क्यों ना देखें 'पद्मावत', पांच बड़ी गलतियां हुई हैं भंसाली से

By खबरीलाल जनार्दन | Published: January 24, 2018 05:59 PM2018-01-24T17:59:45+5:302018-01-24T21:04:45+5:30

संजय लीला भंसाली या तो सहम गए हैं, या फिर पूरी पद्मावत में उलझे रहे हैं कि क्या दिखाएं और क्या ना दिखाएं।

Padmaavat is not a worth watching movie 5 reasons | क्यों ना देखें 'पद्मावत', पांच बड़ी गलतियां हुई हैं भंसाली से

क्यों ना देखें 'पद्मावत', पांच बड़ी गलतियां हुई हैं भंसाली से

संजय लीला भंसाली की फिल्मों का इतिहास रहा है। वह गानों में ऐसी जान डाल देते हैं कि बस उनके गानों के लिए एक बार उनकी फिल्म देखी जा सकती हैं। लेकिन पद्मावत देखकर लगता है जैसे वे गाने बनाने भूल गए हैं। इसके अलावा भी पूरी फिल्म उलझी नजर आती है। खास पांच कारणों का हम यहां जिक्र कर रहे हैं।

पद्मावत का बेहद कमजोर संगीत और गानों का फिल्मांकन

पद्मावत में पर्दे पर साढ़े पांच गाने दिखते हैं। फिल्म शुरू होने के कुछ ही मिनटों बाद अलाउद्दीन खिलजी और मेहरुनिसा की शादी के लिए एक संगीतमई शाम रखी जाती है। इसमें कुछ अफगानी लड़कियां और रणवीर ‌सिंह डांस करते नजर आते हैं लेकिन यह गाना उभरता ही नहीं। अलाउद्दीन गाने के बीच एक लड़की से यौनाचार करता है और एक कत्ल भी। गाना उसी में मर जाता है। भंसाली की भी गाने की ऐसी उपेक्षा शायद पहले कभी हुई हो।

पहला गाना घूमर

(इस गाने में दीपिका की कमर ढंकवा दी गई थी। लेकिन इसके अलावा पूरी फिल्म में उनकी कमर दिखती रहती है।)

यह रानी बनने की बाद की एक परंपरा के तहत पद्मावती करती हैं। गाने से पहले एक जस्टिफिकेशन आता है कि इसमें कोई आदमी नहीं आएगा। इसलिए वह इसे बड़ी रानी (नागमती) के समक्ष प्रस्तुत करती हैं। बाद में रावत रतन सिंह झलक दिखाते हैं। मौका था एक बार फिर से 'डोला रे', 'मार डाला', 'पिंगा निपोरी', 'दीवानी मस्तानी हो गई' जैसे डांस सिक्‍वेंस बनाने की लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। सेट और पोशाक की सजावट में दीपिका खो जाती हैं। गोल-गोल घूम रहे किरदारों में ढूंढ़ना पड़ता है, दीप‌िका कहां हैं।

दूसरा गाना ‌ब‌ीते दिल

यह गाना अजीब कर्कशता भरे है। अरिजित सिंह का यह गाना बेहतरीन नहीं कहा जा सकता। गाने में अलाउद्दीन खिलजी अपने हरम में नहा रहा होता है। उसका पुरुषों में रुचि रखने वाला सेवक गफूर हाथ में इत्र लिए हरम के गोल-गोल घूमता है। अलाउद्दीन शरीर का शरीर इस तरह से अकड़ता है जैसे वे दोनों शारीरिक संबंध बनाएंगे। लेकिन अगले ही पल यह भ्रम टूटता है। सतही तौर पर अलाउद्दीन हरम में डांस करने की कोशिश करता है।

तीसरा गाना होली आई रे

इस गाने में थोड़ी को‌शिश की गई थी कि एक बार फिर पति-पत्नी के बीच खेली जाने वाली होली को नये सिरे से परिभाषित‌ किया जाए। वे शायद इसमें सफल भी हो जाते पर उनके सामने बंदिशें थीं। वे तथाक‌‌थ‌ित राजपूतों के डर से गाने को उतना आगे नहीं ले पाते हैं जो इस गाने की नियती कह रही थी। लिरिक्स में 'होली आई रे, पिया जी रे देश रे। म्हारो शाम हठीलो कान्हों केसर खेलत होरी रे!' जैसे शब्द होने के बाद भी यह जुबान पर नहीं चढ़ता।

चौथा गाना खली-बली

यह गाना रणवीर ‌सिंह के लिए जबरन फिल्म में डाला गया है। इसमें वह एनर्जी के सा‌थ डांस करते हैं। उनके सा‌थ उनके सैनिक भी उतना ही जोरदार डांस करते हैं। लगता है जैसे वे सैन्य कुशलता से ज्यादा डांस की प्रशिक्षण लेते हो। गाना अफगानी कलेवर ओढ़े है लेकिन जैसे ही गायक सुर लगाते हैं एकदम बेमेल हो जाता है। वह म्यूजिक के पिच पर हबीबी करते गायक की आवाज सटीक नहीं बैठती।

पांचवा गाना

करीब-करीब राम-लीला के 'लाल इश्क' अंदाज में शुरू हुआ गाना 'नैंनो वाले ने छेड़ा मन का प्याला, छलकाई मधुशाला, मेरा चैन-वैन-रैन अपने साथ ले गया' 'हम दिल चुके सनम' के दुपट्टा खींचने वाले दृश्य के इर्द-गिर्द खत्म हो जाता है। यह दौर होता है जब रतन सिंह और पद्मावती दोनों को अहसास हो चुका है कि वे एक दिन बाद मर जाएंगे। जिन लोगों ने हॉलीवुड फिल्म '300' देखी है, वे इसे युद्ध पर जा रहे राजा और रानी के बीच बीती रात के सीन से जोड़कर देख सकते हैं। लेकिन एक बार फिर से बंदिशें आती हैं, रातपूताना। गाना चरम पर आए बगैर खत्म हो जाता है।

