मद्रास हाईकोर्ट ने धनुष को लगाई फटकार, कहा- दूध विक्रेता भी टैक्स भरते हैं, आप भी 30 लाख का एंट्री टैक्स दें; जानिए पूरा मामला
By अनिल शर्मा | Published: August 6, 2021 11:19 AM2021-08-06T11:19:22+5:302021-08-06T11:49:55+5:30
साल 2015 में धनुष ने इंग्लैंड से 2.15 करोड़ रुपये में अपनी रोल्स रॉयस घोस्ट इंपोर्ट की थी। एक क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी ने उन्हें कार का पंजीकरण कराने से पहले कर विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (नो ऑब्जेक्शन) प्राप्त करने का निर्देश दिया।
मद्रासः मद्रास हाईकोर्ट ने अभिनेता धनुष की पिछली याचिका को लेकर गुरुवार को फटकार लगाई। याचिका में धनुष ने अपनी आयात हुई रोल्स रॉयस पर एंट्री टैक्स में छूट मांगी थी। कोर्ट ने उन्हें 48 घंटों के अंदर 30.30 रुपए लाख का भुगतान करने का निर्देश दिया। आदेश में जज ने कहा कि दूध विक्रेता और दिहाड़ी मज़दूर भी हर लीटर पेट्रोल पर टैक्स भरते हैं।
साल 2015 में धनुष ने इंग्लैंड से 2.15 करोड़ रुपये में अपनी रोल्स रॉयस घोस्ट इंपोर्ट की थी। एक क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी ने उन्हें कार का पंजीकरण कराने से पहले कर विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (नो ऑब्जेक्शन) प्राप्त करने का निर्देश दिया। जैसे ही धनुष ने एनओसी के लिए विभाग का रुख किया, विभाग ने उन्हें प्रवेश कर के रूप में ₹ 60.66 लाख का भुगतान करने के लिए कहा।
कर का भुगतान ना कर, धनुष ने कोर्ट का रुख किया था
तब धनुष ने प्रवेश कर ना देकर विभाग की मांग के खिलाफ सीधे अदालत का रुख किया। उस समय, अदालत ने एक अंतरिम आदेश पारित किया था जिसमें आरटीओ को इस बात पर एनओसी जारी करने के लिए कहा गया था ,अगर अभिनेता 14 दिनों के भीतर उक्त कर राशि पर 50 प्रतिशत का भुगतान करते हैं।
कोर्ट ने धनुष के वकील से कही ये बात
यह मामला फिर से सामने आया क्योंकि धनुष के वकील 2015 की याचिका को यह कहते हुए वापस लेना चाहते थे कि अभिनेता शेष कर का भुगतान करने के लिए तैयार हैं। अदालत ने गुरुवार को याचिका को वापस लेने की अनुमति नहीं दी। कोर्ट ने वकील को फटकार लगाते हुए कहा कि यदि आपके इरादे वास्तविक हैं, तो आपको कम से कम 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मुद्दे को सुलझाए जाने के बाद कर का भुगतान करना चाहिए था।
अदालत ने आगे कहा, इसमें कोई संदेह नहीं है कि अदालत जाने का आपका अधिकार है। लेकिन आपको कर का भुगतान करना चाहिए था और कम से कम 2018 में शीर्ष अदालत द्वारा इस मुद्दे को सुलझाने के बाद याचिका वापस लेनी चाहिए थी। अदालत ने कहा कि कई साल पहले आयातित कारें राज्य में प्रवेश कर का भुगतान किए बिना सड़कों पर चल रही हैं। इसे जनहित का मुद्दा बताते हुए अदालत ने कहा कि उसकी राय है कि संवैधानिक दृष्टिकोण और जिस तरह से रिट याचिका दायर की जाती है, उसे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के हित के लिए निपटाया जाना चाहिए।
अदालत ने भी कहा कि नागरिक के मौलिक कर्तव्य को याद दिलाना उच्च न्यायालय का संवैधानिक कर्तव्य है... इस न्यायालय ने बड़े पैमाने पर जनता के लाभ के लिए, नागरिक को जागरूक बनाने और नागरिकों को यह याद दिलाने के लिए आदेश पारित करना उचित समझा। भारत के संविधान के तहत दिए गए मौलिक कर्तव्यों का सम्मान करने के लिए बाध्य हैं ।