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डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: अब बांग्लादेश में ‘इंडिया आउट’...?

By विजय दर्डा | Published: April 01, 2024 6:45 AM

चीन पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि इस पूरे प्रसंग में चीन का हाथ है। सुकून की बात है कि चीन की कूटनीति सफल नहीं हो रही है क्योंकि भारत की संस्कृति रिश्तों को संभालने की रही है।

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ठळक मुद्देबांग्लादेश में पिछले महीने अचानक इंडिया आउट के नारे सुनाई दिए तो सभी का चौंकना स्वाभाविक थाअभी-अभी इंडिया आउट का यही राग तो मालदीव के राष्ट्रपति मो. मुइज्जू अलाप रहे थेक्या यह केवल बांग्लादेश के विरोधी दलों का आंदोलन है या फिर इसके पीछे चीन की चाल है?

तेजी से तरक्की कर रहे बांग्लादेश में पिछले महीने जब अचानक इंडिया आउट के नारे सुनाई दिए तो सभी का चौंकना स्वाभाविक था। अभी-अभी यही राग तो मालदीव के राष्ट्रपति मो. मुइज्जू अलाप रहे थे। फिर यह राग बांग्लादेश में कैसे और क्यों शुरू हो गया?

क्या यह केवल बांग्लादेश के विरोधी दलों का आंदोलन है या फिर इसके पीछे चीन की चाल है? चीन पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि इस पूरे प्रसंग में चीन का हाथ है। सुकून की बात है कि चीन की कूटनीति सफल नहीं हो रही है क्योंकि भारत की संस्कृति रिश्तों को संभालने की रही है। चीन की लुभावनी चाल में फंसने वाले हमारे पड़ोसी भी जानते हैं कि भरोसेमंद साथी तो भारत ही है।

बांग्लादेश के प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) को यह लगता रहा है कि भारत अवामी लीग का समर्थन करता है। वैसे इसमें कोई दो राय है भी नहीं कि अवामी लीग की सर्वोच्च नेता और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ भारत के रिश्ते बहुत मजबूत हैं।

उन्होंने बांग्लादेश को तरक्की की राह पर तो तेजी से बढ़ाया ही है, वहां कट्टरपंथ के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति भी अपना रखी है। यहां तक कि इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा के सहयोगी संगठन हिज्ब-उत-तहरीर (एचयूटी), जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश और अंसारुल्ला बांग्ला टीम जैसे समूहों के आतंकवादियों को फांसी के फंदे पर भी लटकाया है।

चीन के लिए बांग्लादेश की विपक्षी पार्टियां और ये आतंकी संगठन मददगार साबित हुए हैं। इन्हीं के माध्यम से बांग्लादेश में ‘इंडिया आउट’ का अभियान शुरू हुआ है, जिसकी गूंज सोशल मीडिया पर ज्यादा सुनाई दे रही है। भारतीय उत्पादों के बायकॉट की बात कही जा रही है लेकिन शेख हसीना की सरकार का स्पष्ट तौर पर कहना है कि इस तरह की अपील का असली मकसद बांग्लादेश के बाजार को अस्थिर करना है।

बांग्लादेश का बाजार यदि अस्थिर होता है तो निश्चय ही इसका फायदा चीन उठाएगा। इसके साथ ही वह बांग्लादेश को उसी तरह अपने चंगुल में फंसा लेगा जिस तरह से उसने पाकिस्तान, श्रीलंका और अब मालदीव को फंसाया है। नेपाल और भारत के संबंधों की मिठास को वह पहले ही कड़वा बना चुका है।

म्यांमार और भूटान को भी उसने भारत से दूर करने की कोशिश की है लेकिन भारत के प्रति पड़ोसियों का भरोसा होने के कारण चीन ज्यादा सफल नहीं हो पाया है। अब बांग्लादेश को हमसे दूर करने की कोशिश कर रहा है। यदि आप भौगोलिक मानचित्र देखें तो चीनी कब्जे वाले तिब्बत और बांग्लादेश के बीच हमारे पूर्वोत्तर के राज्य स्थित हैं।

