Oscar 2019: UP की स्नेहा-सुमन ने जीता अवॉर्ड तो कुछ अंदाज में गांव में मनाया गया जश्न

By ऐश्वर्य अवस्थी | Published: February 25, 2019 03:44 PM2019-02-25T15:44:53+5:302019-02-25T15:44:53+5:30

फिल्म को बेस्ट डॉक्युमेंट्री शॉर्ट कैटिगरी फिल्म के ऑस्कर अवॉर्ड 2019 से नवाजा गया है।

oscar 2019 winner suman and sneha village enjoy her victory | Oscar 2019: UP की स्नेहा-सुमन ने जीता अवॉर्ड तो कुछ अंदाज में गांव में मनाया गया जश्न

Oscar 2019: UP की स्नेहा-सुमन ने जीता अवॉर्ड तो कुछ अंदाज में गांव में मनाया गया जश्न

भारतीय फिल्म प्रोड्यूसर गुनीत मोंगा की फिल्म 'पीरियड: एंड ऑफ सेंटेंस' ने ऑस्कर में अपने झंडे गाड़ दिए हैं। इस फिल्म को बेस्ट डॉक्युमेंट्री शॉर्ट कैटिगरी फिल्म के ऑस्कर अवॉर्ड 2019 से नवाजा गया है।  इस भारतीय   फिल्म को रयाक्ता जहताबची और मैलिसा बर्टन ने निर्देशित किया है। ईरानी-अमेरिकन फिल्म डायरेक्टर रयाक्ता ने ऑस्कर जीतने पर कहा कि 'उन्हें यकीन नहीं हो रहा है कि पीरियड्स पर बनी फिल्म ने ऑस्कर जीता है।

यूपी के हापुड़ के पास के गांव  काठीखेड़ा निवासी सुमन और स्नेहा को अमेरिका में आस्कर अवॉर्ड मिला है। ऐसे में गांव में जैसे ही सूचना मिली वैसे ही गांव में खुशी की लहर दौड़ गई है।  गांव में स्वच्छ भारत मिशन को लेकर बनाई गई फिल्म 'पीरियड ऑफ दा सैंटेंस' को ऑस्कर अवॉर्ड के लिए चुनने के बाद सुमन व स्नेहा को अमेरिका में अवार्ड के लिए बुलाया गया था। 

जहां इनको पुरस्कार से नवाजा गया है।  इस खुशी पर गांववासियों का कहना है कि स्नेहा और सुमन ने हापुड़ के साथ भारत का नाम रोशन किया है। इसी प्रकार से हापुड़ नई ऊंचाईयों की इबारत लिखेगा। बता दें कि काठीखेड़ा में मध्यम वर्गीय परिवार की स्नेहा पढ़ लिखकर यूपी पुलिस में जाने की तैयारी कर रही है । जबकि एक सुमन गृहणी है। 



जानें कैसी है फिल्म

यह फिल्म भारतीय भूमि पर आधारित फिल्म है जिसमें महिलाओं के पीरियड्स के मुद्दे को गंभीरता से उठाया गया है। ये शार्ट फिल्म उत्तर प्रदेश के हापुड़ में स्थित एक गांव की उन महिलाओं के जीवन को दर्शाती है जिन्हें पैड्स उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में मासिक धर्म के दौरान कई महिलाओं को बीमारियां चपेट में ले लेती हैं जो मौत का कारण भी बनती है। 

फिल्म केवल 26 मिनट की है लेकिन पैड न होने के कारण लड़कियां स्कूल तक नहीं जा पाती हैं। इस स्थित को बहुत की बखूबी दिखाया गया है। फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह से किस प्रकास से एक दिन इस गांव में पैड की मशीन आ जाती है और फिर यहां की  महिलाओं को पैड के बारे में पता चलता है। महिलाएं इस बारे में जागरुकता फैलाने के साथ ही खुद भी पैड बनाने का भी फैसला करती हैं। 

लेकिन गांव में रहने वाले कुछ रुढि सोच रखने वाले लोग इसके खिलाफ हो जाते हैं। लेकिन महिलाएं पीछे नहीं हटती हैं और हर परिस्थिति का हटकर सामना करती हैं। उनके इस काम को विदेश से भी सहायता मिलती है। वह अपने सैनिटरी नैपकिन को 'FLY' नाम देती हैं जिसका मतलब होता है उड़ना। इस नाम को देने के पीछे की वजह लड़कियों की मासिक धर्म से होने वाली परेशानियों से आजादी होती है।
 

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