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De De Pyar De Movie Review: समाज की कई रूढ़िवादी सोच को तोड़ती है अजय देवगन और तब्बू की ये मूवी, सिर्फ एक कॉमेडी फिल्म नहीं

By मेघना वर्मा | Updated: May 19, 2019 14:58 IST

एक वक्त था जब चीनी कम या निशब्द जैसी फिल्मों में प्रेमी जोड़े के बीच दिखाए गए ऐज गैप के कांसेप्ट को लोगों ने नकार दिया था। सिर्फ यही नहीं उस फिल्म की जम कर आलोचना भी की थी, मगर आज, प्रेमी जोड़े ऐज गैप के मुद्दे को बहुत अहमियत नहीं देते।

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ठळक मुद्देअजय देवगन और तब्बू की फिल्म दे दे प्यार दे 17 मई को देश भर में रिलीज हो गई है।फिल्म में रकुल प्रीत सिंह, अजय देवगन की गर्लफ्रेंड बनी हैं जो उनसे 25 साल छोटी है।

फिल्म: दे दे प्यार देकास्ट - अजय देवगन,  तब्बू, रकुल प्रीत सिंह डायरेक्टर: आकिव अली रेटिंग: 3.5/5

भारतीय समाज पर बॉलीवुड फिल्मों का असर इतना गहरा होता है कि फैशन के साथ लोगों की सोच भी धीरे-धीरे बदलने लगती है। अलग-अलग समय में सिनेमा ने अलग-अलग मुद्दों पर फिल्म बनाकर लोगों को सोचने पर मजबूर किया है। आज भी सिनेमा का ये काम जारी है। हाल ही में बड़े पर्दे पर रिलीज हुई अजय देवगन, तब्बू और रकुल प्रीत की फिल्म 'दे दे प्यार दे' भी समाज की कई रूढ़िवादी विचारधाराओं पर कॉमेडी के इस्तेमाल से चोट करती है।

देशभर में 17 मई को रिलीज हुई इस फिल्म की लोगों ने अलग-अलग तरह से समीक्षा की है। किसी को फिल्म इंटरटेनिंग लगी तो किसी को ठीक-ठाक। पर ज्यादातर लोगों ने फिल्म को दो औरतों की कहानी बताई जो एक मर्द के लिए लड़ती दिखाई देती हैं। लेकिन फिल्म का एक और महत्वपूर्ण पहलू है जिस पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया,वो है अजय और राकुल प्रीत के बीच का ऐज गैप जिसके इर्द-गिर्द फिल्म की पटकथा को बुना गया है। फिल्म के इस एंगल ने समाज के लोगों को सोचने का नया नजरिया दिया है। एक वक्त था जब चीनी कम या निशब्द जैसी फिल्मों में प्रेमी जोड़े के बीच दिखाए गए ऐज गैप के कांसेप्ट को लोगों ने नकार दिया था। सिर्फ यही नहीं उस फिल्म की जम कर आलोचना भी की थी, मगर आज, प्रेमी जोड़े ऐज गैप के मुद्दे को बहुत अहमियत नहीं देते। लोगों की इसी बदलती सोच को बेहतरीन ढंग से दे दे प्यार दे फिल्म में दर्शाया गया है। फिल्म की पटकथा ऐसी है कि ऐजगैप का कांसेप्ट आउट ऑफ बॉक्स नहीं लगता।

सालों से हमारे दिमाग में शादी को लेकर एक खांका फिट कर दिया गया है। अगर पति अपनी पत्नी से तलाक ले चुका है तो पहली बात ये कि वो किसी और के साथ इश्क नहीं कर सकता और दूसरी बात ये कि अपने से 25 साल छोटी लड़की को तो वाइफ बनाने की सोच भी नहीं सकता। लव रंजन ने लोगों के दिमाग में कैद इस सोच को इस फिल्म के माध्यम से बदलने की कोशिश की है।