हमारे इन राज्यों में आतंकी समूहों को वह हथियार और ड्रग्स देकर हमें परेशान करने की हरसंभव कोशिश कर रहा है। वह चाहता है कि किसी भी तरह बांग्लादेश से भारत के रिश्ते कड़वे हो जाएं और बांग्लादेश उसकी गोद में जा बैठे। अच्छी बात यह है कि शेख हसीना इस बात को अच्छी तरह समझती हैं। वे चीन की हर चाल के आगे अडिग खड़ी दिख रही हैं।

उन्होंने तो यहां तक कह दिया है कि जब विपक्षी नेता अपनी पत्नियों के पास मौजूद भारतीय साड़ियों को जलाएंगे, तब ही ये साबित होगा कि विपक्ष वाकई भारतीय उत्पादों के बहिष्कार के लिए प्रतिबद्ध है। वैसे भी दुनिया यह जानती है कि बांग्लादेश की विपक्षी पार्टी बीएनपी हमेशा ही भारत विरोधी रही है।

बांग्लादेश की आजादी की स्वर्ण जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ढाका दौरे के खिलाफ बांग्लादेश में होने वाले हिंसक विरोध में बीएनपी शामिल थी। बीएनपी की नेता खालिदा जिया दोहरी चाल भी चलती नजर आती हैं। बीएनपी एक ओर भारत की मुखालफत करता है तो दूसरी ओर बीएनपी का एक गुट भारत से अच्छे संबंधों की वकालत भी करता है। मगर हावी कट्टरपंथी ही होते हैं।

माना जाता है कि इस चाल के पीछे खालिदा जिया का ही दिमाग है। सवाल यह है कि क्या खालिदा जिया और चीन के बीच कोई समझौता हो चुका है? यह शंका तो पैदा होती है। हालांकि पिछले चुनाव में चीन ने उनका साथ नहीं दिया था क्योंकि जिया के समर्थन में अमेरिका खड़ा था। शायद चीन को यह उम्मीद रही हो कि वह शेख हसीना को अपने पाले में कर लेगा! 

यहां इस बात पर भी गौर करना जरूरी है कि चीन को यह बात समझ में आ गई  है कि वह भारत को सैन्य शक्ति से नहीं दबा सकता। गलवान में भारत के मुंहतोड़ जवाब से उसे भारत के रवैये का पूरा अंदाजा हो चुका है। वह भारत को हर हाल में कमजोर करना चाहता है क्योंकि उसे इस बात का डर है कि आने वाले वर्षों में भारत उससे बड़ी आर्थिक ताकत न बन जाए।

1978 में अर्थव्यवस्था के दरवाजे बाहरी दुनिया के लिए खोलने के बाद से उसकी अर्थव्यवस्था औसतन 9 प्रतिशत की तेज गति से बढ़ी मगर कोविड ने उसे 2.2 पर ला दिया। वापस वह 8 प्रतिशत पर आया लेकिन 2023 में चीन केवल 5.2 प्रतिशत की रफ्तार ही हासिल कर पाया जबकि इस अवधि में भारत की अर्थव्यवस्था 7.2 प्रतिशत की दर से बढ़ी।

भारत की इस रफ्तार ने चीन को चिंतित कर रखा है। एक पुरानी कहावत है कि यदि खुद की बड़ी लकीर नहीं खींच सकते तो दूसरे की लकीर को मिटाओ। चीन यही कर रहा है। वह भारत को इतना उलझा देना चाहता है कि हमारे विकास की रफ्तार थम जाए। लेकिन उसे यह समझ लेना चाहिए कि भारत उसकी चाल को अच्छी तरह समझता है। भारत की रफ्तार अब कोई नहीं रोक सकता। भारत पलटवार करना जानता है।

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