पद्मावत में निर्देशन में चूक

युद्ध के दृश्यों में जैसे भंसाली की सोच सिमट जाती है। वे दूसरी फिल्मों में चर्चित हो चुके दृश्यों या अपनी पुरानी फिल्मों को दोहराते हैं। पहले युद्ध में वे प्रतीकात्मक युद्ध दिखाते हैं। सीन में दोनों ओर की सेनाएं एक दूसरे के करीब आती हैं और भारी धूल उड़ती है। कुछ नहीं दिखता। उस धूल में अलाउद्दीन घुसता है और प्रतिद्वंदी राजा का सिर उखाड़ लाता है। राजा रतन सिंह और पद्मावती एक दूसरे से खड़ी बोली में बात करते हैं लेकिन वही अपनी प्रजा से राजस्‍थानी बोली बोलने की कोशिश करते हैं। लगता है जैसे दोनों एक ही गांव के थे लेकिन इनकी मुलाकात विलायत में हुई हो इसलिए एक-दूसरे से बातचीत की भाषा विलायती है। फिल्म में दो कहानियां एक साथ चलती हैं। अलाउद्दीन की सल्तनत का विकास और रतन ‌सिंह और पद्मावती का प्यार। दो अलग-अलग चल रही कहानियों को जोड़ने के बहाने निकाले गए हैं। वह भी कई बार पचते नहीं। यह समझ से परे था कि चित्तौड़ का राजगुरु राघव चेतन, रावल रतन सिंह और पद्मावती को अकेले में क्यों देख रहा था। इसी घटना को बढ़ाकर खिलजी के मन में पद्मावती के मोह जगाने से जोड़ा गया है।


पद्मावत के सेट ड‌िजाइन और शूट का अंतर

पद्मावती के शूटिंग के वक्त भंसाली के साथ हुई हिंसा के बाद उन्होंने पूरी फिल्म किसी और लोकेशन पर शूट की। बाद में ग्रैफिक एडिटिंग की मदद से उसे चित्तौड़गढ़ में पूरी फिल्म दिखाई गई। कई बार दो अलग-अलग जगहों पर शूट किए गए दृश्यों की मिलावट नजर आती है। पहली बार फ्रेम बनाने में भंसाली की मेहनत नजर नहीं आती। कुछ-एक पद्मावती के दृश्यों को छोड़ दें तो उनका पूरा फोकस अलाउद्दीन के किरदार को उभारने में नजर आता है। 


शाहिद कपूर का कमजोर अभिनय

शाहिद कपूर चित्तौड़गढ़ के राजा रावल रतन ‌सिंह के किरदार में हैं। वह बड़े-बड़े डायलॉग बोलते हैं। मसलन, 'अपने बादशाह से कह दो कि जितनी उनकी सेना की तलवारों में लोहा उतना लोहा सूर्यवंशी अपने सिने में दबा रखा है'। वह फिल्म में राजपूत होने की परिभाषा भी बताते हैं। वह जगह, जगह पर राजपूतों के वसूलों को कोट करते हैं। लेकिन पर्दे पर वह एक बार भी वह राजपूत राजा का एहसास नहीं कराते। दूसरी ओर जैसे ही खिलजी स्क्रीन पर आता है पूरा दृश्य उसका हो जाता है। आमिर खुसरो, गफूर, इश्तेयाक खान व दूसरे अन्य किरदार उसके आसपास भटकते हैं लेकिन सीन में जब तक वो होता कोई नजर नहीं आता। लेकिन शाहिद के दृश्यों में उनसे ज्यादा मजबूत रानी पद्मावती नजर आती हैं। उन दृश्यों में जिनमें दीपिका और शाहिद एक साथ हैं उनमें पूरा फोकस दीपिका खींच ले जाती हैं।


पद्मावत की कहानी के दोहरे मापदंड

यह फिल्म पूरी तरह से अलाउद्दीन के कंधों पर टिकी हुई है। दो घंटे तिरालिस मिनट की फिल्म में वह करीब डेढ़ घंटे स्क्रीन पर होता है। फिल्म की शुरुआत ही अलाउद्दीन के अफगान दृश्य से होती है। जबकि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता अगर फिल्म चित्तौड़ या सिंघल की राजकुमारी पद्मावती से शुरू होती। एक परिस्थिति की कल्पना की‌जिए जो बहुधा सबके साथ होती है। आप बार-बार किसी बात को कहें पर करें कुछ और। भंसाली की इस फिल्म के ‌किरदार ऐसा ही करते हैं। वे बार-बार राजपूताना वसूलों की बात करते हैं। लेकिन जब करने की बात आती है तो वे निहत्‍थे खिलजी अपने ही महल में आए खिलजी से डर जाते हैं और अपनी पत्नी का खिलजी को दीदार करने को राजी हो जाते हैं। फिर फिल्म में काफी जिक्र होता है कि रानी पद्मावती बहुत खूबसूरत हैं लेकिन पद्मावती के हिस्से जो दृश्‍य आए हैं उनमें वह राजनीतिज्ञ लगती हैं।

Web Title: Padmaavat is not a worth watching movie 5 reasons

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