हिंदू धर्म को ठेस पहुंचाने पर रणवीर शौरी का फूटा गुस्सा कहा- ये हिंदू धर्म को नीचे की तरफ खींच रहे हैं...
By ऐश्वर्य अवस्थी | Published: January 3, 2020 04:13 PM2020-01-03T16:13:06+5:302020-01-03T16:13:06+5:30
हाल ही में फैज अहमद फैज और बीएचयू में मुस्लिम संस्कृति अध्यापक को लेकर बॉलीवुड एक्टर रणवीर शौरी ने ट्वीट किया है। जो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है।
मशहूर शायर फैज अहमद फैज की कविता हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे को लेकर विवाद बढ़ने के बाद आईआईटी कानपुर ने एक समिति गठित कर दी है। ये समिति ये तय करेगी कि फैज की नज्म हिंदू विरोधी या फिर नहीं। इस पर जावे अख्तर ने अपनी राय व्यक्त की थी। अब इस मामले पर एक्टर रणवीर शौरी का रिएक्शन आया है।
हाल ही में फैज अहमद फैज और बीएचयू में मुस्लिम संस्कृति अध्यापक को लेकर बॉलीवुड एक्टर रणवीर शौरी ने ट्वीट किया है। जो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। रणवीर ने हिंदू धर्म के मूल्यों को ठेस पहुंचाने और उस नीचा दिखाने वालों पर निशाना साधा है।
रणवीर शौरी ने हाल ही में ट्वीट किया है। रणवीर ने ट्वीट करके लिखा है कि एक मुस्लिम संस्कृत अध्यापक को नीचा दिखाने के साथ फैज की कविता को फाड़ने तक, मैं हिंदू अतिवादियों की मूर्खता से हैरान हूं। हिंदू धर्म के असल मूल्यों, जैसे सहिष्णुता और खुलेपन से दूर वे हिंदू धर्म को नीचे की और खींच रहे हैं।
From pulling down a Muslim Sanskrit teacher, to tearing down the poetry of #Faiz, I’m astonished at the stupidity of Hindu extremists. By departing from the core Hindu values of tolerance and openness, they’re pulling Hinduism down.
— Ranvir Shorey (@RanvirShorey) January 2, 2020
रणवीर शौरी सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते हैं। रणवीर हर एक सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त करती रहती हैं। एक छोटी सी लव स्टोरी से बॉलीवुड में कदम रखने वाले एक्टर जल्द लूटकेस में भी नजर आए थे
जानें पूरा मामला
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कानपुर (IIT Kanpur) ने एक समिति गठित की है, जो यह तय करेगी कि क्या फैज अहमद फैज की कविता 'हम देखेंगे, लाजिम है कि हम भी देखेंगे' हिंदू विरोधी है या नहीं। आईआईटी कानपुर के फैकल्टी सदस्यों की शिकायत के बाद ये समिति गठित की गई है। फैकल्टी सदस्यों का दावा है कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ हुए विरोध-प्रदर्शनों के दौरान यह 'हिंदू विरोधी' गीत गाया गया था।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, समिति इस बात की जांच करेगी कि क्या छात्रों ने धारा-144 का उल्लंघ किया और सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट की। अपने क्रांतिकारी विचारों के लिए प्रसिद्ध रहे फैज अहमद फैज ने 1979 में यह नज्म लिखी थी। फैज ने यह कविता सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक के संदर्भ में लिखी थी और पाकिस्तान में सैन्य शासन के विरोध में लिखी थी। तानाशाही का विरोध करने वाले फैज कई सालों तक जेल में भी रहे।
पढ़िए पूरी कविता, जानें विवाद
हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लोह-ए-अज़ल में लिखा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां
रुई की तरह उड़ जाएँगे
हम महक़ूमों के पाँव तले
ये धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हक़म के सर ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएँगे
हम अहल-ए-सफ़ा, मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ायब भी है हाज़िर भी
जो मंज़र भी है नाज़िर भी
उट्ठेगा अन-अल-हक़ का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज़ करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
नज्म की कुछ पंक्तियों ने विवाद खड़ा कर दिया है। आईआईटी के उपनिदेशक मनिंद्र अग्रवाल के अनुसार, ‘वीडियो में छात्रों को फैज की नज्म गाते हुए देखा जा रहा है, जिसे हिंदू विरोधी भी माना जा सकता है।’