नहीं रहे 'मालगुडी डेज' में 'मास्टर स्वामी' के पिता गिरीश कर्नाड, इस फेमस नाटक से मिली थी प्रसिद्धि

By मेघना वर्मा | Published: June 10, 2019 01:27 PM2019-06-10T13:27:16+5:302019-06-10T13:27:16+5:30

गिरीश सिर्फ एक एक्टर ही नहीं थे बल्कि सोसाइटी की समस्याओं को सोसाइटी के ही बीच उजागर करने वाले साहित्कार भी थे। गिरीश को नाटक लिखने के लिए भी जाना जाता है।

Know more about girish karnad biography and his life journey | नहीं रहे 'मालगुडी डेज' में 'मास्टर स्वामी' के पिता गिरीश कर्नाड, इस फेमस नाटक से मिली थी प्रसिद्धि

नहीं रहे 'मालगुडी डेज' में 'मास्टर स्वामी' के पिता गिरीश कर्नाड, इस फेमस नाटक से मिली थी प्रसिद्धि

मालगुडी डेज में मास्टर स्वामी के पिता का किरदार निभाने वाले गिरीश कर्नाड आज दुनिया को अलविदा कह गए। एक सक्सेस फुल एक्टर, डायरेक्टर, कन्नड़ राइटर और नाटककार गिरीश का लम्बे समय की बीमारी के बाद निधन हो गया। 19 मई साल 1938 को जन्में गिरीश जाने मानें कवि, थिएटर आर्टिस्ट, स्टोरी राइटर भी रह चुके हैं। लम्बी बीमारी के बाद सोमवार सुबह 81 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा। 

महाराष्ट्र में जन्में  गिरीश का पूरा नाम गिरिश रघुनाथ कर्नाड था। स्कूल के समय से ही थियेटर से जुड़कर उन्होंने काम करना शुरू कर दिया था। कर्नाटक आर्ट कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद वो इंग्लैण्ड चले गए। जहां उन्होंने आगे की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद गिरीश कर्नाड भारत लौट आए और चेन्नई की एक यूनीवर्सिटी में सात साल तक बतौर प्रोफेसर काम किया। मगर थिएटर का प्यार उनके दिल से नहीं निकला। तभी तो सात साल बाद उन्होंने कॉलेज से इस्तीफा दे दिया। 

इसके बाद वो चेन्नई के कई आर्ट और थियेटर क्लबों से जुड़े रहे। इसी बीच गिरीश को यूनिवर्सिटी और शिकागो में बतौर प्रोफेसर काम करने का मौका मिला। मगर साहित्य की ओर उनका झुकाव हमेशा बना रहा। शायद इसीलिए गिरीश भारत दुबारा लौट आए और अपने साहित्य के ज्ञान से क्षेत्रीय भाषाओं में कई फिल्में भी बनाईं और कई फिल्मों की स्क्रिप्ट भी लिखी।

गिरीश सिर्फ एक एक्टर ही नहीं थे बल्कि सोसाइटी की समस्याओं को सोसाइटी के ही बीच उजागर करने वाले साहित्कार भी थे। गिरीश को नाटक लिखने के लिए भी जाना जाता है। सबसे पहला नाटक उन्होंने कन्नड़ भाषा में लिखा जिसका इंग्लिश ट्रान्सलेशन भी खुद ही किया। गिरीश के कुछ फेमस ड्रामा में ययाति, तुगलक, हयवदन, अंजु मल्लिगे, अग्रिमतु माले, नागमंडल, अग्नि और बरखा जैसे फेमस ड्रामा हैं। 

गिरीश को उनके तुगलक नाटक से बहुत प्रसिद्धि मिली और इसका कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी किया गया। एक बेहतरी राइटर के साथ गिरीश डायरेक्शन में भी माहिर थे। साल 1970 में कन्नड़ फ़िल्म 'संस्कार' से अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की जिसकी पटकथा उन्होंने ही लिखी थी। गिरीश ने कई हिन्दी फिल्मों में भी काम किया, जिसमें निशांत, मंथन, पुकार जैसी कल्ट फिल्में शामिल हैं। गिरीश कर्नाड ने छोटे परदे पर भी अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम और 'सुराजनामा' जैसे सीरियल पेश किए हैं। 

गिरीश को भारत सरकार की ओर से कई सम्मान और पुरस्कार से नवाजा गया है। इनमें साल 1972 में संगीत नाटक एकेडमी अवॉर्ड, 1974 में पद्मश्री, 1992 में पद्मभूषण, 1992 में ही कन्नड़ साहित्य एकेडमी अवॉर्ड, 1994 में साहित्य एकेडमी अवॉर्ड, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1998 में ही कालिदास जैसे बड़े अवॉर्ड शामिल हैं। ग‍िरीश कर्नाड को 1978 में आई फिल्म भूमिका के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला था। 

गिरीश ने कन्नड़ फिल्म संस्कार(1970) से अपना एक्टिंग और स्क्रीन राइटिंग डेब्यू किया था। इस फिल्म ने कन्नड़ सिनेमा का पहला प्रेजिडेंट गोल्डन लोटस अवार्ड जीता था। बॉलीवुड में उनकी पहली फिल्म 1974 में आयी जादू का शंख थी। इसके बाद उनकी कुछ चुनिंदा फिल्मों में निशांत, उत्सव, इकबाल, स्वामी, डोर, मंथन, हे राम, आशाएं, भूमिका, अपने पराए, शिवाय, शंकर दादा एमबीबीएस आदि हैं। हलांकि आज का जनरेशन उन्हें सलमान की फिल्म टाइगर जिंदा है से पहचानता है।  

Web Title: Know more about girish karnad biography and his life journey

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