौरान डायरेक्टर केदार शर्मा की नजर उन पर पड़ी। केदार शर्मा ने अपनी एक फिल्म के लिए राज कपूर को बतौर क्लैपर बॉय रखा। किस्सों के अनुसार उन्हें एक सीन के दौरान हीरो के लिए ताली बजानी थी लेकिन वो अपने बाल ठीक करने में इतने मशगूल थे। जिसकी वजह से वो सीन सही से कर नहीं पाए। कई रीटेक बाद भी जब राज कपूर ने सीन डायरेक्टर के मन मुताबिक शूट नहीं किया तो केदार शर्मा ने गुस्से से एक थप्पड़ जड़ दिया। हालांकि की बाद में केदार शर्मा को अपने किए पर अफसोस हुआ। उन्हें ये एहसास हुआ कि राज कपूर तो खुद हीरो बनना चाहते हैं। जिसके बाद उन्होंने अपनी फिल्म 'नीलकमल' में अभिनेत्री मधुबाला के अपोजिट साइन किया। ये फिल्म साल 1947 में आई थी।
एक ताना, जिसकी वजह से बन गया आरके बैनर
साल 1948 में राजकपूर 24 साल के हो गए थे। और 24 साल में ही उन्होंने फिल्मों को प्रोड्यूस करने का मन बना लिया था। मां-बाप, दोस्त सबने उन्होंने खूब समझाया कि फिल्म प्रोड्यूस करना इतना आसान नहीं। बहुत पैसे की जरूरत होती है। लेकिन वो राज कपूर थे, जो सोच लिया वो सोच लिया। कुछ पैसे इकट्ठा किए, कुछ उधार ले, फिल्म 'आग' का निर्माण कर दिया। फिल्म बनने के बाद कुछ डिस्ट्रिब्यूटर ने ताना मारते हुए राज कपूर को ये सलाह दी कि जब फिल्म बनाई है तो क्यों ना खुद का एक थियेटर भी बना लेते। राज कपूर ने जब सवाल किया क्यों तो सामने से जवाब मिला- जब आग लगे तो आपके ही थियेटर में लगे, हमारे थियेटर में क्यों लगे? ये बात राज कपूर साहब को चुभ गई। फिर क्या उन्होंने आरके बैनर बना का निर्माण कर दिया।
पर्दे पर असल जिंदगी की वो कहानी, जो बुरी तरह पीटी
साठ का दशक खत्म होते-होते राज कपूर ने अपने जीवन के ऊपर फिल्म बनाने की ठानी। फिर फिल्म 'मेरा नाम जोकर' की शुरुआत हुई। इस फिल्म को बनाने में 6 साल लगे। राज कपूर के दूसरे बेटे ऋषि कपूर ने इस फिल्म में राज कपूर के बचपन का किरदार निभाया। फिल्म जगत के कई बड़े सितारों ने इस फिल्म में काम किया। वैसे तो राज कपूर पूरी दुनिया में बेहद मशहूर थे। लेकिन चीन और रशिया में इनकी पॉपुलैरिटी कुछ ज्यादा ही थी। इस वजह से 'मेरा नाम जोकर' में रशियन सर्कस के बहुत सारे कलाकारों ने भी काम किया था। खैर फिल्म बनी और बुरी तरह पिट गई। जिस फिल्म से राज कपूर ने ढ़ेरों उम्मीद लगा रखी थी, उस फिल्म ने उनकी माली हालत तक खराब कर दी। बहुत कुछ नीलाम हुआ। हालांकि इस फिल्म की गिनती बाद में बॉलीवुड की कल्ट क्लासिकल फिल्मों में होने लगी। 'मेरा नाम जोकर' की असफलता को भूलाकर, उन्होंवने फिल्म 'बॉबी' का निर्माण किया। इस फिल्म के जरिए उन्होंने फिर से साबित किया कि राज कपूर कभी खत्म नहीं हो सकते।
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