जिस तरह हमारा समाज बदल रहा है, लोग घर से बाहर नौकरी और पैशन को चेज कर रहे हैं तो लोगों की सोच बदल रही है। पिछले दशक से पहले की फिल्मों पर ध्यान दें तो मूवी के अंत में पति हमेशा अपनी पत्नी का ही साथ देता है। पती, पत्नी के बीच चाहे जितनी 'वो' क्यों ना आ जाएं अंत में पति हमेशा पत्नी के साथ ही रहता है। शायद ये चीज इस कदर दिमाग में जड़ कर बैठी है कि दे दे प्यार दे का एंड लोगों को थोड़ा अटपटा लग सकता है। 

जनरली एक पति और पत्नी का तलाक हो जाए तो पूरे समाज को ये लगता है कि दोनों एक-दूसरे के दुश्मन हो गए हैं। मगर तलाक के बाद भी हसबैंड और वाइफ एक-दूसरे के इतने अच्छे दोस्त हो सकते हैं, ये दे दे प्यार दे की कहानी ने दिखाया है। 'दो लोग जब अलग होते हैं तो सिर्फ वो दोनों ही जानते हैं वो क्यों अलग हो रहे हैं' तब्बू की ये लाइन वर्तमान समय के रिलेशनशिप पर बिल्कुल फिट बैठती है। 

किसी रिश्ते को ज्यादा देर खींचने से अच्छा उसे एक सही मोड़ के साथ छोड़ दिया जाए। यहां छोड़ देने का मतलब रिश्ते खत्म करने का नहीं होता ना ही दुश्मनी पालने का होता है। दे दे प्याद दे में अजय और तब्बू के बीच कुछ इसी रिश्ते की कहानी बयां की गई है। शुरु से ही पत्नी और लवर के बीच हमेशा पत्नी ही जीतती आई है। समाज की इस सोच को भी तोड़ती है ये फिल्म। 

पुरानी फिल्मों के एक डायलॉग और भी सुनें होंगे आपने। 'एक पत्नी सबकुछ देख सकती है मगर अपने पति को किसी और औरत के साथ नहीं देख सकती।' इस फिल्म में तब्बू का रकुल को अजय से शादी के लिए मनाना फिल्म की कमजोर नहीं बल्कि एक मजबूत कड़ी दिखाता है। ये सुनने में भले ही अटपटा सा लगे मगर समाज में बन रहे रिश्तों की सच्चाई यही है जो सही भी है। जो आदमी जिस चीज में खुश रहे उसे वो खुशी क्यों ना मिले।

फिल्म में लिव इन रिलेशन को ले कर बनी धारणा पर भी इस फिल्म ने एक बेहतर स्टैंड लिया है। एक सीन में लिव इन का पक्ष लेते हुए अजय कहते हैं कि 'साथ रह कर अब और क्या कर लेंगे जो बिना साथ रहे कर लिया होगा'। यही नहीं दे दे प्यार दे के कई डायलॉग लव रंजन ने इतनी खूबसूरती से लिखे हैं कि वो आपको लंबे वक्त तक याद रहेंगे। जैसे रकुल की ये लाइन 'मैं तो तुम्हारी जिंदगी का एक किस्सा थी जो खुद को कहानी समझ बैठी।', या अजय देवगन की ये लाइन 'मैं सबकुछ दुबारा करने को तैयार हूं, दुबारा लड़ लूंगा, दुबारा मना लूंगा...'

ओवरऑल फिल्म का समय के बिल्कुल हिसाब से बनाया गया है। आज समाज में ऐसे ही रिश्तों की जरुरत है जिसमें आप कम्पैटिबल हो सकें। बेफिजूल किसी रिश्ते को एक काले धागे से बांध कर रखना सिर्फ एक पीयर प्रेशर है। लव रंजन की ये फिल्म आपके दिमाग में फिट कई पुराने तारों को छेड़ जरूर देगी। 

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