शोभना जैन का ब्लॉगः दक्षिण अफ्रीका में क्यों धधक रही है हिंसा?
By शोभना जैन | Published: July 17, 2021 01:38 PM2021-07-17T13:38:20+5:302021-07-17T13:47:39+5:30
दक्षिण अफ्रीका के वर्तमान घटनाक्रम के बारे में विशेषज्ञों का भी कहना है कि वहां के हालात ऐसे बन रहे थे कि अभी जो कुछ हो रहा है, उससे किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. देश में आर्थिक असमानता बेहद गहरी है.
दक्षिण अफ्रीका के पूर्व विवादित राष्ट्रपति जैकब जुमा को गत सप्ताह हुई जेल के बाद वहां भड़की व्यापक हिंसा, दंगों, लूटपाट को लेकर एक अत्यंत विचलित करने वाली फोटो ने पूरी दुनिया का ध्यान वहां की अराजक स्थिति की ओर खींचा है. वायरल हुए इस चित्र में बहुमंजिला इमारत में लगी आग में अपने छोटे से बच्चे के साथ फंसी एक मां इमारत में लगी आग से अपने बच्चे को बचाने के लिए हताशा में नीचे खड़ी भीड़ के पास फेंक रही है ताकि भीड़ उस बच्चे को लपक कर उसकी प्राण रक्षा कर सके.
दक्षिण अफ्रीका में 13 लाख भारतीय रहते हैं और उनमें से बड़ी संख्या में इन्हीं इलाकों में रहते हैं. एक भारतीय मूल के प्रवासी के अनुसार फिलहाल तो कुछ ही इलाकों में ऐसी स्थिति है. हम लोग दक्षिण अफ्रीकी सरकार से मदद मांग रहे हैं, लेकिन अब तक कुछ विशेष कदम उठाए नहीं गए हैं. लेकिन अफ्रीकी सरकार का कहना है कि ऐसा करने वाले राजनीति या नस्लभेद से प्रेरित नहीं हैं. बल्कि वे अपराधी हैं जिनका मकसद बस मौके का फायदा उठाकर लूटपाट करना है. निश्चित तौर पर दक्षिण अफ्रीका में पीढ़ियों से रह रहे और उसे अपना घर मानने वाले भारतीयों के लिए यह बेहद चिंताजनक हालात हैं. लेकिन यह बात भी सामने आ रही है कि वहां की वर्तमान अराजक स्थिति का निशाना अकेले भारतीय ही नहीं हैं, बल्कि समस्या एक वर्ग विशेष को निशाना बनाए जाने की बजाय कहीं ज्यादा व्यापक है. देश की खस्ता आर्थिक स्थिति, लगातार बढ़ती आर्थिक असमानता, देश की आंतरिक राजनीति, या यूं कहें सत्तारूढ़ राजनीतिक दल अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस की आंतरिक कलह आदि तमाम वजहों ने मिलकर देश में एक फौरी अराजक स्थिति तैयार कर दी है जिसने विस्फोटक रूप ले लिया है.
जुमा को अदालत की अवमानना के आरोप में जेल की सजा सुनाए जाने के बाद देशभर में उनके समर्थकों ने इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई मानते हुए हिंसा करनी शुरू कर दी जिसने जल्द ही लूटपाट और दंगों का रूप ले लिया. अब तक इस हिंसा में 72 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. क्वाजुलु नताल जुमा का गृहराज्य है, ऐसे में जबकि जुलू, जिस समुदाय से जुमा आते हैं और जो देश का सबसे बड़ा जातीय गुट है, भड़क गए. आंकड़ों के अनुसार खस्ताहाली के दौर से गुजर रही दक्षिण अफ्रीका की सकल घरेलू उत्पाद दर पिछले वर्ष 1946 के बाद से सबसे नीचे चली गई और अर्थव्यवस्था में सात प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई.
दक्षिण अफ्रीका के वर्तमान घटनाक्रम के बारे में विशेषज्ञों का भी कहना है कि वहां के हालात ऐसे बन रहे थे कि अभी जो कुछ हो रहा है, उससे किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. देश में आर्थिक असमानता बेहद गहरी है. एक तरफ विकसित दक्षिण अफ्रीका का टैग है तो दूसरी तरफ वहां गरीब तंग बस्तियों में रहने वाले अश्वेत हैं. वर्ष 2009 से 2018 तक देश के राष्ट्रपति रहे जुमा पर भ्रष्टाचार के दाग हैं. भारतीय मूल के दक्षिण अफ्रीका में बसे गुप्ता ब्रदर्स के साथ मिलकर जुलू पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप रहे हैं. लेकिन इसके साथ जुमा अब भी एक बड़े वर्ग के लोकप्रिय नेता हैं. दक्षिण अफ्रीका एक बहुनस्लीय समाज है. निश्चित तौर पर भारत सरकार को वहां के घटनाक्रम पर ध्यान से नजर रखनी होगी. इन खबरों के बीच याद आता है, मई 1994 में दक्षिण अफ्रीका के जुझारू, तपे हुए सत्याग्रही नेल्सन मंडेला का शपथ ग्रहण समारोह, जिसकी रिपोर्टिंग करने के लिए मैं दक्षिण अफ्रीका गई थी. उस दिन सुबह से माहौल में खासकर अश्वेत समुदाय के हर्षोल्लास के बीच वहां बसे श्वेतों के चेहरों पर आने वाले कल की स्थितियों को लेकर आशंकाएं साफ नजर आ रही थीं. लेकिन उस वक्त मंडेला ने एक कुशल राजनेता की ही तरह स्थितियां इस तरह से संभाली कि हिंसा, उत्पात, लूटपाट हुई ही नहीं. आज के हालात के बारे में माना ही जा रहा है कि यहां पर दिखाई देने वाला विरोध प्रदर्शन और हिंसा केवल पूर्व राष्ट्रपति की गिरफ्तारी को लेकर ही सीमित नहीं है बल्कि इसके पीछे कहीं न कहीं असमानता की नीति जो देखने में तो भले खत्म हो गई लेकिन जमीन पर अब भी जारी है. उसी सबको लेकर अब गुस्से का उबाल फूट उठा है.
पूर्व राष्ट्रपति जुमा अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को गलत और राजनीति से प्रेरित बताते हैं, लेकिन उनसे जुड़ी एक संस्था ने कहा है कि पूर्व राष्ट्रपति के जेल में बने रहने तक देश में शांति होने की उम्मीद नहीं है. बहरहाल देखना होगा कि वहां रास्ता क्या बनता है, क्या दक्षिण अफ्रीका में जल्द ही हालात सामान्य हो सकेंगे और धीरे-धीरे देश के उस सामान्य अश्वेत के उस समानता के सपने को पूरा किया जा सकेगा जिसकी उम्मीद में वह कुछ वर्षों से जग तो रहा है लेकिन अब संयम खो रहा है.