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नृपेन्द्र प्रसाद मोदी का ब्लॉगः मौत के मुहाने पर अब भी खड़ी है विश्व सभ्यता

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 7, 2021 14:14 IST

जैसा कि ओलंपिक खेल 2020 टोक्यो, जापान में चल रहा है। ऐसे में इस वर्ष 6 अगस्त के हिरोशिमा दिवस का महत्व बढ़ गया है। जापान अपने दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम हमले की 76वीं वर्षगांठ मना रहा है।

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ठळक मुद्देजापान अपने दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम हमले की 76वीं वर्षगांठ मना रहा है। जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध में 15 अगस्त 1945 को अपनी हार मान ली और आत्मसमर्पण कर दिया। परमाणु हमले की त्रसदी भुगत रहा जापान पूरी दुनिया के दूसरे देशों के लिए सबक होना चाहिए। 

जैसा कि ओलंपिक खेल 2020 टोक्यो, जापान में चल रहा है। ऐसे में इस वर्ष 6 अगस्त के हिरोशिमा दिवस का महत्व बढ़ गया है। जापान आज अपने दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम हमले की 76वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस दिन का उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध को समाप्त करने वाले हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम की विनाशकारी शक्ति के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। मानव सभ्यता के इतिहास में 6 और 9 अगस्त का दिन एक दर्दनाक त्रासदी में दफन है।

दुनिया जानती है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर ‘लिटिल बॉय’ नामक परमाणु बम 6 अगस्त 1945 को गिराया था। इस बम के धमाके से 13 किमी में तबाही मच गई थी। ये हमला इतना जबरदस्त था कि इसकी वजह से कुछ ही पल में 70 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. हिरोशिमा में हुए परमाणु बम हमले से जापान उबरा भी नहीं था कि तीन दिन बाद 9 अगस्त को जापान के दूसरे शहर नागासाकी पर अमेरिका ने दूसरा परमाणु बम गिराया जिसमें 74 हजार लोग मारे गए थे। जर्मनी के सार्वजनिक प्रसारण नेटवर्क एआरडी के जापान संवाददाता क्लाउस शेरर ने जापान और अमेरिका के वैज्ञानिकों, इतिहासकारों और पुराने सैनिक अधिकारियों के साथ बातचीत तथा द्वितीय विश्वयुद्ध के समय की अमेरिकी न्यूज फिल्मों के अवलोकन से यह जानने की कोशिश की क्या नागासाकी पर दूसरा बम गिराना जरूरी था। अपनी खोज पर शेरर ने एक पुस्तक भी लिखी है और एक डॉक्यूमेंट्री ़फिल्म भी बनाई है। शेरर ने पाया कि जापान पर दो बम इसलिए गिराए गए क्योंकि अमेरिका के पास उस समय दो प्रकार के बम थे-यूरेनियम वाला बम हिरोशिमा पर गिराया गया और प्लूटोनियम वाला नागासाकी पर। यह दूसरा बम बहुत खर्चीला था और तब तक बिना परीक्षण वाला प्रोटोटाइप था। उसका गिराया जाना सीधे लड़ाई के मैदान में परीक्षण के समान था।

जापान ने इस दूसरे बम के बाद 15 अगस्त 1945 को अपनी हार मान ली थी और उसने विधिवत आत्मसमर्पण कर दिया। इस परमाणु हमले ने इंसानी बर्बरता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। बच्चों और औरतों की हजारों लाशें, शहरों की बर्बादी ने मानवता को कलंकित कर दिया था। हिरोशिमा दिवस को इसलिए मनाया जाता है, ताकि दुनिया इस तबाही से कुछ सीख ले। सत्ता, सामर्थ्य, साधन-संपन्नता, अहंकार और महत्वाकांक्षा के अतिरेक का चरम कितना घातक हो सकता है, इसका ज्वलंत उदाहरण है हिरोशिमा-नागासाकी। हिरोशिमा दुनिया का पहला ऐसा शहर है जो महाशक्तियों की महत्वाकांक्षा का शिकार बना।

आज के परमाणु संपन्न देशों के पास सन 1945 के दूसरे विश्व युद्ध की तुलना में कई गुना अधिक मारक क्षमता की युद्ध सामग्री एकत्रित हो चुकी है। हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए बमों की तुलना में उनसे एक लाख गुना अधिक शक्तिशाली बम बना लिए गए हैं। परमाणु बमों जैसे घातक बमों का जखीरा इन परमाणु संपन्न देशों के पास इतनी अधिक मात्र में है कि उनसे दुनिया को कई बार तबाह किया जा सकता है। परमाणु हमले की त्रसदी भुगत रहा जापान पूरी दुनिया के दूसरे देशों के लिए सबक होना चाहिए। विश्व इस विभीषिका की 76वीं वर्षगांठ पर अतीत के इस खौफ को याद कर सके और हमारी आने वाली पीढ़ियों को इस मर्मांतक त्रासदी की पुनरावृत्ति से बचा सके।

टॅग्स :जापानटोक्यो ओलंपिक 2020
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