पुण्यतिथिः दादा साहब फाल्के, एक करिश्माई शिल्पी जिसने भारतीय सिनेमा की नींव डाली

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: February 15, 2018 11:56 PM2018-02-15T23:56:47+5:302018-02-16T09:12:00+5:30

16 फरवरी, 1944 को नासिक में उन्होंने गुमनामी के अंधेरे में आखिरी सांस ली। 1969 में भारत सरकार ने उनके योगदान को देखते हुए उनके नाम से हर साल भारतीय सिनेमा से जुड़ी किसी एक हस्ती को दादा साहब फाल्के पुरस्कार देना शुरू किया।

DadaSaheb Falke death anniversary father of Indian cinema Interesting facts | पुण्यतिथिः दादा साहब फाल्के, एक करिश्माई शिल्पी जिसने भारतीय सिनेमा की नींव डाली

पुण्यतिथिः दादा साहब फाल्के, एक करिश्माई शिल्पी जिसने भारतीय सिनेमा की नींव डाली

Highlights‘राजा हरिश्चंद्र’ बनाकर फाल्के ने भारतीय सिनेमा की नींव डाली16 फरवरी, 1944 को नासिक में उन्होंने गुमनामी के अंधेरे में आखिरी सांस ली30 अप्रैल, 1870 को नासिक के पास त्रयंबकेश्वर में जन्मे धुंडीराज फाल्के की आज सोमवार 74वीं पुण्यतिथि है।

दुनिया की सबसे जानी-मानी और कमाई करने वाली फिल्म इंडस्ट्री में बॉलीवुड का शुमार होता है। बॉलीवुड में एक ठीक-ठाक फिल्म का 100 करोड़ कमा लेना आम बात हो गई है। लेकिन यह फल-फूल से लदा पेड़ यूं ही नहीं खड़ा हो गया। 105 साल पहले एक शख्स ने भारतीय सिनेमा की नींव रखी थी जिस पर बॉलीवुड की इतनी बड़ी इमारत खड़ी है। हिंदी सिनेजगत में दादा साहब फाल्के का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। आज उनकी पुण्यतिथि है। उनकी लोकप्रियता इसी बात से भी साबित हो जाती है कि बॉलीवुड फिल्मों में विशेष योगदान देने वालों को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा जाता है। 

पहली भारतीय मूक फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ के निर्माता, निर्देशक, कथाकार, सेट डिजाइनर, ड्रेस डिजाइनर, वितरक व संपादक, सब कुछ वही थे। कहा जा सकता है कि वह ‘वन मैन आर्मी’ थे। ‘राजा हरिश्चंद्र’ बनाकर फाल्के ने भारतीय सिनेमा की नींव डाली। यह फिल्म 21 अप्रैल, 1913 को रिलीज हुई। इस फिल्म ने भले ही हिंदी सिनेमा की नींव डाली हो, लेकिन इस नींव को पुख्ता करने का काम अभी बाकी था। ‘भस्मासुर मोहिनी’, ‘सत्यवान सावित्री’, ‘लंका दहन’ जैसी फाल्के फिल्म्स कंपनी की बाद की फिल्मों ने यह काम किया। फाल्के 1914 में जब अपनी फिल्में लेकर लंदन गए तो वहां के फिल्मकारों ने न सिर्फ उनके काम को सराहा, बल्कि उन्हें अच्छे पैसे पर अपने लिए फिल्में बनाने का न्यौता भी दिया, जिसे देशप्रेमी फाल्के ने ठुकरा दिया।

30 अप्रैल, 1870 को नासिक के पास त्रयंबकेश्वर में जन्मे धुंडीराज फाल्के की आज 74वीं पुण्यतिथि है। उनके पिता बहुत विद्वान व्यक्ति थे। धुंडीराज ने बंबई के जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स और बड़ौदा के कला भवन से पढ़ाई की।‘भारतीय सिनेमा के जनक’ कहे जाने वाले फाल्के ने फोटोग्राफी की। नाटकों में मंच सज्जा की और 1903 में सरकारी नौकरी भी की, जिसे उन्होंने स्वदेशी आंदोलन से प्रेरित होकर छोड़ दिया। पार्टनरशिप में उन्होंने ब्लॉक मेकिंग और फोटोग्राफी का काम भी शुरू किया। 1909 में वह जर्मनी से छपाई की मशीनें भी लाए। इसी पार्टनरशिप के टूटने के बाद आई निराशा के दौर में ही उनका झुकाव सिनेमा की ओर हुआ।

लेकिन बाद में अपने भागीदारों से मतभेद हो जाने की वजह से फाल्के रूठ कर बनारस चले गए। कुछ साल बाद वह लौटे और वापस फिल्मों से जुड़े लेकिन तब तक माहौल पूरी तरह बदल चुका था। 1931 में उनकी आखिरी मूक फिल्म ‘सेतु बंधन’ आई। इसी साल आर्देशिर एम. ईरानी ने भारत की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ रिलीज की। फाल्के ने 1934 में कोल्हापुर सिनेटोन के लिए अपनी पहली और अंतिम बोलती फिल्म ‘गंगावतरण’ बनाई। सत्तर की उम्र तक आते-आते उनकी तबीयत नासाज रहने लगी।

16 फरवरी, 1944 को नासिक में उन्होंने गुमनामी के अंधेरे में आखिरी सांस ली। 1969 में भारत सरकार ने उनके योगदान को देखते हुए उनके नाम से हर साल भारतीय सिनेमा से जुड़ी किसी एक हस्ती को दादा साहब फाल्के पुरस्कार देना शुरू किया। यह पुरस्कार भारतीय फिल्मोद्योग का सर्वोच्च सम्मान माना जाता है।

*IANS से इनपुट लेकर

Web Title: DadaSaheb Falke death anniversary father of Indian cinema Interesting facts

बॉलीवुड चुस्की से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे