मृणाल सेन वो सितारा जिसकी चमक आजीवन हिंदी सिनेमा पर रहेगी

By अजय ब्रह्मात्मज | Published: January 15, 2019 08:58 AM2019-01-15T08:58:01+5:302019-01-15T08:58:01+5:30

 हाल ही में दिग्गज फिल्मकार मृणाल सेन का निधन हुआ है. पत्र- पत्रिकाओं में उनकी स्मृति में उनकी 'भुवन शोम' को बार-बार याद किया गया

Mrinal Sen is the star whose glow will be on lifelong Hindi cinema. | मृणाल सेन वो सितारा जिसकी चमक आजीवन हिंदी सिनेमा पर रहेगी

मृणाल सेन वो सितारा जिसकी चमक आजीवन हिंदी सिनेमा पर रहेगी

 हाल ही में दिग्गज फिल्मकार मृणाल सेन का निधन हुआ है. पत्र- पत्रिकाओं में उनकी स्मृति में उनकी 'भुवन शोम' को बार-बार याद किया गया. इसी फिल्म से भारत में पैरेलल सिनेमा की शुरुआत मानी जाती है. हिंदी अखबारों में इसकी अधिक चर्चा इसलिए भी होती है कि इसका वायसओवर अमिताभ बच्चन ने किया था.

मृणाल सेन की 'नील आकाशेर नीचे' फिल्म को याद करते हुए तृषा गुप्ता ने प्यारा-सा लेख लिखा है. उन्होंने उल्लेख किया था कि यह फिल्म महादेवी वर्मा के रेखाचित्र पर आधारित थी. मेरी जिज्ञासा बढ़ी. मैंने पहले फिल्म देखी और फिर खोज कर मूल रचना पढ़ी. महादेवी वर्मा के संस्मरण का शीर्षक है 'वह चीनी भाई'. सिनेमा और साहित्य के संबंधों पर संगोष्ठियां होती रहती हैं. पर्चे लिखे जाते हैं. मैंने खुद कई बार ऐसी संगोष्ठियों को संबोधित किया है.

मैं इस कहानी और इस पर बनी फिल्म से परिचित नहीं था. धन्यवाद् तृषा गुप्ता कि एक सुंदर और जरूरी फिल्म से परिचय हो गया. 1959 में बनी इस फिल्म में एक चीनी और एक भारतीय के समबंध को मानवीय स्तर पर चित्रित किया गया है. महादेवी वर्मा के संस्मरण में वह खुद भी हैं. उन्होंने इलाहाबाद में मिले चीनी के बारे में लिखा है. फिल्म में कथा का विस्तार किया गया है. संस्मरण की बैक स्टोरी में बर्मा (म्यांमार) है, लेकिन मृणाल सेन ने फिल्म बनाते समय इसमें चीन का उल्लेख किया है. फिल्म दो-तीन फ्लैशबैक में चीन की कहानी चलती है. फिल्म का नायक चीन के शानतुंग प्रांत का वांग लू है.

मृणाल सेन ने 'नील आकाशेर नीचे' में महादेवी वर्मा के रेखाचित्र 'वह चीनी भाई' को चलचित्र में बदलते समय अनेक परिवर्तन किए हैं. इलाहाबाद की कहानी कोलकाता चली जाती है. चीनी भाई का नामकरण वांग लू हो जाता है. महादेवी वर्मा कांग्रेसी कार्यकर्ता में बदल जाती हैं. उनके पति, सास और नौकर भी किरदार के तौर पर जुड़ जाते हैं. फिल्म की कहानी चीन के शानतुंग भी जाती है. वहां के जमींदार और बहन के जरिए हम वांग लू की पीड़ा से परिचित होते हैं. फिल्म में खूबसूरती के साथ चीन के तत्कालीन हालात को पिरोया गया है. तब जापान ने चीन के नानचिंग शहर पर भयानक हमला किया था.

इस हमले का रवींद्रनाथ टैगोर ने विरोध किया था. उन्होंने जापान के नागुची को पत्र लिखा था. मृणाल सेन ने चीन के संघर्ष और भारत की आजादी के संघर्ष को वांग लू और बसंती के साथ एक जमीन पर लाकर जोड़ा है. रेखाचित्र के अनुसार फिल्म में भी चीनी भाई बताता है कि वह फॉरेनर नहीं है, वह तो चीनी है. उसकी चमड़ी गोरी नहीं है. उसकी आंखें नीली नहीं हैं. पिछली सदी के चौथे दशक में भारत और चीन लगभग एक जैसी स्थिति में थे और अपनी आजादी के सपने बुन रहे थे. 'नील आकाशेर नीचे' में बगैर किसी भाईचारे के नारे के एक रिश्ता बनता दिखाई देता है.

यह फिल्म देखी जानी चाहिए. खासकर सिनेमा और साहित्य तथा भारतीय फिल्मों में चीनी किरदारों के चित्रण के संदर्भ में यह जरूरी फिल्म है. कुछ सालों पहले हांगकांग से एक पत्रकार भारत आए थे. वे भारतीय फिल्मों में चीनी किरदारों की नेगेटिव छवि की वजह जानना चाहते थे. तब इस फिल्म की जानकारी रहती तो मैंने खुशी और गर्व से उन्हें बताया होता. 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच आई खटास ने सदियों के सांस्कृतिक संबंध को खट्टा कर दिया.

'नील आकाशेर नीचे' पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था. इधर चीन भारतीय फिल्मों के बाजार के तौर पर उभरा है. फिल्मकार ध्यान दें तो चीन हिंदी और अन्य भाषाई फिल्मों के लिए उर्वर कथाभूमि हो सकती है. वहां अनेक कहानियां बिखरी पड़ी हैं, जिनके सिरे भारत से जुड़े हैं. 'नील आकाशेर नीचे' की रिलीज के बाद निर्माता हेमेंद्र मुखर्जी (गायक हेमंत कुमार) ने प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को यह फिल्म दिल्ली में दिखाई थी. मृणाल सेन की यह दूसरी फिल्म थी.

Web Title: Mrinal Sen is the star whose glow will be on lifelong Hindi cinema.

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