बर्थडे स्पेशल: फिल्मों में आने से पहले रेलवे में नौकरी करते थे शैलेंद्र, देश की आजादी के लिए गए थे जेल
By ऐश्वर्य अवस्थी | Published: August 30, 2018 02:14 PM2018-08-30T14:14:02+5:302018-08-30T15:01:21+5:30
Shailendra Birth Anniversary: 2 दशकों तक बॉलीवुड को एक से एक नायाब एक गाने देने वाले शैलेंद्र का 95वां जन्मदिन है। शैलेंद्र का जन्म 30 अगस्त 1923 को पाकिस्तान के रावलपिंडी में हुआ था।
2 दशकों तक बॉलीवुड को एक से एक नायाब एक गाने देने वाले शैलेंद्र का 95वां जन्मदिन है। शैलेंद्र का जन्म 30 अगस्त 1923 को पाकिस्तान के रावलपिंडी में हुआ था। शैलेंद्र का असली नाम शंकरदास केसरीलाल था। बॉलीवुड में वह कविराज के नाम से भी मशहूर थे, उनको ये नाम राजकपूर ने दिया था। कहते हैं उनके पिता फौज में थे और नौकरी छूट जाने के बाद परिवार मथुरा आकर रहने लगा। बचपन से ही उनको लिखने का शौक था। आइए शैलेंद्र के जन्मदिन पर जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ खास बातें-
गए थे जेल
आजादी के दौरान शैलेंद्र ने ज्वलंत कविताएं लिखी थीं।'हंस' और 'धर्मयुग' जैसी पत्रिकाओं में छपने लगी थीं। 1947 में वो भारत छोड़ो आंदोलन के वक्त अपने कॉलेज के दोस्तों के साथ जेल भी गए। कहते हैं 1947 में उनकी कविताओं को बहुत पसंद किया गया था यही कारण था कि उनको कुछ समय तक के लिए जेल तक जाना पड़ा था।
रेलवे में की नौकरी
भले ही शैलेंद्र को लिखने का शौक था लेकिन उस समय इससे कोई खास कमाई नहीं होती थी ऐसे में परिवार की जिम्मेदारी बढ़ने पर उन्होंने नौकरी करने की ठानी। कहते हैं जेल से बाहर आने के बाद पिता ने उनसे उनके साथ काम करने को कहा लेकिन शैलेंद्र को ये रास नहीं आया और उन्होंने लिखना छोड़कर रेलवे में नौकरी कर ली। भले ही वह नौकरी करने लगे हों लेकिन उनका इसमें कभी मन नहीं लगा। ऐसे में जब भी उनको टाइम मिलता वह कुछ ना कुछ लिखते रहते थे।
राज कपूर के साथ किया काम
कहते हैं शैलेंद्र की पहली बार मुलाकात राजकपूर से एक कवि सम्मेलन के दौरान हुई। राजकपूर को शैलेंद्र का अंदाज इतना भा गया कि उनमें उनको एक बहुत महान कलाकार दिख गया। ऐसे में राज कपूर ने उनको अपनी फिल्मों में गाने लिखने का शानदार ऑफर दिया। इस ऑफर को उन्होंने साफ मना कर दिया। लेकिन परिवार और घर की कुछ जिम्मेदारियों मे उनको इसको मानने पर मजबूर कर दिया और उन्होंने राजकपूर से दोबारा संपर्क किया और अपनी शर्तो पर हीं राजकपूर के साथ काम करना स्वीकार कर लिया था ।
रह गया अधूरा वादा
हर तरह की हिंदी सिनेमा में सफलता पाने के बाद शैलेन्द्र ने एक फिल्म का निर्माण किया। साल 1966 में शैलेन्द्र ने फिल्म तीसरी कसम का निर्माण किया। लेकिन बॉक्स ऑफिस पर फिल्म को असफलता हाथ लगी। इसकेबाद उन्हें गहरा सदमा लगा। कहते हैं इसके बाद उन्हें कई बार दिल का दौरा पड़ गया।
13 दिसंबर 1966 को अस्पताल उन्होंने राजकपूर से मुलाकात की थी और उनकी फिल्म मेरा नाम जोकर के गीत 'जीना यहां मरना यहां' को पूरा करने का वादा किया । लेकिन वह वादा अधूरा रह जाएगा ये उन दोनों में किसी को नहीं पता था। क्योंकि इस वादे के दूसरे दिन14 दिसंबर 1966 को उनकी मृत्यु हो गयी।
जबरदस्त गानें
इसके बाद शैलेन्द्र और राजकपूर की जोड़ी ने कई फिल्में एक साथ की। कहा जाता था कि अगर राजकपूर की फिल्म हो और शैलेंद्र के गाने ना हों वो फिल्म ही अधूरी है । 'आवारा', 'आह', 'श्री 420', 'चोरी-चोरी', 'अनाडी', 'जिस देश में गंगा बहती है', 'संगम', 'तीसरी कसम', 'एराउंड द वर्ल्ड', 'दीवाना', 'सपनों का सौदागर' और 'मेरा नाम जोकर' जैसी फिल्में शामिल हैं।